छपरा के परसा बाजार के नजदीक नीतीश कुमार का चुनावी मंच सजा है. थोड़ी देर में हेलिकॉपटर के घड़घड़ाहट की आवाज सुनायी देती है. सभा के दायें-बायें खड़े युवा चिल्लाना शुरू करते हैं- ‘बिजली नहीं तो वोट नहीं’.
इर्शादुल हक, छपरा से
उनके हाथों में टंगे बैनरों पर भी यही नारा लिखा है.
गुरुवार का यह तीसरा पहर है. धूप की शिद्दत कुछ कम हो चुकी है. नीतीश कुमार मंच पर आते हैं. वह हाथ हिला कर मौजूद 7-8 हजार लोगों का अभिवादन करते हैं. भीड़ उनका स्वागत करती है पर दोनों बाजू खड़े 40-50 की संख्या में युवाओं का नारा और जोरदार हो जाता है- ‘बिजली नहीं तो वोट नहीं’.
सारण लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी चुनाव लड़ रही हैं. जद यू ने विधान परिषद के उपसभापति सलीम परवेज को अखाड़े में उतारा है जबकि भाजपा से राजीव प्रताप रुड़ी खम ठोक रहे हैं. चुनाव 7 अप्रैल को है.
इधर विरोध करने वाले युवाओं का शोर जारी रहता है. मंच पर नीतीश कुमार के दायें स्थानीय विधायक मंटू सिंह बैठे हैं जो लगातार नीतीश कुमार से कुछ कह रहे होते हैं. बायीं तरफ जद यू कंडीडेट सलीम परवेज काला चश्मा में छुपी अपनी आंखों से भीड़ का ओवलोकन कर रहे होते हैं. शायद मंटू, मुख्यमंत्री को बिजली के लिए विरोध करने वाले युवाओं के बारे में कुछ बता रहे हैं और नीतीश उनकी बातों को गंभीरता से सुन रहे हैं और बीच बीच में कुछ पूछ भी रहे हैं.
इधर कैबिनेट मंत्री पीके शाही आनन फानन में अपना भाषण समाप्त करते हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार माइक थामते हैं. इस ‘बीच बिजली नहीं तो वोट नहीं’ के नारे की तीव्रता और बढ़ चुकी होती है.
इस शोर शराबे का दृश्य विधानसभा जैसा लगता है जहां मुख्यमंत्री अपना भाषण देते हैं और विपक्षी सदस्य शोर शराबा कर रहे होते हैं. भाषण के दौरान विरोध की तीव्रता को भांपते हुए नीतीश मताधिकार के महत्व पर बोलना शुरू करते हैं. वह युवाओं को बताते हैं कि वोट का अधिकार लोकतंत्र में सबसे बड़ा अधिकार है. अगर कोई आपको बिजली देता है तो आप वोट करें. अगर नहीं देता है तो भी वोट करें, लेकिन करें जरूर. वह युवाओं को समझाते हैं कि ‘हमारी सरकार ने 700 मेगावाट उत्पादन से बढ़ते हुए 24 सौ मेगावाट उत्पादन शुरू कर दिया है. पर आप कितना भी शोर करेंगे मैं अभी कोई घोषणा नहीं करने वाला. अगर मैंने कुछ घोषणा की तो मेरे ऊपर वह ( चुना आयोग) केस कर देगा. अभी अाप अपना कागज दे दीजिए और हम लोग इस को 7 मई के बाद देख लेंगे’.
भीड़ फिर शोर करती है लेकिन यह शोर विरोध जैसा नहीं है. यह विजय भाव से भरा शोर है. नीतीश तब तक शोर के मनोविज्ञान को भांप चुके होते हैं. वह शोर कर रहे एक युवा की तरफ इशारा करके कहते हैं कि पता कीजिए कि इस लड़के की उम्र 18 साल की हुई है या नहीं. यह वोटर है या नहीं. वह कहते हैं बहुत हुआ शोर-शराबा अब बैनर लपेटिए और बात सुनिए. नीतीश के इतना कहते ही शोर बंद होने लगता है और विरोधी नारों के बैनर अचानक समेट लिये जाते हैं.
पहले विरोध, फिर जिंदाबाद
भले ही नीतीश के प्रभाव से यह भीड़ शांत हो गयी. विरोधी बैनर समेट लिये गये और विरोध करने वाले युवा नीतीश जींदाबाद के नारे लगाने लगे पर नीतीश ने निश्चित तौर पर इस विरोध और व्यवधान को गंभीरता से लिया होगा. नौकरशाही डॉट इन को इस संबंध में जो जानकारी मिली है उसका सार यही है कि जदयू के कुछ स्थानी दबंगों ने भीतरघात किया है और उन्होंने ही इस भीड़ को मैनेज किया था. जद यू के कुछ सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि इसमें एक स्थानीय पार्टी विधायक का भी हाथ है.
राबड़ी देवी, सलीम परवेज और राजीव प्रताप रुड़ी के बीच ट्राइएंगुलर फाइट है. राबड़ी देवी को एम-वाई के समिकरण पर भरोसा है तो सलीम परवेज को अतिपिछड़ी जाति, मुस्लिम और नीतीश की छवि का सहारा है जबकि रुड़ी अगड़ी जाति के लोगों और दलितों पर भरोसा जता रहे हैं. सवाल यह है कि इस चुनावी समर में कौन जीतेगा? मेरे साथ मौजूद दैनिक भास्कर के पत्रकार कुमार अनिल हैं. वह छपरा के स्थानीय हैं इसलिए उनकी यहां की समझ काफी गहरी है. अनिल कहते हैं भाजपा और जद यू के गठबंधन में हुई तूट का नुकसान दोनों को उठाना पड़ सकता है, पर इसके बावजूद वह इस बात को दावे से कह पाने की स्थिति में नहीं हैं की राबड़ी देवी के लिए यह लड़ाई आसान है. वह जोड़ते हैं, मोदी के विरोध में मुसलमान और यादव का कम्बिनेशन मजबूती से राबड़ी के पक्ष में खड़ा हो पाता है या नहीं, यह महत्वपूर्ण है.
कितने पानी में कौन
क्योंकि सलीम परवेज ने मुसलमानों को अपनी तरफ बांधने की कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ी है. सारण जिला जदयू अल्प संख्यक प्रकोषठ के अध्यक्ष कमरुद्दी जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. वह कहते हैं कि पहले स्थितियां ऐसी थीं, जिससे लग रहा था कि मुस्लिम राबड़ी के पक्ष में जा रहे थे. पर जब उन्हें यह एहसास हो गया कि जद यू के प्रति कुर्मी, अतिपिछड़ी जातियां और दलितों का बड़ा हिस्सा सलीम परवेज की तरफ खुल कर सामने आ गया है तो मुसलमानों ने सलीम परवेज को खुल कर समर्थन दे दिया है.
पर एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि मोदी फैक्टर अगर छपरा में काम कर गया तो नतीजा कुछ और ही हो सकता है.