फील्ड मार्शल सैम हॉरमसजी फ्रामजी जमशेदजी माणेकशॉ हमारे दौर के सबसे रहस्यमय व्यक्तित्वों में से हैं। उनकी जन्म शताब्दी पर लिखे इस लेख में पढिए कि कैसे उन्होंने कई बार मौत को चकमा दिया था

माणेकशॉ
माणेकशॉ

सैम बहादुर के नाम से लोकप्रिय – उन्हें इस नाम से एक गोरखा सैनिक ने पुकारा था, जो उनका कठिन पारसी नाम बोल पाने में असमर्थ था। सैम शब्द का अर्थ – निर्भय है और उनका यह नाम आज तक याद है।
सैम ने कई अवसरों पर मौत को चकमा दिया था, जंग के मैदान और उससे परे भी। हालांकि वे 90 वर्ष से ज्यादा जिए। सैम अपने मिलिट्री डॉक्टर पिता की तरह डॉक्टर ही बनना चाहते थे, लेकिन वे फील्ड मार्शल के पद तक पहुंचे।

सन 1942 में नौजवान कैप्टेन के रूप में बर्मा में तैनाती और जापान के साथ जंग के दौरान वे गंभीर रूप से घायल हो गए। नौ गोलियां उनके शरीर को छलनी कर गईं। जब वे मौत से संघर्ष कर रहे थे, तो उनके जांबाज सिख अर्दली सिपाही शेर सिंह ने आकर उन्हें मौत के मुंह से बचा लिया।

सिर का ताज

उनकी पलटन के जांबाज सिख जवानों ने घोषणा की थी : ” कैप्टेन माणेकशॉ हमारे सिर का ताज हैं और उन्हें किसी भी कीमत पर बचाना होगा”। सैम का अर्दली शेर सिंह उन्हें अपनी पीठ पर लाद कर काफी दूर स्थित चिकित्सा सहायता चौकी तक ले गया, जहां सेना के डॉक्टरों ने प्राथमिकता से उनका इलाज किया।

सैम माणेकशॉ को उनके अदम्य साहस के लिए मिलिट्री क्रॉस से नवाज़ा गया और वे 94 वर्ष की आयु तक जीवित रहे। अपने परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों से घिरे सैम ने नीलगिरी हिल्स के अपने कोन्नूर गृह – स्तवका में 27 जून, 2008 को इस दुनिया को शांतिपूर्वक अलविदा कह दिया।

मेजर जनरल प्रसाद का अनुभव

मेजर जनरल प्रसाद को 1971 की याद आज भी ताजा है, जब वे मैसूर मेडिकल कॉलेज में पढ़ा करते थे। वह दौर देशभक्ति से ओत-प्रोत था। सैम बहादुर के रहस्यमय आभामंडल से प्रभावित “मेरे जैसे अनेक लोग अपने शुरूआती वर्षों में किसी अन्य क्षेत्र में शानदार करियर बनाने की जगह सशस्त्र बलों से जुड़ने के लिए प्रेरित हुए।”

प्रसाद कहते हैं, “मैं 1977 में डॉक्टर के रूप में सेना से जुड़ा। मुझे उन्हें पहली बार देखने और सुनने का मौका 90 के दशक के आरंभ में देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड के दौरान मिला, जहां उन्हें नौजवान अधिकारियों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था।”

मेजर जनरल प्रसाद याद करते हैं, “पहली निजी मुलाकात में मुझे उनके करिश्माई आकर्षण ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। अस्पताल के गलियारों से जब वे धीमे-धीमे गुजर रहे थे, तो वे सभी की निगाहें उन्हीं पर टिकी थी। लोग उन्हें दम साधे देख रहे थे और उनकी उम्र तथा अस्वस्थता के बावजूद खामोश रहकर उनकी सराहना कर रहे थे।”

मेजर जनरल प्रसाद बताते हैं, “वे उसी समय अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहते थे। मैंने अस्पताल के अधिकारियों को उनका इलाज घर में करने के लिए राज़ी करके दिल्ली में उनकी छोटी पुत्री के घर पर उनके इलाज का जोखिम लिया।”

अपने डॉक्टर के साथ अंतिम दिन

” 22 जून, 2008 को, अचानक उनकी हालत बिगड़ने पर मैंने दिल्ली से आपातस्थिति में सैन्य अस्पताल वेलिंग्टन, नीलगिरी पहुंच कर उन्हें आखिरी बार देखा।”
इस बारे मैंने बुजुर्ग फील्ड मार्शल को काफी कमजोरी की हालत में देखा। उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और वे बिस्तर पर थे तथा आंखे बहुत कम खोल पाते थे।
मेजर जनरल प्रसाद बताते हैं, “ऐसे मामले, जिनमें फेफड़ों की पुरानी बीमारी, घातक ब्रॉन्को निमोनिया के साथ मिलकर और जटिल रूप धारण कर चुकी हो और जिससे 94 वर्ष के फील्ड मार्शल पीड़ित थे, से निपटने के अपने लंबे अनुभव से मैंने खतरा भांप लिया और सभी को सतर्क कर दिया कि अगले कुछ घंटों में ही अनहोनी घट सकती है।”

उऩकी हालत को देखते हुए मेजर जनरल प्रसाद को आशंका हो गई कि उनके सबसे ज्यादा विख्यात मरीज अगले 24 घंटों तक नहीं बच सकेंगे। घातक निमोनिया, इस दृढ़ योद्धा को परास्त कर रहा था।
उनके नाती जेहान और दामाद धुन दारूवाला ने सारी उम्मीदें छोड़ दी थी और वे उनके सिरहाने खड़े होकर किसी चमत्कार की प्रार्थना कर रहे थे। उनकी बेटियां, शैरी और माजा चेन्नई और दिल्ली से पहुंच रही थीं।

सभी प्रार्थना और उम्मीद कर रहे थे कि वे अपनी पुत्रियों के आने तक सांसों की डोर थामे रखेंगे। जैसे अतीत में फील्ड मार्शल ने तमाम विपरीत हालात से टक्कर ली थी, वैसे ही उन्होंने इस जानलेवा संक्रमण को अपनी पुत्रियों के आने तक, अगले कुछ दिन तक खदेड़ दिया।

दोनों पुत्रियों के आने पर फील्ड मार्शल ने उन्हें पहचान लिया और आखिरी बार उनसे बात की। उन्होंने अपनी मौत की योजना भी अपने किसी प्रसिद्ध सैन्य अभियान की तरह बनाई और वे अपने जीवन और मौत, दोनों में विजेता बनकर उभरे।

उनकी मौत से कुछ क्षण पहले वहां मौजूद लोग एक आश्चर्यजनक घटना के गवाह बने।

सैम माणेकशॉ की छोटी पुत्री माजा दारूवाला ने खुद पर काबू पाने की कोशिश करते हुए बेहोश पड़े अपने विख्यात पिता के जीवन और समय के बारे में बोलना शुरू किया।
जैसे ही उन्होंने अपनी मां सिल्लू का नाम लिया, फील्ड मार्शल ने अपनी उस हालत के बावजूद प्रतिक्रिया दिखाई। जो मॉनिटर उनके ऑक्सीजन सेचुरेशन को बहुत कम दर्शा रहा था, अचानक कुछ देर के लिए वृद्धि दर्शाने लगा, जबकि उनकी सांस और नाड़ी की गति स्थिर बनी रही।

27 जून, 2008, प्रभात के समय उन्होंने शांतिपूर्वक इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उस समय उनकी बेटियां उनका हाथ थाम कर प्रार्थना कर रही थीं।
उन्हें शायद अपनी मौत का पूर्वाभास हो गया था। मौत से कुछ दिन पहले उन्होंने अपना इलाज कर रहे एक डॉक्टर को अपनी बाजू की त्वचा पर बने एक निशान की ओर इशारा करके कहा था कि इसके गायब होते ही उनकी मौत हो जाएगी। सचमुच वह निशान मिट गया और इस महान हस्ती का वजूद भी।

(पसूका फीचर)
उपरोक्त लेख मेजर जनरल बी.एन.बी.एम प्रसाद की कोलकाता में पूर्वी कमान के अस्पताल के कमांडेंट के रूप में तैनाती के दौरान लेखक के साथ हुई बातचीत पर आधारित है। वे वेलिंग्टन में सैन्य अस्पताल के भी कमांडेंट रह चुके हैं। मेजर जनरल प्रसाद इस समय रक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली में डीजीएएफएमएस कार्यालय में सीनियर कंसल्टेंट (मेडीसिन) हैं।

3 अप्रैल, 2014, बृहस्तपतिवार फील्ड मार्शल एस.एच.एफ.जे. माणेकशॉ की जन्म शताब्दी है।
*ग्रुप कैप्टेन, सीपीआरओ, रक्षा मंत्रालय, कोलकाता

By Editor


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