केंद्र और राज्य सरकार के बीच विकास को लेकर परस्पर दावे किये जाते हैं। सत्तारूढ महागठबंधन को लगता है कि राज्य में तेजी से विकास हो रहा है तो मुख्य विपक्ष दल भाजपा को लगता है कि सरकार विकास के नाम पर छलावा कर रही है। विशेष राज्य के दर्जे से लेकर आर्थिक पैकेज तक के नाम पर ‘विकास की राजनीति’ हो रही है। राजनीतिक दल हैं तो राजनीति करेंगे ही, विकास की राजनीति हो या सत्ता की राजनीति। सभी पार्टियां अपनी चादर को सफेद और दूसरे की चादर को ‘सफेदपोश’ होने का दावा करती हैं। लेकिन इन दावों-प्रतिदावों के बीच बदलते बिहार की अनदेखी भी नहीं की जा सकती है।
वीरेंद्र यादव
काराकाट यात्रा-1
पिछले दो दिनों की दाउदनगर और डिहरी की यात्रा में (काराकाट संसदीय क्षेत्र) विकास की गति काफी तेज दिखी। इसमें सरकारी प्रयासों की भूमिका के साथ निजी उद्यमियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। इस विकास यात्रा को सबसे तेज गति दी है सड़क और बिजली ने। सड़क का चौड़ीकरण और मरम्मत, नयी सड़कों का निर्माण और विस्तार ने एक साथ विकास के कई रास्ते खोल दिये हैं। इससे वाहनों की संख्या बढ़ी तो उससे जुड़े रोजगार भी बढ़े। यातायात आसान हुआ तो ग्रामीण उत्पादों का शहर और मंडी तक पहुंच आसान हो गयी। कारोबार बढ़ा तो आर्थिक समृद्धि भी आयी। इसके साथ जाम की समस्या भी बढ़ी गयी। जाम से परेशानी भले झेलनी पड़ती हो, लेकिन जाम आर्थिक हालात के तेजी से बदलने का गवाह भी है।
दाउदनगर और नासरीगंज के बीच सोननदी पर पुल बन रहा है। यह पुल दाउदनगर और नासरीगंज में दो राष्ट्रीय उच्च पथों को जोड़ेगा। पुल के निर्माण के कार्यों के कारण नदी के दोनों ओर से कच्ची सड़क बन गयी है। इस पर वाहनों का आवागमन भी खूब हो रहा है।
दाउदनगर से डिहरी जाने के दौरान में सोन नदी के बीच में ही मोटर साइकिल पंक्चर हो गयी। धक्का देकर किनारे तक लाया। वहां से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर गांव है जमालपुर। वहां पर एक साइकिल दुकान थी। उसने मोटर साइकिल पंक्चर बनाया। हमारे साथ दीपक भी था। गाड़ी वही चला रहा था। जमालपुर से हम नासरीगंज आए। वहां से मुख्य पथ से जुड़े। वहां से डिहरी की ओर की चले। सड़क एकदम चकाचक। वाहनों की संख्या भी काफी। रफ्तार भी तेज। ढेला बाग से पहले गाड़ी फिर पंक्चर हो गयी। इस बीच पीछे से आ रहे एक मोटरसाइकिल सवार ने हमें लिफ्ट दिया और दीपक कुछ दूरी पर स्थित मिस्त्री की दुकान पर पहुंचा। लिफ्ट देने वाले ने वहीं छोड़ दिया। लेकिन मिस्त्री पंक्चर बनाने में असमर्थता जतायी। हालांकि वहां हवा भरकर दीपक अगले मोड़ के लिए रवाना हुआ। हमलोग ढेलाबाग पहुंचे। वहीं पर गाड़ी बनी और फिर आगे के लिए रवाना हुए।
इस दौरान एक बात सामने आयी कि सड़क किनारे हर एक किलो पर गैरेज है, साइकिल बनाने वाले भी मोटर साइकिल बनाने में दक्ष हो गये हैं। टायर बदलने और किसी भी गाड़ी का पंक्चर बनाने के माहिर हो गए हैं। हर गांव के पास गांव का नाम लिखा पट्टी मिल जाएगा। इससे गांव के संबंध में लोकेशन मिल जाता है। यह इलाका हमारे लिए ज्यादा परिचित नहीं है। हम सोन के पश्चिमी हिस्से में यात्रा कर रहे थे, जबकि हमारा गांव सोन के पूर्वी हिस्से में है। एकाध रिश्तेदारी भी भोजपुर में है, लेकिन आवाजाही काफी कम रही है।
नासरीगंज और डिहरी के बीच में आयरकोठा एक कस्बा के रूप में विकसित हो गया है। हालांकि यहां पहले भी औद्योगिक इकाइयां थीं। अब नया बाजार बन गया है। आयरकोढा से अकोढ़ीगोला और नोखा-राजपुर के लिए सड़क जाती है। यही कारण है कि यह बाजार विकसित रूप ग्रहण कर सका। डिहही पहले से ही विकसित शहर रहा है। डालमियानगर के कारण यह औद्योगिक और व्यावसायिक केंद्र रहा है। शाहाबाद में डिहरी ही सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र रहा है। इसमें रेल यातायात और जीटी रोड होने का लाभ भी शहर को मिला। औरंगाबाद जिले के लिए भी डिहरी बड़ा बाजार रहा है। रोहतास जिले का पुलिस मुख्यालय भी डिहरी में ही है। शाहाबाद रेंज के पुलिस अधिकारियों का कार्यालय भी डिहरी में ही है।
डिहरी से हम इंद्रपुरी बराज के लिए प्रस्थान किये। डिहरी से 8-10 किलो मीटर की दूरी पर है बराज। इंद्रपुरी पंचायत तिलौथू प्रखंड में आता है। तिलौथू प्रखंड सासाराम संसदीय क्षेत्र के तहत आता है। इंद्रपुरी में सोन सदन जल संसाधन विभाग का अतिथिशाला है। अतिथिशाला में सोननदी समेत अन्य नदियों की धारा के प्रवाह को भी दिखाया गया है। इंद्रपुरी बराज पर थोड़ी देर रुकने के लिए हम औरंगाबाद जिले के बारुण प्रखंड के मेह गांव में पहुंचे। नदी से मेह गांव तक नहर पर बनी सड़क खराब है। लेकिन नवीनगर से बारुण जाने वाली सड़क एकदम चकाचक। बारुण में जीटी रोड पर पुल बन रहा है। बारुण से दाउदनगर जाने वाली सड़क भी दुरुस्त। थोड़ी परेशानी जीटी रोड से सोननगर स्टेशन तक आने वाले सड़क पर थी। इसकी वजह रेलवे लाइन के नीचे से गुजरने वाले अंडरब्रिज है।
कुल मिलाकर दाउदनगर, नासरीगंज, डिहरी, इंद्रपुरी, बारुण, डिहरा और दाउदनगर को जोड़ने वाली सड़क ने सोननदी से जुड़े गांवों का अर्थतंत्र बदल दिया है। सोननदी से सिंचित गांवों में सिंचाई के लिए पानी का संकट नहीं होता है। फसल भी अच्छी होती है। सड़कों ने विकास को नयी गति दी है। इसमें सड़क का निर्माण ही सरकार ने करवाया है, जबकि विकास की इबादत लोगों ने अपनी मेहनत, लगन और निष्ठा से लिखी है।
(जारी)