कम लोगों को पता है कि जगदानंद,  जगजीवन बाबू को इतना जानते हैं  वह कहते हैं जगजीवन बाबू को सामाजिक रूप से अमान्य करने वाली ताकतों ने उनकी क्षमता को कभी स्वीकार नहीं किया.

यह इत्तेफाक नहीं कि श्रीकांत की पहल पर जदयू व राजद के दो धुरंधर एक मंच पर आ गये
यह इत्तेफाक नहीं कि श्रीकांत की पहल पर जदयू व राजद के दो धुरंधर एक मंच पर आ गये

नौकरशाही ब्यूरो

इतना ही नहीं जगदानंद कहते हैं कि  यह जगजीवन बाबू ही थे जिनके प्रयास से हजारों भूखों को रोटी नसीब हो सकी थी.

बाबू जनजीवन राम की बिहार के आर्थिक विकास में भूमिका का सही मूल्यांकन आज तक नहीं किया गया, जबकि उनका योगदानत अतुलनीय है। पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह ने 6 जुलाई को बाबूजी की पुण्यतिथि पर आयोजित व्याख्यान में कहा कि कृषि आधारित राज्य बिहार में नदियों के पानी को खेतों तक पहुंचाने का सबसे पहला काम जगजीवन बाबू  ने किया।

व्याख्यान का आयोजन जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध  संस्थान, पटना ने किया था। श्री सिंह ने कहा कि सोन नदी पर ऐनीकाट की जगह इंद्रपुरी में बराज बनाकर उन्होंने मगध और शाहाबाद के हजारों एकड़ खेतों तक पानी पहुंचाया और आज पूर्वी और पश्चिमी सोन कैनाल दोनों इलाकों की जीवन रेखा है।

सोन नहर प्रणाली देश की सबसे बड़ी नहर प्रणाली है। खेतों तक पहुंचने वाला पानी सिर्फ किसानों को रोटी ही नहीं देता है, बल्कि अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार भी देता है। बाबूजी ने पानी की महत्ता को समझा था। इसलिए उन्होंने डैमों और बांधों को बढ़ावा दिया। दुर्गावती परियोजना उनकी महत्वाकांक्षी योजना थी, जिसकी आधारशिला उन्होंने 1975 में रखी थी।

हार की मानसिकता को जीत में बदला

श्री सिंह ने कहा कि वह आजीवन लोकसभा के लिए निर्वाचित होते रहे। उन्होंने कई सरकारों में महत्वपूर्ण मंत्रालयों का दायित्व संभाला। जिस मंत्रालय का उन्होंने प्रभार संभाला, उन सभी मंत्रालयों में ऐतिहासिक काम किया। रक्षा मंत्री के रूप में पाकिस्तान पर भारत की जीत दर्ज की और एक नया देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया। उन्होंने हार की मानसिकता को जीत में तब्दील कर दिया। खाद्य-आपूर्ति मंत्री के रूप में उन्होंने जमाखोरों के खिलाफ सघन अभियान चलाया और उन्हें गोदामों से अनाज को बाजार में लाने पर विवश कर दिया।

जगदानंद सिंह ने जगजीवन बाबू की सामाजिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कहा कि सामाजिक रूप से उनको अमान्य करने वाली ताकतों ने उनकी क्षमता को कभी स्वीकार नहीं किया। इन विपरीत परिस्थितियों में भी जगजीवन बाबू ने अपनी प्रशासनिक क्षमता, राजनीति कौशल और जनभावनाओं की समझ के आधार पर राष्ट्र के समक्ष खड़ी कई चुनौतियों का सफलता पूर्वक सामना किया और उन पर विजय पाया।

श्री सिंह ने कहा कि गंगा हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होनी चाहिए। लेकिन हमने कभी गंगा की क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं किया। कभी गंगा देश में नंबर एक का जलमार्ग था, लेकिन अब स्थिति बदल गयी है। लेकिन यह भी सच है कि गंगा का बहता पानी ही बिहार को दुनिया से जोड़ सकता है। अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जलमार्ग ही सस्ता व सुगम माध्यम है।

इस मौके पर बिहार के वित्त मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कहा कि संस्थान को शोध और अध्ययन के कार्यों को बढ़ावा देना चाहिए। जगजीवन बाबू से जुड़े शोध और सामग्री भी  एकत्रित की जानी चाहिए। ताकि उनके बारे में समग्र विश्लेषण हो सके। समाजशास्त्री एमएन कर्ण ने कहा कि राजनीति की वैकल्पिक दिशा और चिंतन भी चर्चा होनी चाहिए।

संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने शोध योजनाओं पर प्रकाश डाला और कहा कि संस्थान कई आयामों पर कार्य कर रहा है। इससे पहले जगदानंद ने संस्थान के निदेशक श्रीकांत की जम कर तारीफ करते हुए कहा कि श्रीकांत बाबूजी के अमूल्य योगदान को सहेजने में जुटे हैं. इस अवसर पर वितमंत्री ने उम्मीद जतायी कि श्रीकांत बाबूजी के योगदान पर महत्वपूर्ण दस्तावेज इक्ट्ठा करेंगे.

By Editor


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