प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदाबेन ने सूचना अधिकार के तहत एक सूचना मांगी जिसे देने से इनकार कर दिये जाने के बाद अब यह बहस छिड़ गयी है कि अगर पीएम की पत्नी को सूचना नहीं दी जासकती तो एक आम आदमी को कैसे सूचना मिलेगी.
मालूम हो कि पीएम की पत्नी जशोदा बेन ने भारतीय संविधान के उन प्रावधानों एवं कानूनों के बारे में जानकारी मांगी थी जिसके तहत प्रधानमंत्री की पत्नी को सुरक्षा कवर दिया जाता है. खबर है कि मेहसाणा पुलिस ने यह कहते हुए देने से इनकार कर दिया कि मांगी गई सूचना स्थानीय खुफिया ब्यूरो (एलआईबी) से संबंधित है, जो आरटीआई के दायरे में नहीं आता है.
मेहसाणा जिले के पुलिस अधीक्षक जे आर मोथालिया ने कहा, ‘‘ उनके (जशोदाबेन) द्वारा मांगी गई सूचना स्थानीय खुफिया ब्यूरो से संबंधित है, लिहाजा यह उनको नहीं दी जा सकी और हमने इस घटनाक्रम के बारे में लिखित पत्र उन्हें भेज दिया है.’’
आरटीआई कानून 2005 में लागू किया गया और इसके तहत भारत के सभी नागरिक को अपेक्षित सूचना मोहैया करने का हक दिया गया है. हां यह अलग बात है कि देश की रक्षा और कुछ अन्य संवेदनशील सूचनायें न देने का हक सरकार ने अपने पास सुरक्षित रखा है. लेकिन देश की पीएम की पत्नी के नाते अगर जशोदाबेन ने यह सूचना मांगी कि उन्हें पीएम की पत्नी की हैसियत से सिर्फ इतना बताया जाये कि एक पत्नी के रूप में किन कानूनों के तहत क्या हक मिलें हैं तो यह मांग कहीं से देश की सुरक्षा के लिए संवेदनशील नहीं है.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पुलिस ने जशोदा बने को किसी दबाव में सूचना देने से इनकार कर दिया?
2005 में आरटीआई कानून लागू होने के बाद अकसर इस तरह के मामले सामने आते रहे हैं कि सरकार आम लोगों को सूचना देने से परहेज करती है. कई बार तो ऐसे मामले भी सामने आते रहे हैं कि सूचना मांगने वाले को अफसरान अनेक तरह से प्रताड़ित करते हैं ताकि वह सूचना मांगे ही नहीं. हालांकि सूचना नहीं देने की हालत में अफसरों को सदा देने तक का कानून है. लेकिन इन कानूनों पर अमल करने का हक भी तो अफरसों पर है .
Comments are closed.