सच पूछिए तो इस देश के सबसे बड़े जज भारत के कुछ न्यज चैनल बन गये हैं.जो अपनी आंखों पे काली पट्टी बांध कर फैसले सुनाते हैं, जो कल्पना के घोड़े दौड़ा कर खबरों को प्लाट करते हैं और नतीजे सुनाते हैं.

इर्शादुल हक

उनकी कल्पना की उड़ान टीवी रूम में बैठे कुछ सम्पादक टाइप लोग नियंत्रित करते हैं.

रिश्तेदार की लाश देख कर बिलखते असगर अली( साभार इंडियन एक्सप्रेस)

ये चैनल अपने मन की बात कहने के लिए बातों को प्रमाणिकता का जामा पहनाने के लिए “ सूत्र” का सहारा लेते हैं. सूत्र के मुंह में बातें घुसेड़ कर अपने मन की बात कहने का हुनर चैनलों ने खूब लागू किया है. कई वरिष्ठ पत्रकार यह बात अनअफिसयली स्वीकार भी करते हैं.

हैदराबाद में घटनास्थल और अस्पतालों का दौरा करने वाले एक पत्रकार दोस्त से अभी-अभी बात हुई है. उनका कहना है कि मरने वालों में सब हैं. बच्चे, बूढ़े गरीब , मीडिल क्लास, अगड़े पिछड़े सब. यहां तक कि हिंदू मुसलमान दोनों.

अब आप (आईएम) इंडियन मुजाहिदीन का नाम लीजिए, कुछ लोग अभिनव भारत का नाम ले लें. चलिए इसे दोनो आतंकी संगठनों के नजरिए से देखिए-
आईएम वालों ने अगर हैदराबाद ब्लास्ट किया है तो वह मुसलमानों के दुश्मन हैं. क्योंकि मारे गये लोगों में आधा से कुछ कम मुसलमान हैं.

अगर अभिनव भारत के लोगों ने मारा है तो वह हिंदुओं के दुश्मन हैं क्योंकि आधे से कुछ अधिक हिंदू भी मारे गये हैं.
हालांकि मैं कुछ चैनलों की तरह हवा में तीर नहीं चला रहा.

सीधी सी बात है इंसानों की जान गई है, हमारी बहनों हमारे भाइयों की. हमें दुख है. पूरे भारत को दुख है.
पर टीवी वाले भाइयों टीआरपी और मनोरोग की चहार दीवारी से निकलिए. भारत की मिलीजुली संस्कृति को पहचानिए. अगर आप ऐसे ही करते चले गये तो आपकी विश्वसनीयता जो थोड़ी भी बचीखुची है, पूरी मिट्टी पलीद हो जायेगी.

नयी पीढ़ी के पास न्यूज चैनलों के इतर भी विकल्प है. वह इंटरनेट पर तेजी से उभर रहे ब्लॉग्स और न्यूजवेबसाइट और सोशल साइट्स पर भरोसा करने लगी है.

By Editor


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