बिहार के लिए जुलाई महीना जानलेवा साबित हो रहा है.7 जुलाई को बोधि मंदिर ब्लास्ट के बाद 16 को छपरा में जहरीले भोजन से हुई 22 छात्रों की मौत और फिर गोह में माओवादी हमले से पांच जवान शहीद हो गये.
अभी छपरा का मामले के दर्द से बिहार जूझ ही रहा था कि 17 जुलाई को मधुबनी में 15 बच्चे विषाक्त भोजन के शिकार हो कर बेहोश हो गये. इसी दौरान खबर आई कि बुधवार की शाम प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के हमले में गोह में तीन सैप जवानों सहित पांच लोग शहीद हो गये. शहीद होनेवालों में जवानों के अलावा दो निजी सुरक्षा गार्ड के कर्मी हैं.
इन तीनों जानलेवा घटनाओं में जहां अभी तक किसी भी दोषी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका वहीं सियासी पार्टियों के इन मामलों में घटिया सियासी खेल ने आम लोगों को काफी आहत किया है.
छपरा में मासूमों की मौत पर सत्ता पक्ष और विपक्ष जिस तरह से राजनीति खेल रहे हैं उससे आम जनता की राजनीतिक नेतृत्व से उम्मीदें और धुमिल हुई हैं.
शिक्षामंत्री पीके शाही ने साफ शब्दों में आरोप लगाया है कि छपरा में जहरीले भोजन से हुई मौतों के पीछे विपक्षी दलों से जुड़े लोगों का हाथ है. पीके शाही शिक्षामंत्री हैं. अगर उनकी बातों में सच्चाई है तो उनकी सरकार आरोप लगाने के बजाये दोषियों को गिरफ्तार क्यों नहीं कर रही है? पीके शाही और उनकी सरकार को अगर छपरा की घटना में विपक्षी पार्टी का हाथ दिखा है तो मधुबनी में 15 बच्चे जहरीला मिड- डे मील खा कर कैसे बेहोश हो गये, इसका जवाब भी देना चाहिए.
यह तो संतोष की बात है कि अभी तक सत्ताधारी पार्टी ने गोह में हुए माओवादी ब्लास्ट के पीछे किसी विपक्षी पार्टी के नेता की साजिश का आरोप नहीं लगाया है.
जिस तरह से छपरा की घटना के बाद आम लोगों में रोष है और उन्होंने अपना गुस्सा जिस तरह से आगजनी करके दिखाया है, इसे सरकार को समझने की जरूरत है. उनका असल गुस्सा अब इस बात को लेकर है कि दोषियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका.
बोधि मंदिर ब्लास्ट की जांच एनआई कर रही है लेकिन छपरा और मधुबनी की घटनाओं में लिप्त गुनाहगारों को कानून के शिकंजे तक पहुंचाने की जिम्मेदारी तो राज्य सरकार की है. बिहार की जनता और छपरा में रोती-बिलखती माओं की नजरें राज्य सरकार पर टिकी हैं.
देखिए सरकार किस नतीजे पर पहुंचती हैं.