पटना निगर निगम के कमिश्नर कुलदीप नारायण का निलंबन क्या वापस हो सकता है? नौकरशाही डॉट इन को जानकारी मिली है कि सरकार निलंबन के फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है. हालांकि इस बारे में अभी हालात स्पष्ट होना बाकी है.
शुक्रवार को कुलदीप नारायण के निलंबन की खबर फैलती है पटना के राजनीतिक, प्रशासनिक और अदालती गलियारे में तूफानी दृश्य था. सरकार में बैठे नेता और मंत्री से लेकर नगर निगम के पार्षदों के बीच इस फैसले के पक्ष और विपक्ष में चर्चा का बाजार गर्म हो गया. दूसरी तरफ बिल्डरों के एक वर्ग में खुशी की लहर दौड़ गयी. कुलदीप नारायण से सबसे ज्यादा बिल्डरों के एक खास वर्ग को ही नुकसान होता रहा है. ये वह वर्ग है जिन्होंने ने गैरकानूनी तरीके से इमारतें खड़ी कर ली हैं और उनके खिलाफ अदालत ने उनकी इमारतें तोड़ने का हुक्म दे चुकी है.
कुलदीप नारायण इन भवनों को तोड़ने में लगे रहे. वहीं दूसरी तरफ अदालत ने कुलदीप नरायाण के निलंबन को काफी गंभीरता से लिया और इस पर सोमवार को सुनवाई करेगी. अदालत के तल्ख तेवर से ऐसा लगता है कि सोमवार का दिन सरकार और अदालत के बीच टकराव का अहम दिन होगा.
हालांकि कुछ सूत्रों से ऐसा आभास मिला है कि राज्य सरकार कुलदीप नारायण के निलंबन के फैसले को वापस लेने पर विचार भी कर सकती है. हालांकि इस मामले में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. निलंबन की खबरों के बाद नौकरशाही के गलियारे में भी हड़कम्प के हालात हैं. आईएएस एसोशियेशन के जिम्मेदारों को जैसे ही यह खबर मिली, एक दल मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से मिला और सरकार के इस फैसले पर अपना असंतोष जताया. एसोसियेशन के कुछ सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने इस मामले को उच्चस्तर के अफसरों के संग डिस्कस भी किया है.
गौरतलब है कि निगम आयुक्त कुलदीप नारायण को नगर विकास विभाग ने कारण बाओ नोटिस जारी किया. और कई सवाल पूछे. जिसके जवाब में निगमायुक्त ने स्वीकार किया कि निगम के पैसे खर्च करने में कोताही तो हुई लेकिन इसके लिए प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीति कारण जिम्मेदार हैं.
इस जवाब के बाद सरकार ने उनके निलंबन का फैसला बताया और निलंबन के कारणों में यह उल्लेख किया कि उनके द्वारा की गयी कोताही के करण उन्हें निलंबित किया गया.
सूत्र बताते हैं कि इस मामले में राज्य सरकार का फैसला कटघरे में आ सकता है क्योंकि सरकार ने निलंबन के जो कारण गिनाये हैं वह पर्याप्त नहीं माने जा सकते. इस प्रकरण में एक पेंच यह भी है कि राज्य सरकार को निलंबन पर अदालत से राय लेनी चाहिए ती क्योंकि अदालत ने निगमायुक्त के तबादले पर रोक लगा रखी है. अदालत की इस रोक के आलोक में यह मैसेज भी जा रहा है कि सरकार अदालत के फैसले का अवमानना कर गयी है. ये सारे तर्क राज्य सरकार के खिलाफ हैं और राज्य सरकार भी इसे बखूबी समझ रही है.
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