वैसे तो नौकरशाही तंत्र में वरिष्ठता नियुक्ति के समय के आधार पर आंकी जाती है लेकिन कई बार छोटे रुत्बे के आईएस वरिष्ठों पर भी भारी पड़ जाते हैं.ऐसा ही हुआ बिहार की नौकरशाही में.
बिहार सरकार के अधीन नौकरशाही में भी अलग-अलग सत्ता और शक्ति के केंद्र रहे हैं. ऐसे में एक सत्ता शीर्ष के करीब तरीन रहे सचिव ने दूसरे विभाग के प्रधानसचिव स्तर के एक आईएएस को फोन किया. उधर प्रधानसचिव के सहायक ने फोन उठाया तो हुक्म हुआ कि ‘अपने बॉस से बात कराओ’.
सहायक ने रिसीवर बॉस को थमाया तो बॉस ने अपने सहायक स पूछा कि वह( फोन करने वाले आईएएस) किस बैच के हैं? सहायक ने बताया कि वह आपसे दो बैच जूनियर हैं. चूंकि फोन ऑन था लिहाजा लाइन पर मौजूद आईएएस ने उनकी बात सुन ली. और फौरन कहा कि ‘सचिवालय के इस ‘खास’ विभाग का कोई बैच नहीं होता है.यह ‘खास’ विभाग अपने आप मे कैडर होता है और सबसे ऊपर होता है’.इस पर कहा-सुनी गर्मागर्म बहस में बदल गयी.सत्ता के करीबी आईएएस ने ,न सिर्फ प्रधानसचिव महोदय को धमकाया बल्कि जोरदार झिड़की भी पिलायी.
इसके बाद प्रधानसचिव महोदय के ईगो को चोट पहुंची. वह सत्ता के एक ‘अतिरिक्त’ केंद्र तक शिकायत पहुंचाने चले गये. जब इन्होंने अपनी शिकायत वहां रखी तो वहां से जो जवाब मिला वह और विचलित करने वाला था.
सत्ता के अतिरक्त केंद्र पर विराजे महाशय को इस घटनाक्रम की पहले से ही जानकारी थी. सो उन्होंने पूछा कि क्या उसने( जूनियर आईएएस ने) तुम्हे अपश्बद भी कहे? जवाब मिला- ‘जी’. फिर सत्ता के अतिरिक्त केंद्र के बॉस ने प्रधानसचिव स्तर के अधिकारी को टका सा जवाब दिया- ‘ठीक ही तो कहा उसने’.
बेचार बड़े आईएएस इतना सुनते ही अपनी औकात में आ गये और समझ गये कि सीनियरिटी सिर्फ दस्तावेजों तक ही कैद है.
नोट- यह घटना पुरानी है पर इसकी खबर हमारी टीम को पिछले दिनों नौकरशाही के गलियारे से मिली