‘हिंदुत्व की उनकी तिकड़म मुसलमानों को केंद्र में रख कर चलाई जा जाती है, लेकिन इसकी जड़ें दलितों के खिलाफ नफरत ही है। इनको वो आज भी अशुद्ध समाज मानते हैं। दलितों के खिलाफ नफरत को अंबेदकर के प्रति ढेर सारा प्यार जता कर और दलितों के लिए जबानी चिंताएं जाहिर करते हुए छिपा लिया जाता है।‘ ये बातें आज पटना में द इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजिनियर्स बिहार स्टेट सभागार में फिलहाल ट्रस्ट द्वारा आयोजित तेरहवें प्रोफेसर प्रधान हरिशंकर प्रसाद स्मृति व्याख्यान में राजनीतिक विश्लेषक आनंद तेलतुंबड़े ने कही।
नौकरशाही डेस्क
दलित उत्पीड़न और प्रतिरोध का नया दौर: चुनौतियां और संभावनाएं विषय पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मोदी राज में अत्याचारों ने नई ऊंचाई छू ली है। गाय की रक्षा करने की हिंदूवादी सनक सीधे – सीणे दलितों की जातीय पेशे के साथ टकराती है। हिंदूत्व गिरोह को इस बात की समझ है कि उनके मकसद को हासिल करने के लिए दलितों को अपने पक्ष में रखना जरूरी है। इसलिए अंबेदकर के जरिए दलितों पर प्यार लुटा कर पागल हुआ जा रहा है। हिंदुत्व और दलितों के बीच विचारधारात्मक और सांस्कृतिक अंतर्विरोधों का समय – समय पर फूटना जारी है।
उन्होंने कहा कि हालांकि प्रतिरोध के आंदोलानों ने दलितों के लिए उम्मीद जगाई है, लेकिन मुश्किलें कम नहीं है। अंदरूनी मुश्किलें दलितों के बीच अस्मिता या पहचान के जुनून की वजह से पैदा होता है। जो बड़े मजे से अपनी विचारधारा के खोखल में खुद को बंद कर लेते हैं। दूसरों से डरने और दूर रहने का रवैया उन्हें इस कदर अंधा कर देता है कि वे यह नहीं देख पाते कि वर्गीय आधार पर लोगों के बीच एकता बनाए बिना वे अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकते हैं। ये लक्ष्य चाहे अदूरदर्शी क्यों न हो। जातियां अपनी बनावट में ही किसी किस्म की एकता बनाने के लिए अक्षम हैं और ये लोगों को सिर्फ उप जातियों के खात्मे के लिए एक रैडिकल आंदोलन खड़ा करने की राह में सबसे बड़ी बाधा है।
आनंद तेलतुंबड़े ने भाजपा और उसके हिंदू राष्ट्र बनाने की हर बाधा पार करने के बाद की स्थिति से आगाह करते हुए कहा कि इसके बाद दलितों का उपयोग का कोई नहीं रह जाएगा। जिस सीमा तक हिंदू राष्ट्र ‘हिंदू’ संस्कृति पर टिका हुआ है, जिसका मतलब और कुछ नहीं बल्कि जातीय संस्कृति है, उस सीमा तक दलितों के भविष्य की बखूबी कल्पना की जा सकती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता बुद्ध शरण हंस ने की। स्वागत भाषण फिलहाल ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित पत्रिका फिलहाल : संघर्ष चेतना के मुखर सहयात्री की संपादक प्रीति सिन्हा ने दिया। व्याख्यान के पहले कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया के पार्थ सरकार ने प्रोफेसर प्रधान हरिशंकर प्रसाद को एक जन पक्षधर अर्थशास्त्री और बुद्धिजीवी के रूप में याद किया। धन्यवाद ज्ञापन फिलहाल ट्रस्ट के एक संस्थापक ट्रस्टी प्रो कृष्ण बल्लभ सिंह ने किया।