गैंग्स्टर बृजनाथी सिंह की हत्या को राजनीति के चश्मे से देखने वालों की अपनी सियासत है. वे सियासी चश्मे से ही देखेंगे. विपक्षी दलों के लिए हर घटना जहां सियासी खुराक होती है वहीं सत्ताधारी दल के लिए ऐसी घटनायें गंभीर चुनौतियां भी होती हैं और कठघरे में घिरने की वजह भी. [dropcap][/dropcap]
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
चूंकि सत्ताधारी पार्टी कानून व्यस्था की जिम्मेदार होती है, सो उसे ऐसी घटनाओं पर बैकफुट पर आना ही है. लेकिन प्रशासन को इन सियासी पचड़ों से कोई सरोकार नहीं. इसलिए पुलिस की जांच की अपनी दिशा है. वह चलेगी. और संभव है पुलिस सच्चाई को सामने ले कर आयेगी.
कौन था बृजनाथी
बृजनाथी ने अपना करियर बिहार पुलिस में एक सिपाही के रूप में शुरू की थी. वह बिहार पुलिस का भगोड़ा था. पुलिस ने उस पर मुकदमा दर्ज किया था. वह पुलिस से फरार हो कर सियासत में सक्रिय हुआ. वह हरिहर सिंह की सियासी ताकत बना. हरिहर सिंह से चंद्रमा सिंह की अदावत थी. चंद्रमा सिंह का राघोपुर में खौफ था. 1990 में बृजनाथी पर चंद्रमा सिंह ने गोलियां चलायी थीं. तब उसकी जान बच गयी थी. तभी से बृजनाथी धीरे-धीरे गैग्स्टर के रूप में उभरने लगा. कई मामलों में जेल गया. उसका पूरा करियर हिंसा और अपराध से भरा रहा . बताया जाता है कि चंद्रमा सिंह के आतंक को बृजनाथी ने समाप्त किया. फिर राघोपुर में उसका एकक्षेत्र राज कायम हुआ. 2001 में वह पंचायत का मुखिया भी बना.
लेकिन जांच का दायरा जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, इससे मामले की पेचीदगी की गुत्थी फिलाहाल सुलझी नहीं है. इन गुत्थियों पर आगे बढ़ने से पहले पुलिस जांच करने वाली एसआईटी बृजनाथी का पूरा रिकार्ड खंगाल चुकी है. बृजनाथी की पहचान राघोपुर दियारा में एक ड्रेडेट गैंग्स्टर की थी. हत्या, अपहरण जैसे गंभीर आरोपों के उस पर दो-एक नहीं बल्कि 21 केस दर्ज हैं. राघोपुर इलाके में बृजनाथी के नाम से लोग थर्रा से जाते थे. दियारा के इस इलाके में बृजनाथी का काफी विस्तारित साम्राज्य था. इलाके में कई गैंग सक्रिय थे. क्षेत्र में दो तरह के गैंग सक्रिय रहे हैं. बृजनाथी का गिरोह उनमें से एक था. दूसरी तरफ से वे लोग थे जो किसी न किसी कराण बृजनाथी से अलग हो चुके थे. ऐसा नहीं है कि यहां कि गिरोहबाजी सिर्फ राजपूत बनाम यादवों की रही हो. बृजनाथी गैंग से अलग खुद उनके स्वजातीय भी उनके जानी दुश्मन थे.
बालू माफियाओं का वर्चस्व
राघोपुर दियारा बालू माफियाओं के वर्चस्व की लड़ाई के लिए बदनाम रहा है. बालू ठेकेदारी के लिए हत्या प्रति हत्या की यहां लम्बी दास्तान है. बृजनाथी का नाम ऐसे कई संगीन मामलों में आते रहे हैं. ध्यान देने की बात यह भी है कि यही वह राघोपुर दियारा का इलाका है जहां गत 31 जनवरी को पांच हजार करोड़ रुपये के रेलपुल पर काम शुरू हुआ है. ऐसे में ठेकेदारों के साम्राज्य को बचाने-बनाने और वर्चस्व कायम करने की होड़ से इनकार नहीं किया जा सकता. पुलिस की जांच के दायरे में यह तथ्य भी है. एडीजी सुनील कुमार की नजर इस ओर भी है. सुनील तो यहां तक कहते हैं कि इस हत्या के पीछे गैंग्वार ही है. बृजनाथी की हत्या में जिन लोगों के नाम आ रहे हैं उनमें मुन्ना सिंह प्रमुख है. बृजनाथी के बेटे राकेश रौशन ने भी उस पर शक किया है. दूसरी तरफ कुछ राजनीति दल इसे सामाजिक वैमनस्य की तरफ खीचने की कोशिश में हैं. इस हत्या में सुबोध राय और सुनील राय को भी पुलिस तलाश रही है. मुन्ना सिंह के बारे में फिलहाल इतना बताना जरूरी है कि वह लम्बे समय तक बृजनाथी गैंग का सदस्य था. बाद में बृजनाथी से उसकी रंजिश बढ़ी और वह अलग हो गया.
राजनीति महज सीढ़ी
अगर कुछ राजनीतिक दल, खास कर एलजेपी इसे पॉलिटकल मर्डर बता रही है तो इस ऐंगल पर भी कुछ बातें गौर करने की जरूरत है. भले ही सत्ता पक्ष बृजनाथी को एलजेपी का मसलमैन कह कर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर लेना चाहता हो, पर सच्चाई यह है कि बाहुबलियों की कोई राजनीति विचारधारा नहीं होती, यह नहीं भूलना चाहिए. यह ठीक है कि बृजनाथी एलजीपी का नेता था. उसकी पत्नी वीणा देवी ने 2000 में राबड़ी देवी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. पर सच्चाई यह भी है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में बृजनाथी की लाख कोशिशों के बावजूद जब एनडीए ने राघोपुर की सीट एलजेपी को नहीं दी तो बृजनाथी ने अपनी राजनीतिक वफादारी फौरन बद दी. फिर उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट से अपने बेटे रौशन को खड़ा कर दिया.
गैंगवार तो नहीं ?
इसके बावजूद कुछ पालिटकल लीडर इसे राजनीतिक रंग में रंग कर ही देखने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में रामबिलास पासवान के लिए यह हत्या राजनीतिक खाद के रूप में मिल गयी है. चिराग पासवान द्वारा बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग उसी राजनीतिक मंशा का हिस्सा है. राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के पूर्व सदस्य डा. एजाज अली इस ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि चुनाव में चारों खाने चित होने के बाद एनडीए बौखलाया हुआ है. वह हर अपराध को राजनीतिक खुराक बनाने में लगा है. उसकी कोशिश है कि इस हत्या को वह यादव बनाम राजपूत या बैकवर्ड बनाम अपर कास्ट का रूप दे कर राष्ट्रीय जनता दल और लालू प्रसाद को बदनाम कर दे. वह कहते हैं कि इस मामले में मुन्ना सिंह का भी नाम है और सुबोध व सुनील राय का भी. ऐसे में इस तरह की गंदी सियासत करना विरोधी दलों की आदत बन गयी है.
बदलते बयान
दूसरी तरफ इस हत्या के पहले दो तीन दिनों के बयान देखने से यह पता चलता है कि इस मामले को सियासी रंग देने की कोशिश सचमुच बाद में शुरू हुई. जिस दिन कार में बृजनाथ की हत्या हुई उस दिन उनके बेटे राकेश रौशन खुद भी पीछे दूसरी कार में थे. तब राकेश रौशन ने इस पर किसी पालिटकल हत्या जैसा आरोप नहीं लगाया. बल्कि राकेश ने पुलिस में दर्ज आरोपियों के नाम भी गिनाये. उसने बाद में बयान दिया. उस बयान में कहा कि उनके पिता की जान को पहले से खतरा था. राकेश ने उन्हीं लोगों के नाम ( मुन्ना, सुबोध) गिनाये जिनसे उनके पिता की दुश्मनी थी.
पुलिस नतीजे पर पहुंचेगी. ऐसी उम्मीद पुलिस के हाकिमों को है. अपराधी पकड़े जायेंगे तो मामले से पर्दा भी उठेगा. तब तक सियासत चलेगी. हर दल अपनी सियासी गोटी ऐसे ही चलायेंगे और सियासत की रोटी ऐसे ही सेकेंगे.