महागठबंधन सरकार के इस्तीफा विवाद का आज 21वां दिन है. 28 जुलाई से असेम्बली का सत्र शुरू होना है. राजद, जद यू व भाजपा अलग अलग अपने विधायकों की बैठक में रणनीति तय कर रहे हैं. सबकी आंखें नीतीश पर टिकी हैं, पर होगा क्या?
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
7 जुलाई को सीबीआई द्वारा लालू परिवार के आवास पर छापेमारी और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर एफआईआर के बाद गठबंधन के अंदर गतिरोध जारी है. हालांकि अभी तक जद यू ने तेजस्वी के इस्तीफे की औपचारिक मांग कभी नहीं की पर राजद पर दबाव बना हुआ है कि तेजस्वी पद छोड़ें. राजद ने बार बार साफ किया है कि तेजस्वी इस्तीफा नहीं देने वाले. राजद मानता है कि तेजस्वी उसके फेस हैं. उन्हें वह किसी भी सूरत कुर्बान नहीं करेगा. भाजपा बाहर से दबाव बना रही है कि तेजस्वी के इस्तीफा न देने की सूरत में नीतीश उन्हें बर्खास्त करें. पर नीतीश इस पर चुप हैं. राजद जदयू और कांग्रेस तमाम दलों की जहां तक बात है, सब कह रहे हैं कि गठबंधन सलामत है. पर गतिरोध पर अंतिम विराम अभी तक नहीं लगा है. लिहाजा आज की बैठक पर सब की निगाहें टिकी हैं.
उधर इस मामले में मीडिया में खबरें कम, स्पेकुलेशन का दौर जारी है. और ज्यादतर मीडिया यह मान कर चल रहे हैं कि नीतीश कोई कड़ा स्टेप ले सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि राजनीति सत्ता के लिए की जाती है, सत्ता गंवाने के लिए नहीं. ऐसे में इस बात की सबसे ज्यादा उम्मीद है कि गतिरोध खत्म होगा और सरकार बचेगी. ऐसा इसलिए कि जो लोग यह गणित समझाने में लगे हैं कि नीतीश को भाजपा का समर्थन मिल जायेगा और वह सरकार बचा लेंगे. पर नीतीश के लिए यह विकल्प आत्मघाती होगा, यह नीतीश बखूबी जानते हैं. अगर नीतीश को इस विकल्प पर सोचना होता तो वह 21 दिनों तक इस उहापोह में नहीं रहते. फैसला कर चुके होते. वह बीच का रास्ता निकालने में लगे हैं.
उधर राजद टस से मस नहीं हो रहा. राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि तेजस्वी को बलि का बकरा बनाना राजद के भविष्य के लिए खतरनाक है( जब तक कि सीबीआई चार्जशीट न दाखिल कर दे). उधर इस मामले का हर पार्टी अपने राजनीतिक लाभ हानि के लिहाज से हिसाब लाग रही है. लेकिन ऐसे में देखें तो पता चलता है कि इस गतिरोध का सबसे ज्यादा राजनीतिक लाभ अगर किसी पार्टी को मिला है तो वह राजद है. राजद के प्रति उसके वोटरों में भारी गोलबंदी हुई है. कुछ जानकार तो यहां तक बता रहे हैं कि इस प्रकरण के बाद यादवों के उस वर्ग में भी राजद के प्रति सहानुभूति बढ़ गयी है जो छिटक कर 2014 में भाजपा की तरफ चला गया था. यही कारण है कि जद यू के वरिष्ठ नेता विजेंद्र यादव ने कुछ दिनों पहले इस बात की तरफ इशारा भी किया था. वहीं दूसरी तरफ पप्पू यादव जैसे राजद विरोधी नेताओं को भी इस बात का एहसास हो चला है. और यही कारण है कि पप्पू यादव, लालू के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का जोखिम नहीं ले रहे हैं.
उधर नीतीश कुमार को भी इन बातों का पूरा एहसास है. नीतीश समझते हैं कि अगर उन्होंने कोई सख्त कदम उठाया तो उससे यादव के साथ साथ मुसलमानों का बड़ा वर्ग भी उनसे छिटक जायेगा. ऐसे में आज की तमाम दलों की बैठक काफी महत्वपूर्ण है. सबको इस बात का इंतजार है कि अब क्या होगा.