पटना में दलित चेतना पर छिड़ी एक बहस में वक्ताओ ने कहा कि मौजूदा दौर में दलित चेतना में दक्षिणपंथी झुकाव साफ-साफ दिख रहा है, जो एक खतरनाक लक्षण है।
दलित जनप्रतिनिधियों का चुनाव केवल दलित ही करें। दलितों की उपजाति के बीच शादी-विवाह शुरू हो। इससे दलित चेतना को नया आयाम मिलेगा। मौजूदा दौर में दलित चेतना में दक्षिण पंथी झुकाव साफ-साफ दिख रहा है, जो एक खतरनाक लक्षण है।
हमें विचार करना होगा कि क्या अस्मिता की राजनीति दलितों की चेतना को दक्षिण पंथ की ओर तो नहीं ले जाएगी। ये बातें जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में ‘उत्तर भारत में दलित चेतना का निर्माण पर आयोजित परिचर्चा में विभिन्न वक्ताओं ने कहीं।
बिहार विधान सभा के अध्यक्ष श्री उदय नारायण चैधरी ने बतौर मुख्य वक्ता दलितों की चेतना के विकास में समाजवादी और नक्सलवादी आंदोलनों के प्रभाव की चर्चा की। उन्होंने इस बात पर चिन्ता जतायी कि आज के दौर में दलितों की चेतना कुन्द हुई है। युवा पीढ़ी दलित समाज को आधुनिक और उन्नत बनाने के बारे में विचार-विमर्श करने के बदले भौतिकवादी सुखों में डूबी हुई है। उन्होंने कहा कि दलितों की चेतना में ऐतिहासिक रूप से डाॅ॰ भीमराव अम्बेडकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बाबा साहेब न होते तो आज आरक्षण अपने मौजूदा रूप में नहीं होता और दलितों का सामाजिक और राजनीतिक सशक्तीकरण भी नहीं हुआ होता। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि दलित प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार केवल दलितों को ही मिलना चाहिए। दलितों के बीच भेदभाव को समाप्त करने के लिए इनकी उपजाति में शादी-विवाह शुरू होना चाहिए।
टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंस, मुंबई के प्रोफेसर पुष्पेन्द्र ने दलित चेतना में दक्षिण पंथी झुकाव को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि गुजरात से लेकर मुजफ्फरनगर के दंगों ने मुसलमानों के खिलाफ दलितों की भूमिका एक खतरनाक लक्षण को प्रदर्शित करती है। हमें इस खतरे पर गंभीरता से विचार करना होगा। ऐतिहासिक रूप से दलितों और मुसलमानों के बीच सहकार रहा है लेकिन मौजूदा दौर में इसे साजिशपूर्ण तरीके से तोड़ा जा रहा है। हमें विचार करना होगा कि अस्मिता की राजनीत क्या दलितों की चेतना को दक्षिणपंथी झुकाव देने के लिए जिम्मेवार है ? प्रो0 पुष्पेन्द्र ने कहा कि दलित पूँजीवाद की बातें और वामपंथ को दलित विरोध साबित करने की बौद्धिक कोशिशें किसी साजिश का हिस्सा है या नहीं ? हमें इस सवाल पर भी विचार करना चाहिए।
जी0बी0 पन्त सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद के प्रो0 बद्री नारायण ने दलित चेतना में अंग्रेजी राज की भूमिका की चर्चा की। उन्होंने 70 के दशक में यूपी में चले नारा-मवेशी आंदोलन की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि जनतंत्र में संख्या की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। दलितों में संख्या की दृष्टि से मजबूत जातियों को राजनीत और प्रशासन में जाने का मौका पहले मिला, उन्हें अधिक हिस्सेदारी मिली। लेकिन संख्या में कम दलित जातियों को अब भी राजनीति और प्रशासन में हिस्सा नहीं मिला है। हमें इस पर विचार करना चाहिए कि हासिए पर खड़ी दलित जातियों को मुख्यधारा में कैसे शामिल किया जाए ?
इससे पहले अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने किया। मंच संचालन डाॅ0 वीणा सिंह और धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 सरोज कुमार द्विवेदी ने किया।
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