बिहार में खरबों रुपये की जायदाद से ना जायज कब्जे को हटाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड 200 में से ज्यादा मुकदमों में से 50 में जीत हासिल कर चुका है पर कम लोग जानते हैं कि इस जीत में एडवोकेट राशिद इजहार की अहम भूमिका है.
इस कानूनी लड़ाई की जिम्मेदारी बोर्ड ने पटना हाईकोर्ट के वकील राशिद इजहार को सौंप रखी है. 2010 से अब तक राशिद ने 50 केसों में बोर्ड को जीत दिला कर रिकार्ड बना दिया है. पटना हाई कोर्ट के नई पीढी के विख्यात वकीलों में शुमार राशिद इजहार की बदौलत बोर्ड की जायदाद की लूट-खसोट, नाजायज कब्जे व खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने में काफी मदद मिली है.
राशिद, न सिर्फ बोर्ड की कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं बल्कि वह वक्फ की जायदाद के सही उपयोग और इसका लाभ गरीबों और यतीमों के लिए कैसे हो, इस पर भी काम कर रहे हैं. आज बोर्ड के प्रयासों के कारण पिछले कुछ सालों में बोर्ड की जायदाद से होने वाली आमदनी में दो गुना से ज्यादा इजाफा भी हुआ है.
नयी पीढ़ी के नुमाइंदा वकील
राशिद इजहार पटना हाई कोर्ट में नयी पीढी के नुमाइंदा वकीलों में से एक हैं.आम तौर पर अपने कामों पर खुल कर बात नहीं करते लेकिन वक्फ बोर्ड की जायदाद की कानूनी लड़ाई जिस तरह से उन्होंने जीती है खुद, सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्म्द इरशादुल्लाह भी उनके योगदान की चर्चा करते हुए कहते हैं कि राशिद इजहार की मेहनत और कानूनी पेचीदगियों की जानकारी के कारण बोर्ड को उन्होंने 50 से ज्यादा केसों में जीत दिलायी है. इन तमाम मालमों में वक्फ की जायदाद पर नाजायज कब्जे और उसकी जमीनों की गैरकानूनी बिक्री से जुड़े हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अब्बास तो यहां तक कहते हैं कि राशिद इजहार ने महज 4 साल में बोर्ड के लिए जितनी कानूनी लड़ाई जीती है वह एक मिसाल है.
ध्यान रहे कि वक्फ की जायदाद की निगरानी, प्रबंधन और उसके सही उपयोग के लिए 1954 में केंद्र सरकार ने वक्फ ऐक्ट बनाया था तब से अब तक बोर्ड सैकड़ों मुकदमे लड़ रहा है. लेकिन पिछले कुछ सालों में इसने लगातार कई मुकदमें जीते हैं जिसके कारण इसकी सम्पत्ति पर होने वाले ना जायज कब्जे खत्म होने के रास्ते खुलने लगे हैं.
हालांकि कि राशिद इस कामयाबी के बरअक्स इसके सामिजक पहलू को ज्यादा महत्व देते हैं. नौकरशाही डॉट इन से बातचीत में कहते हैं- “वक्फ की सम्पत्ती की देख भाल की जिम्मेदारी सरकार द्वारा गठित बोर्ड पर जितनी है उससे ज्यादा यह जिम्मेदारी सोसाइटी के लोगों की है. इस सम्पत्ति को बचाने, इसको मैनेज करने और इसके सदुपयोग करने की जिम्मेदारी हम सबकी है. लेकिन दुख की बात है कि हमने अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ दिया है. इसकी परिणाम यह हुआ है कि वक्फ जायदा के ऊपर नाजाज कब्जे लगातार बढ़ते चले गये हैं. इस तरह के नाजायज कब्जे मुस्लिम समाज के लोग भी शामिल हैं और गैरमुस्लिम भी इसमें शामिल हैं”.
राशिद कहते हैं कि यह सामान्य सी बात है कि अगर आप जहां कहीं भी कीमती जमीनों को लावारिस छोड़ेंगे तो किसी न किसी की बुरी और लालची नजर उस पर पड़ेगी और लोग उस पर कब्जा जमायेंगे.
विवादों का निपटारा
वक्फ की जायदाद पर नाजायज कब्जे का मामला कोई आज की बात नहीं है. अंग्रेजों के जमाने से वक्फ सम्पत्ति पर नाजायज कब्जे की बात सामने आने लगी थी. इसी बात के मद्देनजर इसकी सम्पत्ति की निगरानी, प्रबंधन और इसके सही उपयोग के लिए सेंट्रल वक्फ ऐक्ट 1954 बनाया गया. समय-समय पर इस ऐक्ट में आवश्यक संशोधन भी किये गये. एक जनवरी 1996 को संशोधित वक्फ ऐक्ट 1995 को बिहार में लागू किया गया. इसके बाद वक्फ ऐक्ट में 2013 में कुछ संशोधन किये गये. लेकिन राशिद इजहार का कहना है कि आप कोई भी कानून बना लें लेकिन उस पर अमल करने और कराने वाले लोग सजग न हों तो उसका कोई फायदा नहीं हो सकता. इसलिए लोगों को इस मामले में जागरूक करने की जरूरत है.
राशिद कहते हैं कि “इसके लिए वक्फ बोर्ड के अधिकारियों के साथ उनकी कई बार बातचीत भी हुई है. जहां एक तरफ वक्फ की जायदाद पर नाजायज कब्जे की कानूनी लड़ाई अदालत में लड़ी जा रही है वहीं इसकी सम्पत्ति की निगरानी और इसके सही उपयोग के लिए भी काम शुरू हुआ है”.
क्या है वक्फ जायदाद
मानवता की सेवा और भलाई के लिए दान में दी गयी जायदाद को वक्फ जायदाद कहते हैं. कालांतर में अमीरों ने अपने हिस्से की जमीन मानवता की सेवा के लिए दान में दी. समय के साथ इन जायदाद का उपयोग जरूरतमंदों के लिए किया जाता रहा है. लेकिन कुछ लोगों ने इस पर गैर कानूनी कब्जे जमा लिये. इन जायदाद की हिफाजत के लिए केंद्र सरकार ने बाजाब्ता एक ऐक्ट बनाया जिसे वक्फ ऐक्ट के नाम से जानते हैं. जरूरत के हिसाब से इस ऐक्ट में संशोधन भी होता रहा है.