आने वाले 16 मई के बाद बिहार में राजनीतिक सुनामी आने के आसार हैं। क्या यह सुनामी नीतीश सरकार को गिरा सकती है?
विनायक विजेता
16 मई को लोकसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद अगर नीतीश की पार्टी जद यू अपना प्रदर्शन ठीक नहीं रख पाती है तो उनके नेतृत्व वाली सरकार पर भी खतरा मंडरा सकता है.
कुछ सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि उनके मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सहयोगी ही अपने दो विधायक पुत्रों के साथ सवर्ण जाति के कई विधायकों के साथ बगावत कर जदयू से नाता तोड़ भाजपा में शामिल हो सकते हैं. अगर ऐसी स्थिति बनी तो बिहार में होने वाला विधानसभा चुनाव 2015 के बजाय 2014 में ही हो सकता है.
अबतक जो संकेत मिल रहें हैं उसके अनुसार जदयू इस लोकसभा चुनाव में अपनी मौजूदा 20 सीटें किसी भी हाल में नहीं बचा पायेगा.
अगर ऐसा होता है तो चुनाव परिणाम के बाद जदयू में बगावत होना अवश्यम्भावी है। ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार के लिए अपने पद से इस्तीफा देने और सरकार को भंग कर दुबारा चुनाव कराने की सिफारिश के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं बचेगा। बहुचर्चित ‘फोर्ब्स’ पत्रिका द्वारा 2010 में ‘पर्सन आफ द ईयर’ चुने गए नीतीश कुमार के लिए चल रहे लोकसभा चुनाव में अपनी और अपनी पार्टी के लिए इज्जत बचानी मुश्किल दिख रही है।
लोकसभा के अब तक के तीन चरण के हुए चुनाव में सवर्ण जाति के मतदाताओं द्वारा नीतीश कुमार और जदयू के खिलाफ दिखायी गई एकजूटता ने भी संकेत दिया है.
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार राज्य के एक वरिष्ठ मंत्री नरेन्द्र सिंह भी चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। अगर जदयू पांच सीटों के अंदर सिमट जाती है तो नरेन्द्र सिंह अपने दो विधायक पुत्रों सहित सवर्ण जाति के लगभग एक दर्जन से अधिक विधायकों के साथ पार्टी तोड़ भाजपा में इस शर्त पर शामिल हो सकते हैं.