अब्दुल गफूर 1973-75 तक मुख्यमंत्री रहे

10 जुलाई को बिहार के पूर्व  मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर की बरसी के तौर पर याद किया जाता है लेकिन अफसोस है कि मौजूदा सियासत ने गफूर को भुला दिया है. जानिये गफूर के बारे में .

अब्दुल गफूर 1973-75 तक मुख्यमंत्री रहे
अब्दुल गफूर 1973-75 तक मुख्यमंत्री रहे

सैयद उमर अशरफ

आज़ादी के बाद से बिहार में कई मुख्यमंत्री बने। लेकिन आपको जानकर हैरत होगी कि आजादी के बाद से अब तक बिहार में सिर्फ एक ही मुस्लीम सीएम बना हैं। जिन्हे लोग अब्दुल गफ़ुर के नाम से जानते हैं। इनके बाद से कोई भी मुस्लिम समाज का नेता सीएम पद तक नहीं पहुंचा है, जबकि बिहार में मुस्लिम समुदाय का जनाधार काफी है जो कि बिहार का सबसे बड़ा वोटर समूह भी है।

 

हालांकि, अब्दुल गफ़ुर भले ही सीएम बन गए, लेकिन उन्हें भी मुख्यमंत्री की कुर्सी 2 साल के लिए ही नसीब हुई थी। वह 2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक बिहार के सीएम रहे। 1975 में तत्कालीन प्राधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और जगन्नाथ मिश्र को सीएम बना दिया गया।

 केंद्रीय मंत्री भी रहे

केदार पाण्डेय और जगन्नाथ मिश्र के बीच अब्दुल गफ़ुर पिस कर रह गए पर उन्होंने हार नही माना. 1984 मे कांग्रेस के टिकट पर सिवान से जीत कर सांसद बने और वे 1984 के राजीव गांधी सरकार मे नगर विकास विभाग मंत्री भी रहे और फिर 1996 मे गोपालगंज से समता पार्टी के टिकट पर जीत कर संसद पहुचे.

अब्दुल गफ़ुर पहली बार 1952 मे बिहार विधान चुनाव मे जीत कर विधायक बने और वे बिहार विधान परिषद् के अध्यछ भी रहे .1918 मे बिहार के गोपालगंज ज़िला के सराए अख़तेयार के एक इज़्ज़तदार ख़ानदान मे पैदा हुए अब्दुल गफ़ुर बचपन से ही मुल्क के लिए कुछ करना चाहते थे. गोपालगंज से ही  आरभिंक शिक्षा हासिल की फिर आगे पढ़ने के लिए पटना चले आए, पढने मे तेज़ तो थे ही इसलिए घर वालों ने अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी भेज दिया जहां से उनका सियासी सफ़र शुरु हुआ.

पहली विधानसभा के सदस्य

हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने का जज़्बा लिए जंगे आज़ादी मे कुद पड़े जिस वजह कर सालो जेल मे रहना पड़ा. अब्दुल गफ़ूर ने जिन्ना की टु नेशन थेयोरी को ठुकरा दिया और अखंड भारत की वकालत की, फिर देश आज़ाद हुआ तो 1952 मे बिहार विधान चुनाव मे जीत कर विधायक बने फिर 2 जुलाई 1973 से 11 अप्रैल 1975 तक बिहार के सीएम रहे।

केंद्र मे मंत्री भी बने फिर आखि़रकार लम्बी बिमारी से लड़ते हुए 10 जुलाई 2004 को पटना मे इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.

अब्दुल ग़फ़ुर को उनके गांव सराए अख़तेयार मे दफ़नाया गया। पटना मे अब्दुल ग़फ़ुर के नाम पर ना कोई कालेज दिखता है और ना ही कोई स्कूल , यहाँ तक के एक सडक भी नही अब्दुल ग़फ़ूर के नाम पर जो ये बताने के लिए काफ़ी है की किस तरह मौजूदा सियासत ने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया है.

By Editor


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