पीएम कार्यालय के तत्कालीन निदेशक ने इस बात का खुलासा किया है कि समान नागरिक संहिता की हिमायत करने वाली मोदी सरकार के एक मंत्री ने ही शाहबानो मामले में अदालत के फैसले को पलटवाया था.
1985 में सर्वोच्च न्यायालय ने तब अपने फैसले में कहा था कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 जो परित्यक्त या तलाकशुदा महिला को पति से गुजारा भत्ता का हकदार मानता है, मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है.
पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने द हिंदू में लिखे अपने एक लेख में इस बात का खुलासा किया है. उन्होंने कहा है कि मोदी सरकार के वर्तमान विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने ही इस मामले में तत्कालीन पीएम राजीव गांधी को इस बात के लिए राजी किया कि संसद इस फैसले पर मुस्लिम संगठनों के पक्ष में आये.
हबीबुल्लाह उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में निदेशक के पद पर नियुक्त थे और अल्पसंख्यक मुद्दों को देखते थे। एक समाचार-पत्र में प्रकाशित अपने स्तंभ में हबीबुल्लाह ने कहा है, मैं अपनी मेज पर ऐसी याचिकाओं और पत्रों का अंबार पड़ा पाया, जिसमें अदालत के फैसले की आलोचना की गई थी। इसमें सरकार से हस्तक्षेप कर अदालत का फैसला पलटने की मांग की गई थी।
वह आगे लिखते हैं, तब मैंने सुझाव दिया था कि हर याचिकाकर्ता से कहा जाए कि वे सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करें। एक बार तो ऐसा लगा कि मेरा सुझाव मान लिया गया, हालांकि मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। हबीबुल्ला आगे कहते हैं, तभी एक दिन जब मैंने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चेंबर में प्रवेश किया तो मैंने राजीव गांधी के सामने एम.जे. अकबर को बैठा पाया। मैंने देखा कि अकबर राजीव गांधी को इस पर राजी कर ले गए थे कि यदि केंद्र सरकार शाह बानो मामले में हस्तक्षेप नहीं करती है तो पूरे देश में ऐसा संदेश जाएगा कि प्रधानमंत्री मुस्लिम समुदाय को अपना नहीं मानते।