बिहार पुलिस सर्विस एसोसिएशन के नये अध्यक्ष की सर्वसम्मत घोषणा तो हो गयी है पर इसमें जहां गंभीर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगे वहीं जातिवाद का खेल खेलने की भी चर्चा चली. नौकरशाही डॉट इन के सम्पादक इर्शादुल हक ने बीपीसए यानी डीएसपी एसोसिएशन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राकेश दुबे से इन मुद्दों पर बात की.
आप बीपीएसए के निर्विरोध अध्यक्ष बन गये हैं पर आरोप लग रहे हैं कि इसबार के चुनाव प्रचार में जबर्दस्त राजनीतिक हस्तक्षेप था
ऐसा नहीं है. बल्कि यह पहला चुनाव है कि राज्य के तमाम बीपीएस अधिकारी इस बार के चुनाव में दिलचस्पी ले रहे थे, इसलिए पहली बार ऐसा हुआ कि इस चुनाव में गहमागहमी रही.
लेकिन इस तरह की आवाजें भी आ रही हैं कि कुछ नेता आपके पक्ष में अधिकारियों को गोलबंद कर रहे थे.
देखिए जिन नेता के बारे में मेरे पक्ष में गोलबंद करने की बात कही जा रही है वह कोई सत्ताधारी पार्टी के नहीं है. जो नेता सत्ता में नहीं है वह कैसे किसी अधिकारी पर दबाव बना सकते हैं कि अमुक अधिकारी का समर्थन करिए? एक विरोधी पार्टी के नेता का इतना प्रभाव नहीं रहता कि वह किसी अधिकारी का ट्रांस्फर पोस्टिंग भी करा सके. ऐसे में उनके प्रभाव में कोई पुलिस अधिकारी कैसे आ सकता है? यह आरोप सही नहीं है.
कहा जा रहा है कि इस चुनाव में जातिवाद का खेल भी जम कर खेला गया है
अब लोग इस तरह की बात कैसे कह रहे हैं, मेरी समझ में नहीं आता. अगर इस चुनाव में जातिवाद का खेल खेला गया होता तो इसका असर नये पदाधिकारियों की सूची देखने से ही लग जाती. आप देखें कि बीपीएसए के नये अध्य( खुद राकेश दुबे) ब्रहमण हैं. महासचिव शिचंद्र सिंह राजपूत हैं. ललित मोहन शर्मा और अनोज कुमार सिंह उपाध्यक्ष बने हैं. ललित मोहन शर्मा पिछड़ी जाति से हैं और नायी जाति से ताल्लुक रखते हैं. जबकि अनोज कुमार कुर्मी हैं. जबकि संयुक्त सचिव इम्तेयाज अहमद अल्पसंख्य समुदाय से आते हैं. इसी तरह कोतवाली की डीएसपी ममता कल्याणी कोषाध्यक्ष बनायी गयीं हैं और वह कुशवाहा जाति से हैं. इस तरह सभी समुदाय के लोग इसमें हैं.
तो फिर इसबार चुनाव प्रक्रिया ख्तम होने के बाद अंदर की बातें धीरे-धीरे विस्फोटक तरीके से क्यों बाहर आ रही हैं?
सोशल मीडिया पर इसपर होने वाली बहस की तो इसे तूल देने की जरूरत नहीं है. बीपीएसए के जो अधिकारी इस विषय पर फेसबुक पर पोस्ट या कमेंट दे रहे हैं यह उनका अपना विचार है. तथ्य यह है कि यह पहला मौका है जब पटना से बाहर के पदास्थापित पुलिस अधिकारी भी इसबार के चुनाव में सक्रिये थे. आप किसी भी डीएसपी स्तर के अधिकारी को फोन कर के देख लें, सब को पता है कि चुनाव हो रहा था, और इसकी सूचना सबको थी. पर पहले तो पटना से बाहर के अधिकारियों को पता तक नहीं चलता था और चुना सम्पन्न हो जाया करते थे.
बीपीएसए का पदाधिकारी चुने जाने का क्या मतलब है? इतनी चर्चा या विवाद क्यों?
देखिए, बीपीएसए संगठन का पदाधिकारी बनना कोई लुक्रेटिव पद नहीं है कि इसका अध्यक्ष बन जाने से कोई महाराजा नही बन जायेगा. हां इतना जरूर है कि हमलोगों की टीम पूरी कोशिश करेगी कि पुलिस अधिकारियों की बुनियादी समस्याओं का निपटारा हो.चर्चा या विवाद की जहां तक बात है, अभी कार्याकरिणी का गठन होना बाकी है. इसमें कई लोगों के लिए अवसर है. जब कार्याकरिणी का गठन हो जायेगा तो कई लोगों की शिकायतें भी दूर हो जायेंगी.