बिहार में पिछड़ों के राजनीतिक उभार ने ऐतिहासिक तौर पर कई समीकरण ध्वस्त कर दिये. लेकिन जिन अतिपिछड़ों की बदौलत यह राजनीतिक उभार आया वही हाशिये पर ही रह गये.
अजय कुमार
बिहार में पिछड़ों की एकजुटता जाति व्यवस्था के आधार पर भेदभाव और असमानता के खिलाफ थी. यह आंदोलन जाति के बंधनों को तोड़ने की वकालत करता है. लेकिन पिछड़ों के आंदोलन में शामिल चार मजबूत पिछड़ी जातियों ने आबादी के अनुपात में ज्यादा राजनीतिक हिस्सेदारी पा ली. अति पिछड़ी जातियों की भागीदारी कम रही.
मंडल काल की एकता
नब्बे के मंडल काल के दौरान पिछड़ों की बनी जबरदस्त एकजुटता के विधानसभा और लोकसभा के लिए निर्वाचित होने वाले सदस्यों की जातीय पृष्ठभूमि पहली बार बदली. बदलाव का यह क्रम 1995 में चरम रूप में सामने आया जब विधानसभा में पहुंचने वाले 324 विधायकों में 160 पिछड़ी जाति के थे. इसके ठीक उलट 1967 के चुनाव में विधानसभा की सामाजिक बनावट दूसरी थी. तब निर्वाचित हुए विधायकों में 133 ऊंची जाति के थे और पिछड़ों की संख्या थी महज 82. अति पिछड़ी जाति के विधायकों की संख्या थी पांच. 1967 से 1990 के दौरान विधानसभा में ऊंची जाति के विधायकों की तादाद सौ से कभी कम न रही.
1990 के दौरान राजनीति के केंद्र में पिछड़ों की राजनीति का दखल होना शुरू हुआ. उसी दौरान पिछड़ों की मजबूत जातियों के बीच अंतरविरोध भी उभरने लगे. यादव और कुर्मी जातियों का अंतरद्ंवद्व शुरू हुआ. यह अंतरद्वंद्व राजनीति में हिस्सेदारी की आकांक्षा से जुड़ी थी. उन्ही दिनों गांधी मैदान में कुर्मी चेतना रैली हुई. वह बड़ी रैली थी. बाद में समता पार्टी बनी जिसका केंद्रीय आधार पिछड़ा वर्ग था.
यादव-कुर्मी एकता में दरार
1995 के विधानसभा चुनाव में समता पार्टी को कोई खास सफलता तो नहीं मिली, पर इतना तय हो गया था कि सामाजिक न्याय के दायरे में आने वाली जातियों की एकता में दरार आयेगी. पिछड़ी जातियों की एकजुटता में क्षरण के संकेत वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में दिखायी देने लगे. उस साल हुए विधानसभा के चुनाव में पिछडी जाति के विधायकों की संख्या घटकर 121 पर पहुंच गयी. जबकि अगड़ी जाति के विधायकों की संख्या 1995 और 2000 के चुनाव में 56-56 रही. लेकिन अति पिछड़ी जाति के विधायकों की संख्या 1995 के चुनाव के मुकाबले वर्ष 2000 में घटकर 16 से 14 पर आ गयी.
वर्ष 2005 के चुनाव में बड़ा परिवर्तन आया. सामाजिक न्याय की जिन ताकतों की एकजुटता लालू प्रसाद के साथ थी, वह छिजन की शिकार हो गयी. पिछड़ों यादव जाति को छोड़कर ज्यादा हिस्सा नीतीश कुमार के साथ जुड़ गया. उसके पहले ही जदयू और भाजपा के बीच गंठबंधन कायम हो गया था. यह गंठबंधन सत्ता पर दावेदारी के लिए तैयार था. वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में तसवीर बदल गयी. विधानसभा में पहुंचने वाले पिछड़े विधायकों की संख्या 124 तो हुई, पर वे जदयू और भाजपा के साथ थे. वह चुनाव विधानसभा की 243 सीटों के लिए हुआ था क्योंकि 15 नवंबर 2000 को बिहार के 18 जिलों के अलग कर झारखंड नया राज्य बन चुका था. इस तरह विधानसभा की 324 सीटें घटकर बिहार में 243 रह गयी थीं. 2005 के विधानसभा चुनाव में अगड़ी जाति के विधायकों की संख्या में एक दशक के बाद थोड़ा इजाफा हुआ. 56 से उनकी संख्या बढ़कर 59 हो गयी. मार्के की बात यह भी रही कि उसी चुनाव में पहली बार अति पिछड़ी जाति के सबसे अधिक 19 विधायक विधानसभा में पहुंचे.
पिछड़ों के टकराव का अगड़ों को फायदा
इसके बाद आया 2010 का विधानसभा चुनाव. उस चुनाव में अगड़ी जाति के विधायकों की संख्या पिछले चुनाव के मुकाबले बढ़कर 79 हो गयी और पिछड़ी जाति के विधायकों की संख्या गिरकर 105 पर पहुंच गयी. 1990 के बाद पिछड़े विधायकों की यह सबसे कम संख्या थी जबकि अति पिछड़े विधायकों की संख्या में दो की कमी आ गयी. उनकी संख्या हो गयी 17. पिछड़ों की मजबूत जातियों के साथ अब अति पिछड़ी जातियों की रस्साकशी शुरू हुई. उनके भीतर भी सत्ता में हिस्सेदारी की भूख पैदा हुई. पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण लागू करने संबंधी नीतीश सरकार के फैसले ने निचले स्तर पर सत्ता के केंद्र बदल दिये. अति पिछड़ी जातियों की भागदारी पंचायतों और नगर निकायों में बढ़ी तो अब वे विधानसभा में पहुंचने की दावेदारी की ओर बढ़ चले.
विधानसभा में जाति के आधार पर प्रतिनिधित्व
वर्ष अगड़ी जाति- पिछड़ी जाति- अति पिछड़ी जाति
1967 133 82 05
1969 122 93 05
1972 136 77 06
1977 125 92 04
1980 120 96 05
1985 118 89 03
1990 105 117 06
1995 56 160 06
2000 56 121 14
2005 59 124 19
2010 79 105 17
2010 के विधानसभा चुनाव की सामाजिक बनावट
जाति -जदयू – भाजपा- राजद – लोजपा – कांग्रेस- भाकपा – झामुमो – निर्दलीय- जोड़
कुर्मी 14 2 — 1 1 18
कोयरी 12 5 2 19
यादव 19 8 10 1 1 39
बनिया 1 10 1 12
अति पि 10 7 17
जोड़ 57 32 12 1 1 1 2 105
ब्राह्मण 4 10 2 16
भूमिहार 13 13 26
राजपूत 14 15 3 1 1 34
कायस्थ 2 1 3
जोड़ 31 40 3 1 1 4 79
मुसलिम 7 1 6 2 3 19
अजा 19 18 1 38
अजाजा 1 1 2
प्रभात खबर से साभार