पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा के पूर्व सांसद संजय पासवान ने कहा है कि बंदियों के मानवाधिकार का घोर उल्लंघन होता है। सोमवार को पटना में संस्था ‘कबीर के लोग’ के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि जेलों में बंद अधिकतर कैदी दलित समुदाय के हैं। वे छोटे-छोटे आरोपों में जेल भेज दिए जाते हैं और मामलों की सुनवाई में विलंब के कारण वर्षों विचाराधीन कैदी के रूप में गुजारते हैं। संगोष्ठी का विषय था- बंदी अधिकार, मानवाधिकार व दलित अधिकार।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राज्य महिला आयोग की सदस्य चौधरी मायावती ने कहा कि जेलों में विचाराधीन कैदी के रूप में महिलाएं भी बड़ी संख्या में हैं। इनमें से अधिकतर पारिवारिक विवादों और छोटी-छोटी वारदाताओं के आरोप में जेल में बंद हैं। राज्य महिला आयोग ऐसी कैदियों को शीघ्र न्याय दिलाने की दिशा में पहल कर रहा है। दिल्ली से आए प्रो एसपी सिंह ने कहा कि कई बार लोगों को पुलिस की मनमानी का शिकार लोगों को होना पड़ता है। इस दिशा में हो रहे सार्थक प्रयास का हम स्वागत करते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता इरफान ने कहा कि कैदियों में बड़ी संख्या मुसलमानों की है। अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व सदस्य ललित भगत ने कहा कि कैदियों की लड़ाई अब सामाजिक स्तर पर भी लड़ा जाना चाहिए। मंच का संचालन बंदी अधिकार आंदोलन सह फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के बिहार प्रभारी संतोष उपाध्याय ने किया। उन्होंने कहा कि कैदियों के भी मौलिक अधिकार हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी मौजूद थे।