दीक्षित और गुप्ता को बचाने के चक्कर में फंसेगी मनमोहन सरकार ऐसे में रमण सिंह और शिवराज सिंह चौहान भी नहीं बच पायेंगे.
कोलगेट कांड की आंच से भले ही एसईसीएल के पुराने एमडी एम पी दीक्षित को मनमोहन सरकार बचाने को तुली हो लेकिन कोलगेट की जांच की आंच में तमाम बड़े चेहरों के झुलसने का मौसम सिर पर है। सुप्रीम कोर्ट में फजीहत से डरी सीबीआई का दायरा फैलता जा रहा है और इस बात की संभावनाएं यहां जताई जा रही हैं कि कोलगेट में अगर मनमोहन सरकार के दामन पर कालिख लगी है तो भाजपा की राज्यों की सरकारें भी लपेटें में आएंगी। खासकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारें।
सत्ता के गलियारों में इससे कोई इंकार नहीं कर रहा है कि मनमोहन सरकार सारे कील कांटे दुरुस्त करने में लगी है ताकि किसी तरह कोलगेट की लपटें मनमोहन के दामन तक ना पहुंचे। इसी लिए केंद्र सरकार ने पुराने कोयला सचिव एच सी गुप्ता से ना तो पूछताछ की इजाजत सीबीआई को दी और ना ही दीक्षित के खिलाफ चार्जशीट पेश करने की। दरअसल दीक्षित पर ये मामला था कि 2010 में सीएमडी रहते हुए बिलासपुर की कंपनी से एक करोड़ 30 लाख की उन्होंने रिश्वत खाई। उनकी तरफ से 80 लाख की रिश्वत खाते एक निजी कंपनी के कर्मचारी को सीबीआई ने रंगे हाथों पकड़ा था। 2011 में जांच पूरी हो गई थी।
लिहाजा चार्जशीट के लिए कोयला मंत्रालय से अनुमति मांगी गई थी। कोयला मंत्रालय ने फाइल कानून मंत्रालय को भेज दी पर कानून मंत्रालय है कि ठस से मस ही नहीं हो रहा है। मामला एटार्नी जनरल तक पहुंचा पर फैसला नहीं बदला। अब ये कहा जा रहा है कि ये केस बंद करने के अलावा सीबीआई के पास कोई चारा नहीं होगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट जिस तरह सख्त है और सीबीआई इस मामले को अंजाम तक पहुंचाना चाहती है उसे देखते हुए लग रहा है कि केस अभी बंद नहीं होगा। मामला लंबा खिंचेगा।
कोलगेट की जांच की आंच छत्तीसगढ़ तक आने के आसार हैं। यहां पर जिंदल और अजय संचेती को दी गई कोयला खदान विवादास्तद हैं। कांग्रेसी साफ कह रहे हैं कि अगर मनमोहन सिंह फंसे तो बचेंगे रमन सिंह और शिवराज सिंह भी नहीं।