भले ही इंटरनेशनल पेरेंट्स डे एक पश्चिमी मान्यता हो पर उस नजारें की कल्पना करें जब दो हजार से ज्यादा युवाओं का कारवां अपने मां-बाप के, बच्चों के प्रति त्याग-तपस्या और बलिदान की चर्चा करें तो स्वाभाविक तौर पर मां-बाप की आंखों के आंसू, भावनायें बनके छलके बिना नहीं रह सकते.
पटना के विजयम एजुकेशनल ट्रस्ट द्वारा संचालित सीमेज कॉलेज ने पेरेंट्रस-डे के अवसर पर रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन कर वालिदैन के प्रति सामुहिक सम्मान की नजीर पेश की.
सीमेज के निदेशक नीरज अग्रवाल ने अपने संबोधन में मां-बाप के प्रति सम्मान की ऐसी छटा बिखेरी की सैकड़ों युवा-युवती और अभिभावकों के आपसी प्रेम की संवेदनाये अपने चरम पर पहुंच गयीं.
नीरज ने अपने पिता के साथ संबंधों के उतार चढ़ाव की दास्तान पेश करते हुए कहा कि कैसे किसी बात पर उनकी अपने पिता से मतभिन्नता हो गयी और जब हकीकत के पर्दे खुले तो वह शर्मशार हो गये. नीरज ने अपनी भावुक आंखों के आंसुओं को नियंत्रित करते हुए कहा “तब उनके पिता ने उन्हें सीने से लगा लिया”. उन्होंने कहा “दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति वह है जिसके पास मां-बाप की पूंजी है”.
रिश्तों की गहराई
सीमेज का यह आयोजन बजाहिर कुछ लोगों को रिश्तों के बाजारीकरण का प्रतीक भले ही लगे, मगर यह आयोजन संतान और वालिदैन के रिश्तों की प्रागढ़ता और पवित्रता की अभिव्यक्ति को अद्भुत गहराई देता नजर आया. जहां कॉलेज प्रबंधन ने इस आयोजन को कुशल प्रबंधन और सफल निर्देशन से कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया वहीं छात्रों के अलग-अलग जत्थे ने मां-बाप के साथ बच्चों के रिश्तों को कलात्मक अभिव्यक्ति देकर, वहां मौजूद लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
नतीजा यह हुआ कि बिहार सरकार के दो वरिष्ठ नौकरशाह- अनुसूचित जाति-जनजाति विभाग के प्रधान सचिव एसएम राजू और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव व्यासजी ने, इन छात्रों के कौशल और प्रतिभा के गुणगान करते नजर आये. व्यासजी ने तो यहां तक कहा कि “सीमेज यानी प्रतिभा और ऊर्जा का संतुलित मिश्रण है”.
इस आयोजन में सीमेज के छात्र-छात्राओं ने मानव जीवन के हर पहलू का कलात्मक प्रदर्शन कर के साबित किया कि तूटते रिश्तों के इस मशीनी दौर में भी पारिवारिक जीवन कैसे सफल और संतुलित रह सकता है. इस आयोजन के माध्यम से छात्र-छात्राओं ने लोरियों के दौर से लेकर प्रौढ़ होती पीढियों की उमदा तस्वीर खीची और हर दृश्य में यह दिखाने की सफल कोशिश की कि हमारी भावी पीढ़ी सफलता के नये कीर्तिमान बनाती है तो इसमें अगर किसी का सर्वाधिक योगदान है तो वह हमारे मां-बाप ही हैं.
सीमेज का यह आयोजन तकनीकी और निर्देशन की दृष्टि से जितना चौकस और संतुलित था उतना ही संतुलित परफॉरमेंस भी था. निस्संदेह सीमेज जैसे प्रोफेशनल कॉलेज में पढ़ने वाले युवाओं का बैकग्राउंड थियेटर और रंगमंच का बैकग्राउंड नहीं है फिर भी जिस डेडिकेशन और परिपक्वता के साथ मेघा अग्रवाल और नेहा महेंद्र ने निर्देशन के पक्ष को संभाला उसकी मुनासिब दाद दर्शकों ने भी उन्हें दी.
वहीं कॉलेज के छात्र-छात्राओं- निरंजन, प्रिया, स्नेहा, साकेत, गौरव, श्वेता, ज्योति, बादल, राजीव, निशांत, अभिमन्यु, साकेत के अलावा अन्य कलाकारों ने अपनी योग्यता के चरम को छूते नजर आये.
छह घंटे तक चले इस आयोजन में मॉड्रेटर की भूमिका नीरज पोद्दार न बखूबी निभाई और कहीं भी दर्शकों को बोझिल महसूस होने नहीं दिया.
कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा करते हुए अपने संक्षिप्त संबोधन में सीमेज के चेयरमैन वसंत अग्रवाल ने अपनी कविता की पंक्तयों से दर्शकों को आखिर आखिर में ज्जबाती बना दिया. हॉल से निकलते हुए दर्शक वसंत की इन पंक्तियों को दुहराये बिना न रह सके-
रूह के रिश्तों की गहराई तो देखिए/ चोट हमें लगती है तो चिल्लाती है माँ
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