लोकसभा ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था से संबंधित ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक पारित कर दिया। संविधान का 124वां संशोधन विधेयक 2019 के पक्ष में 323 मत पड़े, जबकि तीन सदस्यों ने विरोध में मतदान किया। चर्चा के जवाब से असंतुष्ट अन्नाद्रमुक के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया।

संविधान का 124वां संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित


इस विधेयक के जरिये संविधान के 15वें और 16वें अनुच्छेद में संशोधन किये गये। इसके कानून बनने के बाद आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में 10 प्रतिशत तक आरक्षण मिल सकेगा। यह आरक्षण मौजूदा आरक्षणों के अतिरिक्त होगा और इसकी अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत होगी।

इस संविधान संशोधन के जरिये सरकार को “आर्थिक रूप से कमजोर किसी भी नागरिक” को आरक्षण देने का अधिकार मिल जायेगा। “आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग” की परिभाषा तय करने का अधिकार सरकार पर छोड़ दिया गया है, जो अधिसूचना के जरिये समय-समय पर इसमें बदलाव कर सकती है। इसका आधार पारिवारिक आमदनी तथा अन्य आर्थिक मानक होंगे।

विधेयक के उद्देश्य तथा कारणों में यह स्पष्ट किया गया है कि सरकारी के अलावा निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में भी आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू होगी, चाहे वह सरकारी सहायता प्राप्त हो या न हो। हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत स्थापित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में यह आरक्षण लागू नहीं होगा। साथ ही नौकरियों में सिर्फ आरंभिक नियुक्ति में ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण मान्य होगा।

विभिन्न संशोधनों पर मतदान से पहले चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सदस्यों की इस आशंका को निर्मूल करार दिया कि यह संशोधन विधेयक कानून में परिवर्तित होने के बाद जब न्यायिक समीक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय के समक्ष जायेगा, तो नहीं टिक पायेगा। उन्होंने कहा कि पहले जब भी इस तरह के प्रयास किये गये, तो इसके लिए संवैधानिक प्रावधान नहीं किये गये थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा।

By Editor


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