रवीश कुमार बता रहे हैं कि पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद एक खास विचारधारा के लोगों ने न सिर्फ झूठ फैलाया बल्कि साम्प्रदायिकता का बेहुदा खेल खेला गया. लेकिन अब जो आरोपी पकड़ा गया है उससे क्या पता चलता है, यह सब जान चुके हैं.
पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले लोगों को निशाना बनाया गया। पहले अपने संस्कारों को भूल उस हत्या का मज़ाक उड़ाया गया और सही ठहराया गया। ऐसा करने वाले लोग खास धार्मिक और राजनीतिक विचारधारा के थे। उन्हें किसी की हत्या के प्रति संवेदनशीलता प्रकट करना भी गवारा नहीं गुज़रा। एक संपादक ने लेख लिखा। उस लेख की डिज़ाइन दिलचस्प थी। कुतर्क और कुहासे का आवरण लेते हुए वे पहुंचे कि गौरी लंकेश एक खास विचारधारा से थीं इसलिए एक खास किस्म का समूह उनकी हत्या की निंदा में जुट गया मगर छोटे शहरों में आज भी पत्रकारिता का धर्म पूरा करते हुए पत्रकार मारे जा रहे हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। सरकार भी उनकी सुरक्षा नहीं करती। यह तर्क हर एंगल से सही है मगर इज़ इक्वल टू की थ्योरी के तहत सामने लाया गया ताकि गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ जमा लोगों की नैतिकता को अवैध ठहराया जा सके। आज क्या हुआ। क्या सरकार या संपादक ने दोबारा से कस्बों में मारे जा रहे पत्रकारों की कोई सुध ली?
यही नहीं, गौरी लंकेश की हत्या के बाद सांप्रदायिकता का बेहूदा खेल खेल खेला गया। फेक न्यूज़ गढ़ा गया। मुस्लिम नाम वाले अपराधियों के नाम से आगे बढ़ाया गया कि गौरी लंकेश की हत्या करने वाले ये था, अब निंदा करने वाले चुप हैं। ऐसे मेसेज मुझ तक भी ठेल कर पहुंचाए गए। मुस्लिम नाम के सहारे गौरी लंकेश की हत्या के सवाल को जायज़ ठहराने वाले या निंदा करने वालों को अवैध ठहराने वाले की मंशा क्या हो सकती है आप समझ सकते हैं। वे ऐसा करते हुए उस ज्ञात-अज्ञात हत्यारे के साथ खड़े हो गए थे।
इंडियन एक्सप्रेस गौरी लंकेश की हत्या के संबंध में पकड़े गए एक अपराधी की ख़बर छाप रहा है। मैं इस चरण पर अपराधी को लेकर कोई ठोस राय नहीं रखना चाहता। कई बार पुलिस पकड़ तो लेती है मगर साबित नहीं कर पाती है। इस छूट की गुज़ाइश रखते हुए मेरा सवाल यही है कि आई टी सेल नाम की संस्था और मानसिकता वाले लोग क्यों नहीं उस ख़बर का प्रचार कर रहे हैं। जब वे मुस्लिम नाम वाले अपराधियों के पकड़े जाने की अफवाह का प्रचार प्रसार कर सकते हैं तो माना जाना चाहिए कि उनकी एक मंशा अपराधी को पकड़े जाने में भी रही होगी। अब जब एक अपराधी पकड़ा गया है और वह ख़बर अपराध नहीं है तो उसका प्रचार प्रसार क्यों नहीं हो रहा है। क्यों नहीं लोग अब मुझे या किसी और को गाली दे रहे हैं। चुनौती दे रहे हैं। सवाल गौरी लंकेश का नहीं है, सवाल है ऐसी हर हत्या को जायज़ ठहराने की ख़ौफ़नाक राजनीति का।
इंडियन एक्सप्रेस की ज्योत्सना ने लिखा है कि कर्नाटक पुलिस ने गौरी लंकेश की हत्या के आरोप में कथित रूप से शामिल के टी नवीन को गिरफ्तार किया है। मैं अभी भी कथित लिखने की सतर्कता बरत रहा हूं। यह व्यक्ति हिन्दु युवा सेना का कार्यकर्ता है। दक्षिण कर्नट के मद्दुर का रहने वाला है। हत्या के बाद कई महीनों तक यह मोबाइल नेटवर्क से गायब हो गया था। 18 फरवरी को कुमार की गिरफ्तारी हुई है। गौरी लंकेश पर बनी एस आई टी ने उसे हथियार और कारतूस के साथ गिरफ्तार किया है। कुमार ने पुलिस को बयान दिया है कि इस हत्या में हिन्दु युवा सेना मद्दार यूनिट का नेता भी शामिल है।
कुमार के तीन दोस्तों ने पुलिस को बयान दिया है कि कुमार ने गौरी लंकेश की हत्या की बात उन्हें बताई थी। उसने कारतूस से भरा बक्सा दिखाते हुए कहा था कि गौरी लंकेश की तरह एक और बड़ी हत्या करनी है। सीसीटीवी कैमरा में गौरी लंकेश के घर के बार जिस व्यक्ति को मोटरसाइकिल से देखा गया था, उसका हुलिया कुमार से मिलता है। यह भी जानकारी आ रही है कुमार का ग्रुप किस माड्यूल की तरह काम करता था, कर्नाटक के बाहर भी हत्या को अंजाम दे चुका है। फोन रिकार्ड से पता चलता है कि कुमार के संबंध पश्चिम भारत के कई बड़े दक्षिणपंथी नेताओं से संपर्क रहे हैं।
भारत में कहीं भी जांच एजेंसी निष्पक्ष और तत्पर नहीं है। सीबीआई का हाल आप देख ही रही है। इस जांच एजेंसी का हाल भी गोदी मीडिया के न्यूज़ एंकर जैसा हो गया है। वह विपक्ष के ख़िलाफ़ आक्रामक तो है मगर सरकार से जुड़े लोगों से पूछने में हालत ख़राब हो जाती है। इसलिए साबित होने तक मैं इसे सिर्फ सूचना के रूप में रख रहा हूं। बताने के लिए कि हम हत्याओं को लेकर कितने हत्यारे हो गए हैं। इज़ इक्वल टू के ज़रिए उस हत्या के बाद के सवालों की हत्या कर देते हैं। गौरी लंकेश की हत्या के सिलसिले में पकड़े गए लोगों की अफवाह को फैला दिया गया और जब कोई पकड़ा गया है तब सब चुप्पी है।
हर किसी की हत्या की निंदा कीजिए और हर हत्या के ख़िलाफ़ रहिए। जब लिखें तब भी, जब न लिखें तब भी। एक ऐसे सिस्टम की बात कीजिए जो जांच करें। न कि सरकार की जूती सर पर रख कर चले। इसी में हम सबका भला है। हमारी एजेंसिया वाकई जूती उठाने से ज़्यादा की लायक नहीं है। साबित कुछ कर नहीं पातीं, इनके बहाने हम हैं कि मूर्ख बन रहे हैं। सत्ता के साथ होकर या सत्ता से सवाल करके भी। जिस देश में एक ईमानदार परीक्षा व्यवस्था न हो, उस देश में एक ईमानदार जांच एजेंसी की मांग रेत में गुलाब उगाने के सपने जैसा है। क्या कर सकते हैं। मांग तो करें कम से कम।