झारखंड में राष्ट्रपति शासन खत्म होने की अटकलों के बीच राज्यपाल के नवनियकुत् सलाहकार व बिहार के पूर्व डीजीपी आनंद शंकर ने विनायक विजेता से क्यों कहा “ घर-घर देखा, एक लेखा”?
रांची स्थित राजकीय अतिथिशाला का कमरा नंबर-201 जो आनंद शंकर का अस्थायी सरकारी आवास है में गुरुवार को सुबसे मुलाकात के क्रम में आनंद शंकर ने बेवाकी से कई बातें कहीं. हाफ पैंट पहने पहली बार दिखे आनंद शंकर टेबुल पर रखी दर्जनों फाइलों और संचिकाओं को निपटाते भी रहे और बीच-बीच में बातचीत भी करते रहे.
अचानक एक फाइल देख मुस्कराते हुए आनंद शंकर कह उठे ‘घर-घर देखा, एके लेखा’. उनका तात्पर्य विभागों में हुई या हो रही अनियमितता से था. उन्होंने झारखंड के स्वास्थ्य विभाग में हुई अनियमितता के बारे में बताते हुए कहा कि विभाग ने 81 और 82 बैच के चिकित्सकों का सिवील सर्जन बना दिया जबकि उनसे सीनियर यानी 78 व 79 बैच के चिकित्सक यूं ही पडे रहे. वह ये फाइलें देख कर सन्न थे. मन ही मन कुछ बुदबुदाये. जैसे कह रहे हों कि वह ऐसी गड़बड़ी होने नहीं देंगे.
वह कहते हैं- कई विभागों में घोर अनियमितता हुई. विज्ञान और प्रावैधिकी विभाग में भी इसी तरह की घोर अनियमितताएं और इस विभाग के निदेशक अरुण कुमार द्वारा की गई अनियमितताओं से संबंधित संचिका भी आनंद शंकर को भेजी गई है जिनपर कार्रवाई का आदेश जारी हो सकता है. राज्य में सरकार बनने और बनाने की कवायद और चर्चा से कोसों दूर आनंद शंकर को इस बात की कोई चिंता नहीं कि सरकार बनने के बाद वो सलाहकार पद से हट जाएंगे उन्हें चिन्ता है तो बस मिली जिम्मेवारियों का सफलतापूर्वक निर्वहन करने और जल्द से जल्द सभी मामले निपटाने की.
भ्रष्ट पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के खिलाफ बिहार की तरह ही झारखंड में भी मुहिम शुरु करने पर रांची से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक में गुरुवार को प्रकाशित एक समाचार से भी आनंद शंकर काफी खिन्न दिखे जिसमें यह लिखा गया था कि ‘राज्यपाल के सलाहकार अधिकांश पदाधिकारियों को भ्रष्ट बता अधिकारियों का मनोबल गिरा रहें हैं।’ आनंद शंकर ने सवालिया लहजे में पूछा कि ‘आप ही बताएं ऐसे समाचार के बाद मै चोर को चोर या बेईमान को भ्रष्ट कहना या उनपर कार्रवाई करना छोड दूं क्या ? ’
बहरहाल रांची में भी इस बात की पुरजोर चर्चा है कि एक ईमानदार पर सख्त और कडक आईपीएस के रुप में चर्चित रहे आनंद शंकर को राज्यपाल का सलाहकार और पुलिस महकमा सहित कई महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी उन्हें सौपने के बाद से ही इन विभागों में हडकंप मचा है.
बातचीत का क्रम आगे बढ़ता है. फिर बात हाल में घटित माओवादी हमले तक पहुंचती है. फिर आनंद शंकर कहते हैं-‘माओवादी अगर बोली की भाषा समझें तो ठीक अन्यथा हमारे जवान उन्हें गोली की भाषा से समझाएंगे. हम अपने पुलिस अधिकारियों और जवानों की लाशें गिनने के लिए चुपचाप नहीं बैठेंगे. माओवादियों को उनके गढ में जाकर पुलिस उनका माकुल जवाब देगी।’ . वह पाकुड के एसपी अमरजीत बलिहार और छह जवानों की माओवादियों द्वारा घात लगाकर की गई हत्या से काफी व्यथित और आहत हैं.