जरा सोचिए कि इस अभियान में चार सौ ट्रकों का काफिला बिहार के चालीस हजार गांवों के चार करोड़ लोगों तक पहुंचे तो यह अभियान विश्व का सबसे बड़ा अभियान होगा या नहीं?
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
इसका जवाब खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देते हैं. उन्हीं के शब्दों में “संभवत: जन भागीदारी का विश्व का यह सबसे बड़ा अभियान होगा और इस अभियान को अगले आठ से दस हफ्तों में पूरा किया जायेगा”.इतना ही नहीं इस अभियान में दस हजार लोगों की सहभागिता होगी.
इससे पहले कि आप के दिल में यह सवाल हिलोरे मारे कि इस महा अभियान का मकसद क्या है तो सीधे लफ्जों में बताऊं कि इसका मकसद नीतीश सरकार के दस सालों की उपलब्धियों का गुणगान-बखान करना है.इस इंटेंसिव महा अभियान को बिहार सरकार एक जश्न की तरह मनायेगी. और राज्य के चप्पे-चप्पे में “बढ़ चला बिहार” का नारा गूंजेगा. इस महा अभियान की शुरूआत करते हुए खुद नीतीश कहते हैं- “हमने बहुत काम किया है और बहुत कुछ करना बाकी है इसलिए अगले दस सालों बाद बिहार के लोग बिहार को किस रूप में और कहां देखना चाहते हैं, इस अभियान से तय होगा”.
मंगलवार की तपिश भरी दोपहरी में पटना के सीएम सचिवालय में एसी की सर्द हवाओं में जब नीतीश इस महा अभियान के कसीदे पढ़ रहे थे तो मेरे दिल में यह सवाल बार-बार कौंध रहा था कि गरीब राज्य के खजाने से इतना बड़ा प्रचार अभियान, खर्च के मामले में भी इतिहास ही रचेगा.
सरकारी खजाने पर बोझ
लेकिन इस महाभियान पर खर्च कितना आयेगा, इसका जवाब न तो नीतीश खुद दे रहे थे औ न ही इस आयोजन को करने वाले उनकी सरकार का जन सम्पर्क विभाग के अधिकारी. नीतीश ने खुद कहा कि “इस अभियान में सरकार के अलावा अनेक निजी संगठनों की भागीदारी है”. हालांकि इस अभियान में कंधा लगाने वाले सिटिजन अलायंस नामक एक गुमनाम संगठन भी है. चपड़-चपड़ हिंग्लिश बोलने वाले इस संगठन के युवाओं से जब मैंने बात की तो उनके जवाब से लगा कि वे पर्दे से बाहर नहीं आना चाहते. आखिर सरकारी खजाने का दिल खोल कर उपयोग करने की कोई तो गोपनीयता होती है, सो लगा कि इस संगठन के लोग इसी शर्त का पालन कर रहे हैं. लेकिन अगर गुणाभाग करके जब आप इस अभियान के खर्च का हिसाब-किताब लगायेंगे तो आंकड़ा कई सौ करोड़ तक पहुंच सकता है.
आखिर जिस अभियान का लक्ष्य ही यह हो कि जनभागीदारी का यह विश्व का सबसे बड़ा अभियान हो तो आखिर इसके खर्चे के कहने ही क्या. इस अभियान का हिस्सा न सिर्फ बिहार के सुदूवर्ती गांव होंगे बल्कि दिल्ली, मुम्बई और पटना में भी जश्न की खुश्बू फैलेगी. विदेशों में फैले बिहारियों से जुड़ना भी इस अभियान का हिस्सा तो है ही. जाहिर है अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ गोष्ठी, वर्कशाप, संवाद जैसे दर्जनों कार्यक्रम करेंगे.
महा अभियान का मकसद
नीतीश जब इस अभियान का बखान कर रहे थे तो उनके चेहरे पर खिली उत्सुकता देखते बन रही थी. आम तौर मंच पर बोलने की बारीक से बारीक औपचारिकता पर ध्यान देने वाले नीतीश ने जब अपनी बात रखनी शुरू की तो वह न तो स्पीकर प्वाइंट तक गये और न ही खड़े हो कर बातें रखी. वह अपनी जगह पर लगे माइक से ही बैठे- बैठे “बढ़ चला बिहार” अभियान की तफ्सील बताते रहे.
खैर मामला जो हो, पर इस महा अभियान का मकसद क्या है? खुद नीतीश समझाते हैं- “पिछले दस वर्षों में हमने बिहार के लिए बहुत कुछ किया. सड़कें, गवर्नेंस, हेल्थ, विकास, छात्राओं को साइकिलें, शिक्षा, गरज कि हर फील्ड में हमने काम किया. इन कामों का इतना असर हुआ कि दूसरे राज्यों ने इसका अनुसरण भी किया लेकिन कमी सिर्फ यह रही कि इसकी चर्चा बहुत नहीं हुई”. वह आगे कहते हैं- “इसलिए अब हम सरकार के जनसम्पर्क विभाग का उपयोग करके लोगों से सम्पर्क करेंगे और उनकी भागीदारी से एक विजन डाक्युमेंट बिहार@ 2025 प्रकाशित करेंगे ताकि बिहार के लोग, अगले दस साल में बिहार को कैसा देखना चाहते हैं, पता चल सके.
कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
लेकिन एक अवसत बुद्धि का आदमी भी जनता है कि राजनीति में कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना लगाया जाता है. सो नीतीश वहीं करने निकल पड़े हैं. यह अभियान अगले दस हफ्ते चलेगा यानी ढ़ाई महीने. इस अभियान की रूपरेखा ऐसी बनायी गयी है कि यह चुनाव आचार संहिता लागू होने के कुछ हफ्ते पहले खत्म हो जाये. यानी सीधे लफ्जों में नीतीश ने करोड़ों- करोड़ रुपये के सरकारी खर्चे से चुनावी अभियान की शुरआत कर दी है. जाहिर है इससे गुमनाम सी लगने वाली निजी संस्थायें भी रातों रात माला माल होंगी, इसमें कोई दो राय नहीं है.
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