जया मिश्र, बिहार कांग्रेस का एक ऐसा चेहरा जो अपने संघर्ष के बूते महज 7 साल के करियर में प्रदेश महासचिव के पद तक पहुंची, वह भी बिना कीस गॉड फादर के. कैसा रहा ये संघर्ष वह खुद बता रही हैं.
नौकरशाही ब्यूरो
जया का मूल मंत्र है- काम करो. संघर्ष करो. फल मिलेगा. जरूर मिलेगा. क्योंकि सिस्टम चाहे जैसा भी हो, उसमें काम चाहिए. अगर आप में योग्यता है, चीजों की समझ है तो आप को पहचान मिलेगी. हां जरा संघर्ष होगा. लेकिन कामयाबी मिलने की संभावना तो रहेंगी ही.
जया उस समय प्रौढ हो रही थीं जब बिहार में कांग्रेस के पतन की गाथा शुरू होने ही वाली थी. उन्होंने 12 वीं की पढ़ाई 1988 में पूरी की. इसके अगले ही साल भागलपुर के भीषण दंगे सामने आये. तब कांग्रेस की सरकार थी. लेकिन 1990 के चुनाव में वह सत्ता से बेदखल कर दी गयी. इससे पहले जया आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए दिल्ली चली गयीं.
जया कहती हैं ’12 वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं दिल्ली आ गयी. जेएनयू में दाखिला लिया- बैचलर ऑफ स्पैनिश में. ऐक मैथिली फैमिली बैकग्राउंड के होने के कारण मेरी शादी कर दी गयी. तब करियर के रूप में मैंने एनजीओ सैक्टर को चुना’.
1991 में जब कांग्रेस उदारिकरण की पालिसयों के साथ आगे बढ़ रही थी तो निजी और एनजीओ सैक्टर में अवसर बढ़ रहे थे. इसका लाभ जया ने उठाया. उनके पति प्रतीक मिश्र भी एनजीओ से जुड़े थे. लेकिन जब उन्हें लगा कि एनजीओ से बेहतर अवसर कार्पोरेट में है तो उन्होंने रूरल मार्केटिंग का फर्म बनाया. ज्या इसमें पूरी तरह इंवल्व हो गयीं. इसी दौरान ग्रामीणों से मिलने के अवसर बढ़े. और राजनीति के प्रति आकर्षण भी.
जया बताती हैं-‘प्रतीक दिल्ली में रह गये. मैं बिहार आ गयी. यह 2006 की बात है. हमने अपने काम बिहार के गंवों में शुरू किया. इससे जो पहचान मिली तो प्रतीक को भी लगा कि अब मुझे सक्रिय राजनीति में जाना चाहिए. कांग्रेस मेरी पहली पसंद थी’.
राजनीति का सफर
जया ने 2007 में बिहार कांग्रेस ज्वायन किया. उन्होंने तत्तकालीन प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा और महबूब अली कैसर के साथ काम किया. इन वर्षों में पार्टी ने उनकी सांगठनिक क्षमता को पहचाना. जब अशोक चौधरी ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपनी टीम बनायी तो जया मिश्र को पार्टी का प्रदेश महासचिव बनने का अवसर मिला.
जया बताती हैं. ‘हर संगठन में आपको अपनी योग्यता सिद्ध करनी होती है. पार्टी ने हमें जो भी जिम्मेदारी सौंपी उसे तन्मयता के साथ पूरी करने की हमने कोशिश की. पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया के बढ़ते राजनीतिक महत्व को देखते हुए पार्टी ने यह जिम्मेदारी मुझे सौंपी. मेरी दिलचस्पी भी इसमें थी’.
चुनावी राजनीति मे हिस्सेदारी
प्रदेश कांग्रेस के सोशल मीडिया का मौजूदा स्वरूप विकसित करने में जया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहने वाली जया अब तक सांगठनिक स्तर पर सक्रिय रही हैं. तो क्या वह चुनावी राजनीति में सक्रिय होना चाहिंगीं? जया जवाब में कहती है ‘देखिए राजनीत के दो पक्ष होते हैं. एक सांगठनिक स्तर पर काम करना और दूसरा आम जनता से जुड़ कर चुनावी राजनीत करना. मेरी दिलचस्पी संगठन में रही है. लेकिन अल्टीमेटली सब की इच्छा होती है कि वह लोगों से जुड़े. अगर पार्टी चाहेगी तो मैं जरूर चुनावी राजनीति में हिस्सा लूंगी. अगर मौका मिला तो मधुबनी या पटना से चुनाव लड़ना चाहूंगी’.
ऐसे समय में जब राजनीति में अगड़ी जातियों के लिए चुनौतिया बढ़ती जा रही हैं. तो ऐसे दौर में क्या संभावनायें दिखती है. इस सवाल के जवाब में जया कहती है कि उनका मकसद राजनीति को करियर के रूप में लेना नहीं है. उन्होंने कई सालों तक काम किया है. वह राजनीति को सेवा के रूप में लेती है. ऐसे में हालात जो भी हो वह इसमें अगे बढ़ती रहेंगी.
पति प्रतीक की भूमिका
जया सार्वजनिक जीवन में पहचान बनाने में लगी हैं. लेकिन उनके पति ने अब भी रूरल मार्केंटिंग के अपने कारोबार को जारी रखा है. उनसे जब पूछा गया कि राजनीति में हिस्सेदारी की बात आयी तो आपने खुद को आगे लाने के बजाये पत्नी को आगे बढ़ाया. क्या खास थी उनमें. इस सवाल के जवाब में प्रतीक कहते हैं. कि राजनीति के लिए जो गुण जया में है वह मुझ में नहीं. जया सामाजिक- राजनीतिक मुद्दों पर हम से कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं. इसके अलावा उनकी दूसरी खूबी यह है कि वह काम के प्रति काफी फोकस रहती हैं और सांगठिनिक समझ भी काफी गहरी है.
एक प्रश्न के जवाब में प्रतीक बताते हैं कि उनके परिवार में कई पीढ़ियों से महिलायें काफी आगे रही हैं. मेरी मां खुद क्लास वन अफसर रहीं, नानीहाल में कई महिलायें डाक्टर हैं. ऐसे में मुझे इस बात की जलन कभी नहीं होगी कि मेरी पत्नी की पहचान मुझसे बड़ी है. हालांकि इस मामले में जया कहती हैं कि मैं जहां भी हूं, उसमें मेरे पती की भूमिका महत्वपूर्ण है. आगे भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी तो ही मैं और आगे बढ़ सकती हूं.