यह अनुमान लगाना सही प्रतीत नहीं होता कि आगामी चुनावों में भाजपा बिहार में जदयू से बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है.जदयू के समर्थन का आधार भाजपा की तुलना में बड़ा है.
संजय कुमार, फेलो सीएसडीएस
बिहार में जदयू-भाजपा गंठबंधन टूटने से बिहार में नीतीश कुमार सरकार के स्थायित्व पर असर भले न पड़ा हो, लेकिन इसने राज्य में एक तरह की राजनीतिक अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है. राज्य में कोई भी प्रमुख दल इस वक्त यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि नयी परिस्थिति का उसके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा.
आम लोगों के साथ-साथ नेताओं के मन में भी बड़ा सवाल यही है – गंठबंधन टूटने का बड़ा नुकसान किसे होगा, जदयू को या भाजपा को? इस सवाल का एक सरल उत्तर यह है कि दोनों को नुकसान होगा, 2009 के लोकसभा या 2010 के विधानसभा चुनाव का शानदार प्रदर्शन दोहराना उनके लिए अब आसान नहीं होगा. साथ ही अब लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल के लिए बेहतर प्रदर्शन की गुंजाइश बढ़ गयी है.
2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गंठबंधन ने राज्य की कुल 40 सीटों में से 32 पर कब्जा किया था. गंठबंधन ने 2010 के विधानसभा चुनावों में भी अपने इस शानदार प्रदर्शन को जारी रखा. इस चुनाव में गंठबंधन ने कुल 243 में से 209 विधानसभा क्षेत्रों (जदयू 118, भाजपा 91) में जीत हासिल की. लेकिन आगामी चुनावों में दोनों दल उन तमाम क्षेत्रों में एक-दूसरे के सामने होंगे, जहां उन्होंने चुनाव जीतने में एक-दूसरे की मदद की थी.
बड़ा नुकसान किसका
इस दौरान उन्हें राजद की चुनौती से भी पार पाना होगा, जो कुछ महीने पहले तक भले कमजोर माना जा रहा था, पर इस घटनाक्रम ने उसे एक वापसी का अच्छा मौका दे दिया है. महाराजगंज उपचुनाव जीत कर राजद ने लंबे समय बाद पुनर्वापसी के संकेत पहले ही दे दिये हैं. जाहिर है, गंठबंधन टूटने से भाजपा व जदयू, दोनों को नुकसान तय है, पर असली सवाल फिर भी बचा रह जाता है कि बड़ा नुकसान किसे होगा?
राजधानी पटना में लोगों का मूड परखने और सार्वजनिक स्थानों की बहस सुनने के बाद शुरुआती धारणा यही बन रही है गंठबंधन तोड़ने की पहल नीतीश कुमार ने की है और फैसला सिद्धांतों से ज्यादा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर आधारित है.
पटना में लोगों का यह नजरिया मुझे कतई हैरान नहीं कर रहा था, क्योंकि आंकड़े बताते रहे हैं कि कई अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी शहरी मतदाताओं पर भाजपा की बेहतर पकड़ है. पर हमें नहीं भूलना चाहिए कि ग्रामीण इलाकों में भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रहा है. इसलिए एक ऐसे राज्य में, जहां की बड़ी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, भाजपा के लिए अगले आम चुनाव में बचे काफी कम समय में ग्रामीण इलाकों में अपने वोट बैंक का विस्तार करना बेहद कठिन हो सकता है.
यह सही है कि 2010 के विधानसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों की सफलता का अनुपात जदयू की तुलना में बेहतर रहा है. भाजपा के 102 उम्मीदवारों में से 91 जीते थे. पार्टी का वोट शेयर भी जदयू की तुलना में कुछ बेहतर रहा था. (जहां भाजपा उम्मीदवार मैदान में थे, वहां पार्टी को कुल मतदान में से 39.5 फीसदी मत मिले थे, जबकि जहां जदयू के उम्मीदवार थे, वहां पार्टी को कुल मतदान में से 38.7 फीसदी मत मिले.) पर भाजपा का यह प्रदर्शन मुख्यत: शहरी व कस्बाई इलाकों में केंद्रित था.
शहरी इलाकों की 13 सीटों में से भाजपा ने 11 पर जीत हासिल की थी. कस्बाई इलाकों की 12 सीटों पर भी उसे कामयाबी मिली थी. पूर्ण शहरी इलाकों में भाजपा को 46.3 फीसदी मत मिले थे, जबकि कस्बाई इलाकों में उसके खाते में 32.3 फीसदी मत आये थे. दूसरी ओर ग्रामीण इलाकों में स्थित शेष 213 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के खाते में सिर्फ 13.3 फीसदी मत पड़े थे.
भाजपा: ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार की चुनौती
भाजपा के समर्थन का आधार मुख्यत: अगड़ी जातियों के मतदाताओं के बीच है, जिन्होंने पिछले चुनावों में पार्टी के पक्ष में बड़ी संख्या में मतदान किया. लेकिन जदयू के साथ गंठबंधन (1995 में समता पार्टी) से पहले तक भाजपा अन्य जातियों या समुदायों के मतदाताओं को आकर्षित करने में नाकाम रही थी. इसलिए भाजपा को यदि बिहार के चुनावी मैदान में सशक्त दावेदारी पेश करनी है, तो उसके सामने बड़ी चुनौती न केवल ग्रामीण इलाकों में आधार बढ़ाने की है, बल्कि उसे अगड़ी जातियों से इतर अन्य जातियों और समुदायों के वोटरों को भी आकर्षित करना है.
पिछले सालों में चुनाव-दर-चुनाव राजद का प्रदर्शन खराब होता गया है, बावजूद इसके पार्टी ने मुसलिम और यादव मतदाताओं (एमवाइ) पर अपनी पकड़ काफी हद तक बनाये रखी है. इसलिए अब भाजपा के विरोध के बीच नीतीश कुमार के लिए लालू प्रसाद की चुनौती से पार पाना कठिन हो जायेगा. लेकिन यह अनुमान लगाना सही प्रतीत नहीं होता कि भाजपा बिहार में जदयू से बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है.
जद यू का समर्थन आधार भाजपा से बड़ा
जदयू के समर्थन का आधार भाजपा की तुलना में काफी बड़ा है. 2010 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो पूरे राज्य में कुल मतदान में से जदयू को 22.6 फीसदी मत मिले थे, जबकि ग्रामीण इलाकों के 213 विधानसभा क्षेत्रों में हुए मतदान में से उसे 24.6 फीसदी मत मिले थे. साफ है कि पूरे राज्य की तुलना में ग्राणीण क्षेत्रों में पार्टी को दो फीसदी अधिक मत मिले थे.
प्रभात खबर से साभार