कुछ ही दिन पहले महेश कुमार रेलवे के महाप्रबंधक से रेलवे बोर्ड के सदस्य बने थे. गिनीज बुक रिकार्ड धारी महेश अब 90 लाख रुपये रिश्वत मामले में सलाखों के पीछे हैं. जानिए महेश के बारे में.
महेश कुमार ने 1975 में रुड़की से इलेक्ट्रानिक्स एंड कम्यूनिकेशंस इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की थी और उसी साल उन्होंने रेलवे में सिग्नल इंजीनियर्स सेवा ज्वाइन की.
38 साल का लम्बा अनुभव उन्हें ऊचाइयों तक पहुंचाने में सहायक रहा. उन्हें तकनीकी, परियोजना और प्रशासन संबंधी गहरा अनुभव है.
उनका नाम गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज है, क्योंकि उन्होंने महज 36 घंटे के भीतर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन में दुनिया की सबसे बड़ी रूट रिले इंटरलाकिंग प्रणाली स्थापित करने का करिश्मा कर दिखाया.
महेश कुमार तेजी से बदलते रेलवे की जरूरत बन गये. उन्होंने दोहरीकरण परियोजना को रिकार्ड समय में पूरा करने, कोहरे के समय काम आने वाली आटोमैटिक सिग्नलिंग स्थापित करने का भी कारनामा अंजाम दिया. इतना ही नहीं रेलवे की 139 पूछताछ सेवा प्रारंभ करने का श्रेय भी उनके ही नाम है.
पर एक योग्य महेश कुमार के चेहरे के पीछ छुपे दूसरे चेहरे ने उनकी जिंदगी भर की मेहनत को मिट्टी में मिला दिया. रेल मंत्री पवन कुमार बंसल के भांजे के साथ रिश्वतखोरी का खेल खेलने की उनकी करतूत उजागर हो गयी है.
वह हवालात की हवा खा रहे हैं. अब सस्पेंड हैं.