मीडिया पगला गया है. पूछ रहा है कि आंदोलनकारी किसान बोतल का पानी क्यों पी रहे थे? अच्छा खाना क्यों खा रहे थे?

 

दिलीप मंडल

 

अरे महाराज, किसानों का आंदोलन है. भिखारियों और पुजारियों की सभा नहीं है.

एक भैंस कितने में आती है, पता है? एक अच्छी भैंस बेचने से एक सेकेंड हैंड कार आ जाएगी.

और एक बीघा जमीन कितने की होती है? खासकर अगर जमीन बहुफसली सिंचित हो तो? किसान अपनी जमीन का एक टुकड़ा बेच दे तो? मतलब समझते हो इसका. और नहीं समझते हो तो काहे के पत्रकार है. मंदिर जाओ. आरती की थाली लेकर मांगो.

किसान मालिक हैं देश के.निठल्ले, मंगते नहीं हैं पुजारियों की तरह. मेहनत का खाते हैं.

खूब पीएंगे बोतल का पानी. और बोतल का पानी नहीं पीएंगे तो कौन सा पानी पीएंगे? जंतर मंतर पर आपके बाबूजी ने नल लगा रखा है क्या? या वहां कोई हैंडपंप खुदा है. प्याऊ का सिस्टम भी तो आप खा चुके हैं.

धर्म कर्म से लेना देना होता, तो कनॉट प्लेस के सेठ लोग घर के गेट पर चार घड़े ही रखवा देते. वह तो होगा नहीं.

जब पता है कि जंतर मंतर में पब्लिक आती है, तो पानी के दो टैंकर नगरपालिका क्यों नहीं लगवा देती? एक एक नल का कनेक्शन ही दे दे. नगरपालिका तो केंद्र सरकार के सीधे अधीन है.

मुद्दे की बात यह है

फसल का सही दाम दो. कीमत को कंट्रोल मत करो. खाद-बीज वाजिब कीमत पर दो. बाकी वे खुद संभाल लेंगे.

किसानों को सरकार लूटें मत. इतना ही तो वे चाहते हैं.

दिक्कत यह है कि सरकार और बैंक लुटेरे हैं. वरना ट्रैक्टर लोन का इंटरेस्ट रेट कार लोन से डेढ़ गुने से ज्यादा क्यों होता?

अपने नाम पर तीन एकड़ खेती की जमीन न हो तो ट्रैक्टर लोन नहीं मिलता. लेकिन आपके पास अपनी कार खड़ी करने की 15 फुट की जमीन न हो, तो भी कार लोन मिल जाएगा.

ये है समस्या.

फिर भी किसान है. मालिक है देश का. बोतल का पानी पी लिया, तो हुलसिए मत. मरी हालत में भी जिस जमीन पर बैठा है, उसकी कीमत ज्यादातर संपादकों की कुल हैसियत से ज्यादा है.

फेसबुक पर दिलीप मंडल की टिप्पणी

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427