राम मनोहर लोहिया को समझने के लिए यूं तो सिर्फ एक लेख काफी नहीं पर बिहार के पूर्व मंत्री गजेंद्र प्रसाद हिमांशु ने लोहिया के व्यक्तित्व को जिस तरह से यहां सहेजा उससे उनके कई पहलू उजागर होते हैं.rammanoharlohia

 लोहिया की पुण्य तिथि 12 अक्टूबर पर खास पेशकश

डॉ.लोहिया विलक्षण प्रतिभा के थे। वे न केवल 22 वर्ष की अवस्था में जर्मन भाषा में जर्मनी जाकर पी. एच. डी. की बड़ी उपाधि  ली बल्कि उनके पास ज्ञान का अगाघ भंडार था। उन्होंने महात्मा गांधी  के सिद्धांतों  का अमल किया, आगे बढ़ाया और समाज को नये विचारों से लैस करके नये समाजवाद की रचना की।

गांधी ने बताया भारत की आत्मा

जापान के समाजवादी नेता याशीकी होशनो ने 1957 में ठीक ही कहा था कि लोहिया गांधीवाद के विकसित उत्तराध्किारी है। महात्मा गांधी ने देश की आजादी के दिनों में जब कि डॉ.लोहिया जेल में बन्द थे तो एक पत्रा लोहिया जी के नाम लिखा था – ‘‘तुम बहादुर हो लेकिन बहादुर तो शेर भी होता है, तुम विद्वान हो लेकिन विद्वान तो वकील भी होता है। इस से परे तुम्हारा विशिष्ट गुण है, शील यानी चरित्रा में धरावाहिकता।’’ गांधी ने यह लिखा कि लोहिया के जेल में रहने से आज भारत की आत्मा कैद मै है। इस पत्रा से पता चलता है कि महात्मा गांधी को लोहिया जी के प्रति कितना प्रेम और विश्वास था।

डॉ.राममनोहर लोहिया 20वी शताब्दी के एक महान विचारक, चिन्तक एवं राजनीतिक के रूप जाने जातेहैं। इनकी तुलना अरस्तू, प्लेटो और सुकरात से की जाती है। उन्होने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण विश्व से गैरबरावरी और जुल्म के विरू( संघर्ष करने में अर्पित कर दिया। उनके पास अपना कहने के लिये केवल अपना देश था वे कहते थे कि – ‘‘आज मेरे पास कुछ नहीं है सिवाय इसके कि हिन्दुस्तान के साधरण और गरीब लोग सोचते है कि मै उनका आदमी हूँ।’’

 

डॉ. लोहिला अविवाहित थे। उन्हें रहने के लिये घर तक नही था। सम्पत्ति के नाम पर कहीं कुछ भी नहीं था। वे सदा सत्ताभोगियों, सत्ता लोलुपों और वंशवाद और परिवार वाद के खिलापफ बोलते रहे। प्रधनमंत्री जवाहर लाल के वंशवाद की भविष्यवाणी वे पहले ही कर चुके थे। वे जिस वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ थे वे आज की राजनीति में प्रायः आम बात हो गई है।

हिंदी प्रेम

डॉ.लोहिया देश में एक रास्ट्रभाषा हिन्दी चले इसके प्रबल हामी थे। हिन्दी को देश को जोड़ने की एक कड़ी मानते थे जो देश के बहुसंख्यक लोग बोलते और जानते हैं। वे बंगला, मराठी, तेलगू, तमिल, कन्नड़ आदि भाषाओं के भी समर्थक थे, वे इन सभी भाषाओं के भी विकास और समृधि  पर जोर देते थे मगर देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी को अंग्रेजी के मुकाबले कभी पीछे नही देखना चाहते थे उनका कहना था जब चीन में चाइनीज, जर्मनी में जर्मन, रूस में रूसी एवं प्रफांस में प्रफैंच भाषाएं चलती है। और दो देश अपनी भाषाओं के द्वारा तरक्की की है तो हिन्दुस्तान अपनी राष्ट्रभाषा में देश को आगे क्यों नहीं बढ़ा सकता है। इन्होंने देश में समाजवादियों द्वारा नारा दिया था – ‘‘अंग्रेजी में काम न होगा फिर  से देश गुलाम नही होगा’’। ‘‘अंग्रेज यहाँ से चले गये, अंग्रेजी को भी जाना है।’’

डॉ. लोहिया खुद अंग्रेजी, प्रफैच, जर्मन आदि भाषा के बड़े विद्वान थे। फिर भी देश के अन्दर वे हिन्दी में ही अपना भाषण करते थे। दक्षिण भारत के कुछ जगहों में इन्हें हिन्दी में भाषण करने के कारण इन पर पत्थर फेंके  गये और अंग्रेजी बोलने को कहा गया इन्होंने कहा तुमलोग जान से मार डालोगे फिर भी वे अंग्रेजी में नहीं बोलगें।

 

चौखम्भा राज्य

डॉ. लोहिया देश में सत्ता के विकेद्रीकरण के द्वारा ही लोकतंत्रा को मजबूत करना चाहते थे गरीब जनता तक लोकतंत्रा का लाभ पहुँचाना चाहते थे। वे चाहते थे केन्द्र केवल सत्ता पर एकाधिकार न रखकर सत्ता का विकेद्रीकरण करे जिसमें प्रान्त ;राज्य जिला और पंचायत को सत्ता का अधिकार मिले ये पंचायतों को अत्यध्कि मजबूत करना चाहते थे। वे चाहते थे पंचायतों को अपनी योजना बनाने और धन प्राप्त करने का हक हो। साथ ही पंचायतों को अपना पुलिस प्रशासन भी हो जो ग्राम सभा दल के रूप में काम करेगा। इस विकेद्रीकरण को इन्होंने ‘‘चैखम्भा’’ राज्य कहा।

चैखम्भा राज सही रूप में चलेगा तभी देश आत्मनिर्भर और विकसित होगा और गाँवों के गरीब मजदूर तक देश के पैसा का सदुपयोग हो सकेगा।

राममनोहर लोहिया ने 1950 में ही ‘‘हिमालय बचाओ’’ समेलन कर हिमालय के आस पास के इलाको को बाहरी आक्रमण से बचाने का विचार दिया था। ये भारत और चीन को विभाजित करने वाली मैक मोहन रेखा को नकली रेखा मानते थे।

वे  कहते थे ये अंग्रेज द्वारा बनाई गई रेखा है। ये हिमालय कैलाश को अपने देश का शंकर मानते थे। इनका कहना था हमारे देश का शंकर भगवान दूसरे देश में कैसे बसते। शंकर भगवान का कैलाश पर्वत पर वास होना हमारे पुरानों में भी है।

देश में तत्कालिन प्रधन मंत्राी जवाहर लाल नेहरू जब चीनी प्रधन मंत्राी से मिल कर हिन्दी चीनी भाई-भाई की नारा दे रहे थे तो चीनी प्रधन मंत्राी धेखा देकर 1962 में भारत पर हमला बोल कर 40 हजार एकड़ जमीन कब्जा कर लिया जो आज भी चीन के कब्जा में है। चीनी का धेखा और भारतीय जमीन को कब्जा को लेकर इस समय डॉ.लोहिया ने भारत के संसद में सरकार पर अविश्वास का प्रस्ताव लाकर सारे देश को झकझोर दिया था।

डॉ.लोहिया मानते थे कि देश के बहुत दिनों तक गुलाम रहने के कारण यहाँ लोग अधिकतर लोग झूठा वेइमान, चालाक दोहरी जुबान और बुजदिल हो गये है जिसके कारण देश में भयंकर भ्रस्टाचार और गरीबी है। चालाक और बेईमान आज भी समाज में जाति की धार तेज  करके लोगों में उन्माद फैलाकर वोट बटोरते हैं और देश एवं गरीबों को लूटते हैं।

विशेष अवसर सिद्धांत

इसलिये डॉ.लोहिया ‘‘विशेष अवसर’’ का सिद्धांत  प्रतिपादित किया कि विशेष अवसर से जातियों टूटेगी और देश मजबूत होगा। डॉ.लोहिया  समाजवादियों द्वारा देश में बराबर जाति तोड़ो सम्मेलन कराते रहते थे। आज डॉ.लोहिया हमलोगों के बीच नहीं हैं नहीं तो आज के नेताओं  द्वारा वोट के लिये जातियों के लड़ा-लड़ा कर वोट बटोरते देखते।

डॉ. लोहिया राजनीति को दीर्घकालीन  धर्म  और धर्म को अल्पकालिन राजनीति मानते थे। इनका चिन्तन था विना राजनीतिक शुचिता  नैतिकता और सिद्धांत  के विना राजनीति देश और समाज कोचला ही नहीं सकती।

सिद्धांत हीन राजनीति को वे कुलटा कहते थे। महात्मा गांधी  के विचारों के अनुसार लोहिया भी अच्छाई के लिये राजनीति में या नी लक्ष्य पर पहुँचने के लिये माध्यम को शुचिता और सच्चा होना जरूरी समझते थे।

डॉ.लोहिया लोकनायक जयप्रकाश नारायण को अपना बड़ा भाई समझते थे देश की आजादी की लड़ाई में जे.पी. और लोहिया साथ-साथ मुल्क को आजाद कराने के लिये लड़े और यातनाएं झेली।

 

वे नौजवानों को देश का भविष्य और उर्जा का स्त्रोत मानते थे। उनका कहना था नौजवानों की चेतना और जागृति पर ही देश का भविष्य निर्भर करता है। 12 अक्टूबर 1967 की डॉ. राममनोहर लोहिया का निधन  दिल्ली के बेचिंगरन अस्पताल में 57 वर्ष की अवस्था में हो गया।

लेखक बिहार सरकार में मंत्री और  उपाध्यक्ष बिहार विधान सभा  रह चुके हैं. उनसे 8084994235/9470020238 पर सम्पर्क किया जा सकता है.

By Editor

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