सोलहवीं लोकसभा के विधायी कार्यों की पूर्णाहुति हो गयी। सोलहवीं लोकसभा के आखिरी सत्र का आखिरी दिन की बैठक भी समाप्त हो गयी। लोकसभा के सभी सदस्य एक-दूसरे को डरे-सहमे मन से बधाई दी और शुभकामनाएं भी। क्योंकि वे अपने ही भविष्य को लेकर सशंकित थे।
वीरेंद्र यादव
अब सांसदों के ऊपर से दलीय बंधन समाप्त हो गया है। दल-बदल कानून अगले लोकसभा के गठन तक निरर्थक हो गया है। सांसद नीति, नीयत और निष्ठा सबकुछ बदलने को सवतंत्र हो गये हैं। देहाती भाषा में यह भी कह सकते हैं कि सांसदों का खूंटा उखड़ गया है। सांसद अब जनता की अदालत में जाएंगे। लोकतंत्र की सबसे बड़ी अदालत जनता है। वोटर ही है। इससे पहले पार्टी की अदालत में भी हाजिरी लगानी होगी, योग्यता के प्रमाण देने होंगे। अपना टिकट बचाने के भी तर्क देने होंगे।
बिहार में लोकसभा की 40 सीट हैं। फिलहाल किशनगंज, बेगूसराय और कटिहार खाली हैं। लेकिन तकनीकी रूप से अब सभी सीट खाली हो गयी हैं। सभी सीटों के लिए चुनाव होगा। बिहार के भाजपा के 21 सांसदों में से 13 का टिकट कटना पक्का है। जिन आठ सांसदों को फिर से भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरने की संभावना है, उनमें राधामोहन सिंह और नित्यानंद राय ही कंफर्म माने जा सकते हैं। बाकी 19 सांसदों में से कोई भी ‘शहीद’ हो सकता है। कोई सहयोगी के नाम पर ‘शहीद’ होगा तो कोई परफार्मेंस के नाम पर। राजद के चार में से तीन फिर से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि एक को लेकर अनिश्चय की स्थिति है। कांग्रेस की एक मात्र सांसद हैं और उनका भी टिकट कंफर्म है। जदयू के दो में से एक सांसद का टिकट पक्का है, जबकि दूसरे के नाम पर संशय है। हालांकि एनडीए में 15 नयी सीटें जदयू को और मिल रही हैं। इसमें नये सदस्यों के लिए ज्यादा संभावना बनती है। लेकिन अभी सीट तय नहीं है।
अब चुनाव लूटने और लुटाने का त्योहार हो गया है। लेन-देन की मर्यादा समाप्त हो गयी है। न मांगने वाले को शर्म, न देने वाले को लिहाज। खर्चे की सीमा भी नहीं है। जनता की अदालत में लोकतंत्र है। वोटर राजा बन गया है। वोटर को समझाने और भरमाने का अभियान चलाया जायेगा। इस अभियान का आनंद लीजिये।