पारम्परिक मीडिया में जातीय वर्चस्व भले ही अब भी बना है पर न्यू मीडिया ने इस वर्चस्व को तोड़ा है और वंचितों को भी इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है.
ई प्रतिका आह्वान के पांच साल पूरे होने पर आयोजित सेमिनार में अनेक बुद्धिजीवी ने यह स्वीकार किया कि हाशिये की आबादी के लिए न्यू मीडिया और सोशल मीडिया एक वर्दान साबित हुआ है. लेकिन इसके गलत इस्तेमाल के खतरे भी हैं इसलिए इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया के तरह सोशल मीडिया के लिए भी कंटेंट को लेकर मानदंड निर्धारित होना चाहिए, ताकि खबरों की मर्यादा आहत न हो।
ई-पत्रिका आह्वान केसंपादक वीरेंद्र कुमार यादव ने कहा कि सोशल मीडिया ने वैचारिक अभिव्यक्ति को व्यापक, तीव्र और बहुआयामी विकल्प उपलब्ध कराया है.
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया की भाषा, कंटेंट और कमेंट सकारात्मक, सार्थक और मर्यादित होना चाहिए. ‘लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका’ पर आयोजित इस सेमिनार में मुसाफिर बैठा ने कहा कि आज अखबारों में भी सोशल मीडिया के कंटेंट को काफी जगह मिल रही है. लेकिन अखबार वाले इस कंटेंट का इस्तेमाल अपने हित के लिए कर रहे हैं, यह खतरनाक प्रवृत्ति है.
वेबसाइट अपना बिहारडॉटओआरजी के संपादक नवल किशोर ने कहा कि सोशल मीडिया के लिए भी चुनाव के संदर्भ में गाइडलाइन तय होना चाहिए, ताकि उनका दुरुपयोग नहीं हो सके.
इस मौके पर मनीष रंजन, फिरोज मंसूरी, उदयन राय, श्याम सुंदर जैसे मीडिया से जुड़े लोगों ने कहा कि सोशल मीडिया एक क्रांति के समान है और इसने सभी वर्गो को अभिव्यक्ति की आजादी दी है.
इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में अब भी कुछ जातियों का आधिपत्य कायम है, लेकिन सोशल मीडिया ने उस आधिपत्य को चुनौती दी है.यह एक सकारात्मक पक्ष है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए.
धन्यवाद ज्ञापन अमित कुमार ने किया.