गोविंदगंज बिहार का ऐसा असेम्बली क्षेत्र है जहां 65 वर्षों में ब्रह्मणों के वर्चस्व को( एक-दो  अपवाद) कोई नहीं तोड़ सका. हमारे सम्पादक इर्शादुल हक इस क्षेत्र की इसी खासियत को समझने वहां पहुंचे.

अरेराज;खामोश है माहौल
अरेराज;खामोश है माहौल

पूर्वी चम्पारण में  गोविंदगंज बिहार का इकलौता ऐसा चुनाव क्षेत्र है जहां 1951 से 2010 तक हुए तमाम विधान सभा चुनावों में जीतने वाले तमाम 15 विधायक ब्रह्मण जाति के रहे हैं. 1969 में एक मात्र हरिशंकर शर्मा ने जीत हासिल की थी जिनके नाम में पांडेय, त्रिपाठी, दुबे जैसे सरनेम नहीं था. इसी तरह कमोबेश इन तमाम चुनावों में नम्बर दो पर रहने वाले कंडिडेट भी इसी ब्रह्मण जाति के रहे हैं.

अब जब 2015 का चुनाव सर पर है तो इस बार भी लग भग यह तय है कि यहां का विधायक ब्रह्मण ही होगा. यानी जीतने वाला कंडिडेट और नम्बर दो पर रहने वाले कंडिडेट दोनों ही ब्रह्मण होंगे.

 

पिछले तीन दशक में संसदीय राजनीति में पूरे बिहार में ब्रह्मणों का वर्चस्व लगातार घटा है पर गोविंदगंज लगातार अपवाद रहा है. इस हकीकत को तमाम पार्टियां भी जानती हैं और यही कारण है कि हर प्रमुख दल आंख मूंद कर अपना प्रत्याशी चुनने के पहले यह जरूर ध्यान रखती हैं कि वहां से ब्रह्मण प्रत्याशी ही दिया जाये.

ब्रह्मण बनाम ब्रह्मण

इस बार महागठबंधन ने ब्रजेश पांडेय को अपना उम्मीदवार बनाया है. जबकि एनडीए की तरफ से एलजेपी ने जो अपना उम्मीदवार उतारा है- वह हैं राजु तिवारी. राजु तिवारी की खास बात यह है कि वह 2010 में भी एलजेपी के उम्मीदवार थे और जद यू के मीना द्विवेदी से 8400 वोटों से हार गये थे. इस बार कांग्रेस को टिकट मिलने के कारण मीना की जगह ब्रजेश पांडेय चुनावी अखाड़े में हैं.

 

गोविंदगंज का चुनावी माहौल अब भी खामोश सा है. यहां एक नवम्बर को चौथे चरण में चुनाव होना है. अगर आप इस क्षेत्र के सबसे बड़े सबअर्बन क्षेत्र अरेराज के नुक्कड़ों पर जारी चर्चाओं का हिस्सा बनें तो एक बात साफ होती है कि राजू तिवारी का नाम और उनकी पहचान से ज्यादातर लोग वाकिफ हैं. इसलिए जब आप चुनावी बातों को छेड़ते हैं तो लोग राजू तिवारी की चर्चा किये बिना नहीं रहेंगे. राजु तिवारी की पहचान इसलिए भी पुरानी है क्योंकि वह राजन तिवारी के भाई हैं, जो दर्जनों हत्या, लूट, अपहरण के मामले में जेल में रहते रहे हैं. राजू की पहचान की दूसरी वजह, 2010 का चुनाव है जब वह मीना द्विवेदी को टक्कर दे कर परास्त हुए थे.

किसकी क्या हालत

लेकिन राजनीति का खेल सिर्फ इस आधार पर नहीं तय होता कि आपकी पहचान कितनी है. बिहार के अन्य क्षेत्रों की तरह  पूर्वी चम्पारण के गोविंदगंज विधानसभा क्षेत्र में सामाजिक और जातीय समीकरण के आधार पर ही जीत-हार की दिशा तय होती है. राजु तिवारी और ब्रजेश कुमार के अलावा यहां से शिवसेना से गणेश्वर तिवारी मैदान में हैं. जबकि समाजवादी पार्टी से कृष्णकांत मिश्रा और बहुजन समाज पार्टी से रवींद्र दुबे जोर आजमाइश कर रहे हैं. इसके अलावा जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी से  पप्पू गिरि और आरक्षण विरोधी पार्टी से संजय कुमार मिश्रा लड़ रहे हैं.

लेकिन असल लड़ाई कांग्रेस के ब्रजेश कुमार पांडेय और एलजेपी के राजु तिवारी के बीच ही है. यह क्षेत्र ब्रह्मण बहुल है. और दिलचस्प बात यह है कि तमाम पार्टियों से ब्रह्मण ही चुनावी मैदान में हैं. ऐसे में ब्रह्मणों का वोट टुकरे-टुकरे होने की पूरी संभावना है. अरेराज के संदीप मिश्र इस बात को स्वीकार करते हैं कि ऐसे में जीत उसी कंडिडेट की होगी जिसे ब्रह्मणों के अलावा बड़े पैमाने पर दीगर जाति के लोग सपोर्ट करेंगे. कांग्रेस के ब्रजेश कुमार पांडेय के साथ यही एक प्लस प्वाइंट है.

महागठबंधन का हिस्सा होने के कारण उस क्षेत्र के मुसलमान, यादव और कुर्मी के वोटों पर उन्हें सबसे ज्यादा भरोसा है. और अभी तक हुए दो फेज के चुनाव के रुझानों से उनका मनोबल इसी लिए बढ़ा भी है. ऐसे में ब्रजेश की स्पेशल कोशिश अत्यंत पिछड़ी जातियों और दलितों को प्रभावित करने की है. वहीं राजू तिवारी के दबंग परिवार के होने और स्थानीय पहचान के भरोसे मुसलमानों और यादवों के वोट में सेंधमारी की होगी. लेकिन उनका यह प्रयास कितना सफल होगा यह कहना आसान नहीं.

अभी चुनाव में  दस दिनों का समय है. और हालात पल पल बदलेंगे.

By Editor


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