रोंगटे खड़े कर देने वाली यह भयाव घटना राघोपुर दियारा की है जब 45 लोगों को ले जा रही नाव का इंजन खराब हो गया और 25 स्कूली छात्रों व तीन शिक्षकों ने आपदा प्रबंधन विभाग से गुहार लगाई लेकिन कोई बचाने नहीं आया. पूरी रात ईश्वर से जीवन की भीख मांगते लोगों की हालत से किसी की भी रूह थर्ऱा जाये.
पटना से थोड़ी दूरी पर हुई इस घटना की जानकारी पत्रकारों के वाट्सऐप ग्रूप से मिली. इसके बाद सुधी पत्रकारों ने आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव व्यासजी को देने चाही, तब तक रात के 12 बज चुके थे. न तो व्यासजी और न ही उनके विभाग के टालफ्री नम्बर पर कोई फोन उठाने को तैयार था. इसबीच नदी की तेज धार में फंसे मनोज कुमार के फोन की बैट्री भी आफ हो गयी.
सारी रात बच्चे और बूढ़े जोर-जोर से आवाज लगाते रहे कि कहीं कोई उनकी आवाज सुन कर उनके लोकेशन को समझ सके. जब सरकारी राहत की सारी उम्मीदें टूट गयीं तो सुरेंद्र कुमार ने अपने मोबाईल से अपने गांव के साथियों को फोन किया. इतना सुनते ही गांव में हाहाकार मच गया और वहां से लोगों ने तेज रौशनी वाले टार्च के साथ नाव के काफिला ले कर चल पड़े.
सुरेंद्र कुमार ने फोन पर नौकरशाही डॉट कॉम को बताया कि उनके लिए सबसे कठिन बच्चों का ढाढस बढ़ाना था. बच्चे चीख-चीख कर रो रहे थे. उनके चीखने से बड़े लोगों का भी मनोबल टूटता जा रहा था. इसी बदहावशी में पूरी रात कटी. उधर गांव के लोग नाव का काफिला ले कर दियारा में फंसे लोगों को खोजने तो निकल पड़े थे लेकिन अंधेरे में उनका कोई अता पता नहीं चल पा रहा था. रात आठ बजे से ले कर चार बजे सुबह तक गांव वाले से उनका टेलिफोनिक सम्पर्क तो बना रहा लेकिन वे एक दूसरे को खोज नहीं पा रहे थे. लेकिन जब सुबह पौ फटा और कुछ दिखाई पड़ने लगा तो उन्हें अचानक फंसी नाव पर नजर पड़ी और उन सभी को बचा लिया गया. सुबह 7.50 पर सुरेंद्र कुमार ने फोन कर नौकरशाही डॉट कॉम को बताया कि अब तमाम लोग सुरक्षित हैं और वे अपने – अपने घरों के लिए चले गये हैं.
इस पूरे घटनाक्रम के लिए अफसोसनाक पहलू ये रहा कि आपदा की घड़ी में अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दे कर अपदा प्रबंधन विभाग अपनी तत्परता का बखान करता है लेकिन वहां की हालत यह है कि टॉलफ्री नम्बर पर फोन रिसीव करने वाला तक कोई नहीं था.