बिहार विधान सभा के पूर्व अध्‍यक्ष उदय नारायण चौधरी इन दिनों ‘सरकार’ से खफा चल रहे हैं। आरक्षण की आंच को तेज करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्‍हें इस बात का मलाल है कि वे संपूर्ण वंचित समाज की बात कर रहे हैं और मीडिया उन्‍हें सिर्फ दलित में बांध दे रहा है। आज हमने करीब ढाई-तीन साल पहले के उनके कुछ विवादास्‍पद फैसलों के संबंध में बातचीत की। इसमें राजद के एक गुट को अलग मान्‍यता देने और आठ विधायकों की सदस्‍यता समाप्‍त करने से जुड़े मामलों पर चर्चा की। हमने उनसे पूछा कि आपके इन विवादित फैसलों में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की कितनी भूमिका थी या कितना हस्‍तक्षेप था। इस पर उन्‍होंने माना कि कोई भी स्‍पीकर रुलिंग पार्टी के इंटरेस्‍ट को अनदेखा नहीं कर सकता है। हालांकि उन्‍होंने कहा कि इन बातों पर मीडिया से चर्चा में अब कुछ रखा नहीं है।

विधान सभा के पूर्व अध्‍यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा
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वीरेंद्र यादव

हमारा मुख्‍य फोकस उन आठ पूर्व विधायकों पर था, जिनकी 15वीं विधानसभा सदस्य के रूप में प्राप्‍त सभी सुविधाएं छीन ली गयी हैं। 2014 में राज्‍य सभा के उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्‍याशी के पक्ष में पोलिंग एजेंट बनने और मतदान करने को लेकर जदयू के कई विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की गयी थी, जिनमें से आठ अपनी जिद पर अड़े रहे और सदस्‍यता भी गवां दी। इन आठ विधायकों में दो ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू और नीरज कुमार बबलू भाजपा के‍ टिकट पर जीत कर विधान सभा लौट आये हैं। 15वीं विधानसभा के लिए पहली बार निर्वाचित राहुल शर्मा, रवींद्र राय व सुरेश चंचल को पूर्व विधायक के रूप में मिलने वाली सारी सुविधाएं बंद हैं। हालां‍कि तीन अन्‍य पूनम देवी, राजू कुमार सिंह और अजीत कुमार पहले भी विधायक रह चुके थे, लेकिन 15वीं विधान सभा के कार्यकाल के रूप में मिलने वाली पेंशन बंद है।

पूर्व स्‍पीकर श्री चौधरी ने कहा कि मामला न्‍यायालय में है। हमने कानून सम्‍मत कार्रवाई की थी। विधान सभा की कार्रवाई को लेकर स्‍पीकर का फैसला सर्वोपरि होता है। राजद के एक गुट को अलग मान्‍यता देने और मान्‍यता रद करने के संबंध में उन्‍होंने कहा कि हमने आवेदन के आधार पर औपबंधिक मान्‍यता दी थी। लेकिन आवेदन पर हस्‍ताक्षर करने वाले सदस्‍यों ने जब हस्‍ताक्षर को सही मानने से इंकार कर दिया तो अलग गुट की मान्‍यता रद भी कर दी। हालांकि हस्‍ताक्षर करने वाले कई सदस्‍यों ने बाद में विधानसभा से इस्‍तीफा भी दे दिया था।

उल्‍लेखनीय है कि 2013 में भाजपा को सत्‍ता से ‘धकियाने’ के बाद नीतीश कुमार ने राजद में सेंधमारी की कोशिश की थी। इसी के तहत कुछ विधायकों के कथित रूप से फर्जी हस्‍ताक्षर के बाद स्‍पीकर उदय नारायण चौधरी ने राजद के एक गुट को विधान सभा में अलग से मान्‍यता दे दी थी, जबकि इस गुट को विधायक दल का दो-तिहाई सदस्‍यों का समर्थन प्राप्‍त नहीं था। हालांकि काफी हंगामे के बाद स्‍पीकर ने अलग गुट की मान्‍यता को रद कर दिया था। इसके बाद नीतीश कुमार ने राजद विधायकों को विधान परिषद में भेजने का भरोसा दिलाकर इस्‍तीफा दिलवा दिया था, ताकि पार्टी का विधान सभा में बहुमत हो जाये। लेकिन 2104 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद समीकरण बदला और लालू यादव व नीतीश कुमार साथ आ गये।

By Editor


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