संसद के चालू सत्र में राज्यसभा में गतिरोध की वजह से बीमा कोयला ब्लाकों और कई अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों के पारित नहीं होने की स्थिति में सरकार वैश्विक स्तर पर निवेशकों का विश्वास जीतने के लिए अध्यादेश का सहारा ले सकती है। संसद के शीतकालीन सत्र के अब केवल दो ही दिन बचे हैं और धर्मांतरण के मुद्दे पर चर्चा को लेकर सत्ता तथा विपक्ष के अपने अपने रूख पर अडे रहने के कारण यह गतिरोध आसानी से दूर होता नहीं दिख रहा है। गतिरोध के चलते लोकसभा से पारित कई महत्वपूर्ण विधेयक राज्यसभा में पेश ही नहीं किये जा सके हैं। इसलिए इनके राज्यसभा में पारित होने की संभावना लगभग समाप्त हो चुकी है।
इस बीच अधिकारियों ने कहा है कि यदि बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने से जुड़ा बीमा संशोधन विधेयक और कोयला ब्लॉकों के आवंटन से जुड़ा विधेयक संसद से पारित नहीं होता है तो केंद्र सरकार इसके लिए अध्यादेश का सहारा ले सकती है। शीतकालीन सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयको के राज्यसभा से पारित नहीं होने पर निवेशको के मन में आर्थिक सुधार को लेकर मोदी सरकार की क्षमताओं पर सवाल उठ सकते हैं। अधिकारियों ने कहा कि मंगलवार तक यदि बीमा संशोधन विधेयक और कोयला को निजी क्षेत्रों के लिए खोलने से जुड़ा विधेयक पारित नहीं होगा तो सरकार इनके लिए अध्यादेश ला सकती है।
एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि अध्यादेश का मार्ग हमेशा खुला रहता है, लेकिन इस संबंध में सरकार को निर्णय लेना होता है। संसद के वर्तमान सत्र की शेष अवधि के बाद ही इस संबंध में कोई निर्णय लिया जा सकता है। शीतकालीन सत्र के शुरू होने से पहले ऐसी उम्मीद जतायी जा रही थी कि मोदी सरकार बीमा संशोधन विधेयक और कोयला ब्लाकों से जुडे विधेयको को आसानी से पारित करा लेगी, क्योंकि इसके लिए आमतौर पर सहमति बनती दिख रही थी। बीमा संशोधन विधेयक पर प्रवर समिति की रिपोर्ट भी मिल चुकी है और उसने भी इसमें 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वकालत की है।