कैराना की करतूत से भाजपा सांसद हुक्म सिंह का चेहरा पीला पड़ गया है. भाजपा फिर किरकिरी की शिकार हुई है. खास बात यह है कि यह पहली बार हुआ है कि हिंदू-मुस्लिम समुदाय ने एक साथ मिल कर समाज की रगों में नफरत का जहर बोने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया है.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम
लव-जिहाद और घर वापसी जैसे मुद्दों पर पहले ही पार्टी को शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी. लेकिन उसे पहली बार जनाक्रोश का शिकार भी होना पड़ा. याद दिलाने की बात है कि कैराना के सांसद हुक्म सिंह ने 346 हिंदू परिवारों की लिस्ट जारी कर दावा किया था कि वहां से उन्हें एक समुदाय ( मुसलमानों) के आतंक से घर छोड़ना पड़ा है. लेकिन तमाम मीडिया रिपोर्ट्स से यह साबित हुआ कि वहां ऐसी कोई बात नहीं थी. लेकिन इसके बावजूद भाजपा ने एक नौ सदस्यी टीम जांच के लिए वहां भेजी. नतीजा यह हुआ कि कैराना के हिंदुओं और मुसलमानों का सैंकड़ों का जत्था सड़क पर उतर आया. दोनों समुदाय के लोगों ने साफ़ साफ़ कहा कि यहाँ सदियों से हिन्दू मुस्लिम भाईचारा है. यहाँ से वही लोग गए हैं जिनकी या तो दूसरे शहरो में नौकरी- काम धंधा लग गया या फिर उनके व्यक्तिगत कारण से चलते उन्हें जाना पड़ा है. यहाँ हिन्दू मुस्लिम जैसी कोई बात नहीं है.
कैराना के लोगों ने एक नयी इबारत लिखी है. यह देश में सामाजिक भाईचारे की ऐसी मिसाल है जो घृणा की राजनीति करने वालों के लिए सबक है. कैराना के लोग इसलिए भी प्रशंसा के पात्र हैं कि उन्होंने नफरत रूपी सांप के फन को भाईचारे से कुचलने का साहस दिखाया है.
मुहब्बत का घराना है कैराना
दर असल कैराना ऐकिहासिक रूप से मुहब्बत और भाईचारे की धरती है.यह कैराना संगीत घराने के लिए प्रसिद्ध रहा है. कैराना की पहचान अब्दुल करीम खान से है. जो मशहूर क्लासिकल गायक थे. कैराना की रगों में मुहब्बत की का गीत दौड़ता है. लेकिन एक सिरफिरे सांसद ने इसकी पहचान को दागदार करने की कोशिश की, जिसमें वह नाकाम रहे. जबकि सांसद हुक्म सिंह को सियासी पहचान भी कैराना ने ही दी. अस्सी प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले कैराना ने इन्हीं हुक्म सिंह को अनेक बार विधायक चुना. उन्हें तब भी कैराना ने अपना प्रतिनिधि चुना जब वह भाजपा में नहीं थे. कैराना ने तब भी उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना जब वह भाजपा में गये. और अब तो वह वहां के सांसद हैं. लेकिन उसी कैराना के पाक दामन को दागदार बनाने की करतूत जब उन्होंने शुरू की तो कैराना ने उन्हें उनकी औकात बता दी.
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दर असल हुक्म सिंह को यह आभास हो गया था कि कैराना के लोगों में उनके प्रति पुराना मोह खत्म होने लगा है. इसलिए उन्होंने नफरत की सियासत शुरू की. दर असल उन्हें यह लगा होगा कि मुजफ्फरनगर की साम्प्रदायिक हिंसा का सियासी लाभ 2014 के चुनाव में भाजपा ने उठाया था. इसलिए शायद उन्होंने यह चाल चली. गौरतलब है कि कैराना एक समय में मुजफ्फरनगर का तहसील रहा है और मुजफ्फरनगर के काफी करीब है. जिसने मुजफ्फरनगर की पीड़ा को खुद झेला है. इसलिए कैराना इस बार नफरत की सियासत को न सिर्फ ठुकरा दिया बल्कि नफरत के खिलाफ सड़क पर उतर आया.
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लव जिहाद और घर वापसी जैसी साजिशों के दम तोड़ने के बाद कैराना में की गयी करतूत न सिर्फ दम तोड़ चुकी है बल्कि यह पहली बार हुआ है कि कैराना ने नफरत के खिलाफ मुहब्बत का पैगाम दे कर एक मिसाल कायम की है.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक ने बर्मिंघम युनिवर्सिटी इंग्लैंड से शिक्षा प्राप्त की.भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता की पढ़ाई की.फोर्ड फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय फेलो रहे.बीबीसी के लिए लंदन और बिहार से सेवायें देने के अलावा तहलका समेत अनेक मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे.अभी नौकरशाही डॉट कॉम के सम्पादक हैं.[/author]