बिहार सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव विवेक सिंह ने वन अधिकार कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने की सरकार की वचनबद्ता दोहराई है. .
उन्होंन ने पटना में आयोजित एक समारोह में कहा कि इस अधिनियम को हम कैसे प्रभावी तरीके से लागू करें ये सबसे बड़ी चुनौती है.
‘वन अधिकार कानून’ के प्रभावी क्रियान्वयन से संबंधित एक एकदिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला के आयोजन में बोलते हुए विवेक सिंह ने कहा कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए वन विभाग, भू-राजस्व विभाग और ‘अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग’ को मिलजुल कर काम करना होगा.
सक्रिय होंगी समितियां
उन्होंने कहा कि जिला, अनुमंडल और गांव स्तर पर जो समितियां बनी हैं उनको सक्रिय कर उन्हें चुस्त-दुरूस्त बनाया जाए ताकि वे वनवासियों के अधिकार संबंधी जो आवेदन हैं वो सही प्रक्रिया के तहत आए.
पैक्स (पुअरेस्ट एरियाज सिविल सोसायटी) एवं अनुसूचित जाति एवं अनु0जनजाति कल्याण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से ‘वन अधिकार कानून’ के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का मकसद राज्य में अनुसूचित जाति व जनजाति तथा वनों पर आश्रित समुदायों के विषय पर काम करनेवाले सामाजिक संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों तथा संबंधित व्यक्तियों व उनकी आवाजों को एक मंच पर लाकर भावी रास्ते पर विचार-विमर्श करना है।
विषय प्रवेश करते हुए पैक्स के नेशनल प्रोगा्रम मैनेजर श्री राजपाल ने कार्यशाला के मकसद के बारे में बिहार में वनवासियों से संबंधित जानकारी देते हुए बताया ‘‘ बिहार में आदिवासियों का आबादी का मात्र प्रतिशत 1.28 हैं लेकिन उनकी जनसंख्या 13 लाख से अधिक है जो उत्तरपूर्व के कई राज्यों से अधिक हैं।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के सचिव हुकुम सिंह मीना ने अधिनियम को लागू करने संबंधी व्यावहारिक चुनौतियों को रंखांकित करते हुए कहा ‘‘अनुभव ये बताता है कि अपनी संपत्ति पर अधिकार न हो पाने के कारण उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
विवादों से बचने की कोशिश
पहले चरण में हमें ऐसे मुद्दों को उठाना चाहिए जिसपर ज्यादा विवाद न हो, जो आसानी से हल हो जा सके। दूसरे चरण में विवादित मसलों पर हाथ डाले जाने चाहिए। अभी राज्य भर से लगभग 2900 आवेदन आए हैं लेकिन उनमें से 2354 आवेदन रद्द कर दिए गए हैं। हमें इस बात का विश्लेषण करना होगा कि इतनी बड़ी संख्या में आवेदनों को रद्द करने का क्या कारण थे.
सुझावस्वरूप हुकुम सिंह मीना ने बताया ‘‘ ऐसी स्थिति में सिविल सोसायटी केे सदस्यों को आगे आना होगा। देखना होगा कि कुछ गलत किस्म के लोग , माफिया आदि अधिनियम को अपने हितों के लिए मैनिपुलेट तो नहीं कर रहे हैं। हर हालत में हमें आदिवासियों को उनकी जमीन पर जो उनका कानूनी हक है उसे दिलाना है.
भू-राजस्व विभाग के अपर सचिव श्री बिनोद कुमार झा ने अपने संबोधन में कहा ‘‘ जो भी आवेदन दिए जाते हैं वे ग्राम सभा में ही दिए जाएं। उन आवेदनों और अन्य दस्तावेजों का सत्यापन राजस्व विभाग करेगा।’’
राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष श्री जगजीवन नायक ने इस अधिनियम केा लागू करने संबंधी जमीनी समस्याओं की ओर इशारा करते हुए बताया ‘‘आदिवासी को जमीन का अधिकार दिलाने में प्रशासनिक इच्छाशक्ति को और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। इसके प्रभावी क्रियान्यवन के लिए प्रत्येक जिले में एक-एक गैर सरकारी संगठन का चयन कर प्रभार दिया जाए ताकि कार्यान्वयन को गति प्राप्त हो। ’
रिपोर्ट
इस मौके पर अनुसूचित जनजाति और अन्य परपरांगत वन निवासी से संबंधित ‘वन अधिकारों की मान्यता’ पर एक रिपोर्ट भी जारी की गयी.
इस सत्र का संचालन करते हुए ‘पैक्स’ की स्टेट मैनेजर आरती वर्मा ने कहा ‘‘सिविल सोसायटी और अनुसूचित जाति एवं जन जाति कल्याण विभाग के संयुक्त प्रयास से एक संयुक्त कार्यनीति बनेगी ताकि वन अधिकार अधिनियम का सही तरीके से लागू किया जा सके।’’
इस सत्र की अध्यक्षता ए.एन.सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान,पटना के निदेशक श्री डी.एम दिवाकर ने किया।
इस मौके पर ‘प्रैक्सिस’ के अनिंदो बनर्जी, पैक्स के विवेक आनंद, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी सहित बड़ी संख्या में समाज के विभन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधमौजूद थे.