बिहार प्रदेश भाजपा की दो दिवसीय कार्यकारिणी की बैठक जनाधार की सामाजिक पृष्ठभूमि के साथ वैचारिक फलक व आधार बदलने व बढ़ाने के संकल्प के साथ समाप्त हुई। भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील मोदी ने कार्यकारिणी में कहा कि मंडल व कमंडल के साथ लव-कुश भी भाजपा के साथ है। मंडल के प्रतीक के रूप में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिया, लेकिन कमंडल के प्रतीक पर चुप हो गए। लव-कुश के बहाने उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि कुर्मी-कोइरी वोटर भी अब भाजपा के साथ हो गए हैं।
नौकरीशाही ब्यूरो
प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक पर राजद-जदयू के गठबंधन के बाद होने वाले सामाजिक ध्रुवीकरण का असर साफ-साफ दिखा। प्रमुख वक्ताओं ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस बात को स्वीकार किया कि नीतीश-लालू के गठबंधन को सिरे खारिज नहीं किया जा सकता है। इन दोनों नेताओं के आधार वोट की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है। इस कारण वक्ताओं ने गठबंधन की नकारात्मक तस्वीर पेश की और उसकी आड़ में भाजपा की छाया को ज्यादा असरदार बनाने का दावा पेश किया।
यह विडंबना रही कि जिस नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा अगला विधान सभा चुनाव लड़ना व जीतना चाहती है, उनकी उपलब्धियों का कोई बड़ा दावा पेश नहीं कर पाई। राज्य विधानसभाओं में भाजपा की जीत या बढ़त को ही नरेंद्र मोदी की उपलब्धि बतायी जा रही है। सात महीनों में बिहार के लिए केंद्र सरकार कौन ही विशेष योजना प्रस्तुत कर सकी। इस संबंध में किसी ने कुछ नहीं कहा। चुनाव के वर्ष में भाजपा की रणनीति आक्रमक होगी, यह स्वाभाविक है। सुशील मोदी ने स्पष्ट किया कि यह विधान सभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाएगा, राज्य के मुद्दों पर लड़ा जाएगा। यह भी तय है कि भाजपा के पास लालू-नीतीश के विरोध के अलावा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन इस मुद्दे के साइड इफैक्ट से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।