आम तौर पर ऐसा नहीं होता कि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ही किसी अन्य संवैधानिक एजेंसी के सवालों के घेर में आ जाये, पर आ गया है. यहां पढें.
मामला यह है कि मुख्य सूचना आयोग को शिकायत मिली है कि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने सूचना अधिकार के तहत पूछे गये एक गंभीर मामले का सवा क्या टाल गया कि मुख्य सूचना आयोग ने उसे नोटिस जारी कर दिया और निर्देश दिया है कि आइंदा 30 अक्टूबर को अपना पक्ष रखने के लिए सर्वोच्च अदालत के सीपाईओ स्तर के अधिकारी सूचना आयोग के समक्ष उपस्थित हों.
अमर उजाला डॉट कॉम में पीयूष पांडेय की खबर के अनुसार मामला यह है कि अधिवकता गौरव अग्रवाल ने सूचना अधिकार के तहत पूछा कि सुप्रीम कोर्ट के कितने जजों के पुत्र-पुत्री या रिश्तेदार सर्वोच्च अदालत में वकालत की प्रैक्टिस करते हैं? इस सवाल के जवाब में अदालत प्रशासन ने टालू रवैया अपनाया. फिर क्या था गौरव ऊपर गये और सूचना आयोग को शिकायत करदी.
सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए इस सवाल का जवाब न देने पर मुख्य सूचना आयोग ने सर्वोच्च अदालत प्रशासन को नोटिस जारी किया है.
सुप्रीम कोर्ट से आरटीआई में यह कठिन सवाल अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने पिछले साल नवंबर में किया था. लेकिन जनवरी में दिए गए जवाब में अदालत की अतिरिक्त रजिस्ट्रार व सीपीआईओ ने कहा कि इस तरह की सूचना को एकत्र नहीं किया जाता.
इसके बाद अधिवक्ता ने सूचना न दिए जाने की अपील प्रथम अपीलीय प्राधिकरण में कर दी, जिसे इसी वर्ष मार्च में खारिज कर दिया गया। तब अधिवक्ता ने केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का दरवाजा खटखटाया.
सर्वोच्च अदालत के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन के मुताबिक मौजूदा समय सात न्यायाधीशों के बच्चे सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं. जबकि पिता के न्यायाधीश रहते उन्हें प्रैक्टिस नहीं करनी चाहिए.
अधिवक्ता की आरटीआई पर सीआईसी ने इस मसले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए नोटिस जारी करने के साथ ही अदालत के सीपीआईओ को भी तलब कर लिया.
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