करीब चार साल बाद नीतीश कुमार फिर से भाजपा की ‘पालकी’ में सवार हो गये हैं। राजद और कांग्रेस के समर्थन को छोड़कर भाजपा के समर्थन से फिर नयी सरकार बनाएंगे। इस सरकार में भाजपा भी शामिल होगी।
वीरेंद्र यादव
2005 में नीतीश कुमार भाजपा की पालकी में गाजे-बाजे के साथ सवार हुए थे। चेहरे पर विजय मुस्कान थी। जीत का जोश भी था। लेकिन इस बार नीतीश कुमार ‘चोर दरवाजे’ से पालकी पर सवार हुए हैं। इसलिए चेहरे की चमक गायब है। इस्तीफा सौंप कर लौटे नीतीश कुमार मीडिया के सामने अपनी विवशता का रोना रहे थे और कहा कि ऐसे माहौल में सरकार चलाना संभव नहीं है।
सरकार बनाने का समर्थन नीतीश ने भाजपा से मांगा या भाजपा ने खुद समर्थन का ‘बोझ’ नीतीश पर थोप दिया, दोनों में से किसी पक्ष ने स्पष्ट नहीं किया। दोनों हड़बड़ी में थे। भाजपा को सत्ता चाहिए थी और नीतीश को समर्थन। नीतीश के इस्तीफे के बाद भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय ने तुरंत समर्थन का पत्र राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी को सौंप आया। इसके बाद भाजपा के विधायक और विधान पार्षद नीतीश के दरबार में हाजरी लगाने लगे। सबसे अंत में नंदकिशोर यादव और सुशील मोदी पहुंचे। दोनों ने समर्थन और सरकार में शामिल होने को स्वीकार किया। मीडिया से चर्चा में नीतीश कुमार का चेहरा भले उतरा हुआ हो, लेकिन नंदकिशोर यादव व सुशील मोदी के चेहरे ‘कमल’ के समान खिल रहे थे।
देर रात तक राजभवन के बाहर मजमा लगा रहा। कुछ साल पहले नीतीश कुमार ने भाजपा नेताओं के आगे से पतल बिछाकर कर बटोर लिया था और भाजपा नेता हाथ मलते बाहर आ गये थे। आज नीतीश कुमार ने जमकर भाजपा नेताओं को खिलाया। देर रात तक भोज पर मंथन होता रहा। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की नजर एक अण्णे मार्ग पर थी। इस दौरान भाजपा और जदयू विधायक दल की संयुक्त बैठक में नीतीश कुमार को नेता चुना गया। नीतीश कुमार की ओर से सरकार बनाने की औपचारिकता पूरी की गयी और 27 जुलाई की शाम नयी सरकार का शपथ ग्रहण होगा।