बिहार विधानसभा के दो बार उपाध्यक्ष रहे शकूर अहमद की पुण्यतिथि के अवसर पर पेश है बिहार के भूले-बिसरे नेता की उपलब्धियों बानगी.
सैयद उमर अशरफ
युं तो आज़ादी से पहले और उसके बाद बिहार विधानसभा के बहुत से उपाध्यक्ष हुए पर एक शख़्स है जो थोड़ा अलग है. ये नाम है शकूर अहमद का. स्वतंत्रता आंदोलन में शकूर अहमद के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता . जंगे आज़ादी के क़द्दावर नेता और बिहार विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष शकूर अहमद की पैदाईश 9 जनवरी 1924 को मधुबनी मे हुई और वह अकले व्यक्ति हैं जिन्हें बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष पद पर 2 बार बैठाया गया
. इनका पहला कार्यकाल 1-7-1970 से 8-1-1972 तक रहा और दुसरा कार्यकाल 4-6-1972 से 30-4-1977 तक रहा. और बिहार विधानसभा के इतिहास मे उपाध्यक्ष पद पर सबसे अधिक दिन तक उन्होंने ही योगदान किया.
जरा याद उन्हें भी कर लें: 10 जुलाई- जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर हमें छो़ड़ गये
. मिथिलांचल के विकास में भी शकूर साहब के महत्वपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। जब तक वो सियासत मे रहे कर्मठता के साथ विकासात्मक कार्यो के लिए उनका प्रयास निरंतर जारी रहा। उनके कार्यकाल में विकास की कई मंजिल तय की गई। दरभंगा मेडिकल कालेज तथा मिथिला विश्वविद्यालय का निर्माण उनके कार्यकाल मे ही हुआ
13 जुलाई 1981 को शकूर अहमद ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा.
शकूर अहमद के बेटे शकील अहमद फिलहाल कांग्रेस राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं. शकील ने हाल ही में एक ट्विट करते हुए शकूर अहमद की सेक्युलर छवि का उल्लेख करते हुए कहा था कि उन्होंने लगातार छह बार विधान सभा का चुनाव उन क्षेत्रों से जीता जहां मुसलमानों की आबादी बमुश्किल 15 प्रतिशत है.