मुख्‍यमंत्री जीतनराम मांझी और पू्र्व सीएम नीतीश कुमार के संबंधों में खटास अभी भले ही नहीं आया हो, पर इसके संकेत दिखने लगे हैं। जीतन राम मांझी अपना राजनीतिक दायरा बड़ा करने के साथ ही प्रशासनिक जमीन भी मजबूत करने लगे हैं। वह नियुक्तियों में अपनी छाप भी छोड़ने लगे हैं। प्रशासनिक जमीन मजबूत करने की यह नयी पहल भी शुरू कर दी है।

बिहार ब्‍यूरो प्रमुख 

 

नीतीश कुमार ने बिहार प्रशासनिक सेवा की जगह सुपरवाइजर स्‍तर के अधिकारियों को अप्रैल 2010 में बीडीओ बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को ब्‍लॉक से हटा दिया गया। इसकी वजह राजनीतिक भी थी। निचले स्‍तर के अधिकारियों को बीडीओ बनाकर प्रखंड स्‍तर पर नीतीश कुमार अपने मनपसंद अफसरों को तैनात करना चाह रहे थे, ताकि वह विधानसभा चुनाव में उनका साथ दें। 2010 का विधान सभा चुनाव परिणाम बताता है कि ये अधिकारी सत्‍तारुढ़ दल के पक्ष में काम भी किए होंगे। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में इन अधिकारियों ने अंगूठा दिखा दिया।

 

उधर ग्रामीण विकास विभाग ने ग्रामीण विकास अधिकारियों की नियुक्ति की घोषणा की। इसकी प्रक्रिया पूरी करने में करीब तीन साल गुजर गए। चयन के बाद इनका एक साल का प्रशिक्षण चल रहा था कि सत्‍ता परिवर्तन हो गया। इस परिवर्तन में ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्रा का विभाग नहीं बदला गया। नयी परिस्थितियों और राजनीतिक माहौल का फायदा नीतीश मिश्रा ने उठाया। उन्‍होंने पुराने बीडीओ की छवि पर सवाल खड़े किए और उनके हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। जिन बीडीओ की क्षमता के आधार पर विकास के दावे किये जा रहे थे, उन्‍हें अक्षम करार दिया जाने लगा। और हटाने की पूरी व्‍यवस्‍था नीतीश मिश्रा ने कर ली।

 

इस बीच  प्रशिक्षण प्राप्‍त कर रहे ग्रामीण विकास पदाधिकारियों का एक साल का प्रशिक्षण नौ माह में समाप्‍त कर दिया गया। उनके लिए 12 अगस्‍त, को उन्‍मुखी कार्यशाला के लिए आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में मुख्‍यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपनी जमीन गढ़ ली। पहले तो उन्‍होंने कार्यरत बीडीओ को नकारा करार दिया और कहा कि ग्रामीण विकास पदाधिकारियों की नियुक्ति बीडीओ के रूप में की जाएगी। जबकि नियमत: आरडीओ को तीन साल बाद बीडीओ का दर्जा मिलता। मुख्‍यमंत्री ने आरडीओ को बीडीओ का दर्जा देकर उन्‍हें राजपत्रित अधिकारी भी बना दिया, जबकि आरडीओ के वेतनमान में राजपत्रित अधिकारी नहीं होते हैं।

इस संबंध में प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जीतनराम मांझी ने प्रशासनिक स्‍तर की निचली इकाई पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए इतना बड़ा फैसला लिया है। विकास योजनाओं के कार्यान्‍वयन के साथ चुनाव में बीडीओ की महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है। बिहार में सरकार के भविष्‍य को  लेकर कोई आश्‍वस्‍त नहीं है। वैसे में जीतनराम मांझी ने अब तक का सबसे बड़ा फैसला लिया और प्रखंड स्‍तर पर अपना ‘कैडर’ बना लिया। इन अधिकारियों को ‘जीतनराम मांझी कैडर’ कहा जाए तो कोई अतिश्‍योक्ति नहीं होगी। उसी कार्यक्रम में मुख्‍यमंत्री ने घोषणा की कि 15 अगस्‍त तक सभी आरडीओ से बीडीओ बना दिए गए अधिकारियों को प्रखंड आवंटित कर दिए जाएंगे। पूर्व सीएम नीतीश कुमार ने सुपरवाइजर स्‍तर के अधिकारियों को बीडीओ बना दिया तो जीतनराम मांझी ने आरडीओ का बीडीओ बना दिया। यह संयोग है कि यह दोनों फैसला चुनाव के कुछ समय पहले लिया गया।

हमारा मकसद इसमें राजनीतिक लक्ष्‍य तलाशना नहीं है। जनता इतना ही जानना चाहती है कि जिन बीडीओ के कंधे पर नीतीश कुमार विकास की गाथा गढ़ते रहे, जिन बीडीओ के भरोसे राज्‍य मनरेगा के कार्यान्‍वयन ने देश में अव्‍वल घोषित किया गया, वही बीडीओ जीतनराम मांझी की नजर में अयोग्‍य कैसे हो गए। जिन आरडीओ को तीन साल बाद बीडीओ बनाना था, उन्‍हें तीन साल पहले क्‍यों बीडीओ बना दिया गया। यह सवाल बड़ा है और इसका जवाब भी सरकार को देना चाहिए। अन्‍यथा यही माना जाएगा कि जीतनराम मांझी अपने राजनीतिक हित के लिए प्रशासनिक व्‍यवस्‍था को दाव पर लगा रहे हैं।

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427