बिहार का विजिलैंस ब्यूरो करोड़ों रुपये के घोटाले के खुलासे के करीब पहुंच चुका है.इस खुलासे का सूत्र पटना नगर निगम के इंजिनियर ललन प्रसाद सिंह के यहां छापामारी से जुड़ा है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट इन
विजिलैंस ब्यूरो ने पिछले हफ्ते ललन के ठिकानों पर छापेमारी की. शुरू में तो विजिलैंस के अफसरों ने मात्र यही सोचा कि उनके यहां वेतन के स्रोत से ज्यादा की दौलत है. पर अब जिस तरह से पड़ताल आगे बढ़ रही है, लगता है कि इस छापेमारी के बाद टॉप लेवल के अफरसों के फंस जाने की पूरी संभावना है. विजिलैंस ने ललन के यहां से प्राप्त दस्तावेजों की जांच के बाद जो सुराग हासिल किये हैं उससे लगता है कि ललन इस घोटाले के मात्र एक छोटे पियादे रहे हैं. हालांकि विजिलैंस का पूरा जोर, अभी तक ललन की काली कमाई पर रहा. लेकिन अब जिस दिशा में उसकी जांच आगे बढ़ रही है, उससे नगरनिगम का पूरा सिस्टम चपेटे में आता जा रहा है.
विजिलैंस का शिकंजा
यूं तो विजिलैंस के अफसरान निगम के इनंजीनियर ललन प्रसाद की काली पोटली की गत्थियां खोलने में जुटे हैं, पर उसकी कई चाबियां निगम के सिस्टम तक पहुंचती दिख रही हैं. ऐसे में इस पूरे खेल के दो हिस्से सामने आ रहे हैं. एक निगम का, तो दूसरा ललन का.
निगम का खेल
नौकरशाही डॉट इन को जो जानकारी मिल रही है, उससे पता चल रहा है कि निगम भ्रष्टाचार के जखीरे पर बैठा है. निगम के भ्रष्टाचार का एक नमूना तो यह सामने आ रहा है कि वहां वाहनों के इस्तेमाल में करोड़ों रुपये की हेराफेरी का शक है. निगम कचरे के उठाव और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट समेत अन्य कामों के लिए ट्रैक्टर, ट्राली, ट्रक और दूसरे वाहन इस्तेमाल करता है. इसके लिए प्रति दिन 50 से ज्यादा वाहन इस्तेमाल में लाये जाते हैं. इस मामले में निगरानी को पूरा शक है कि इन वाहनों के इस्तेमाल में भारी हेराफेरी की जाती रही है.
निगम को करीब से जानने वाले सूत्र बताते हैं कि निजी लोगों से किराये पर जो वाहन लिये जाते हैं वे ‘खास’ लोगों के होते हैं. इन पचासों वाहनों का उपयोग प्रति दिन किया जाता है. सूत्र कहते हैं कि एक ट्रक या ट्रेक्टर का इस्तेमाल दिन भर में एक या दो ट्रीप के लिए किया जाता है, जबकि कागजों में उसे चार ट्रीप दिखाये जाने की संभावना है. इस तरह याह लाजिमी शक है कि एक वाहन से प्रति दिन निगम को कम से कम 2 हजार रुपये का चूना लगता है. अगर इस तरह के बीस- पचीस वाहन का ही हिसाब लगाया जाये तो प्रति दिन सिर्फ कचरा के उठाव में 50 हजार रुपये का गोलमाल हो सकता है. यह कहानी साल दर साल से जारी है. विजिलैंस इन बिंदुओं पर बड़ी बारीकी से जांच में जुटा है. इसके लिए उसने निगम के कमिश्नर कुलदीप नारायण से उन तमाम वाहनों की सूची, मालिकों के नाम और किराये पर खर्च की गयी रकम का ब्यौरा मांगा है. विजिलैंस के इस कदम से निगम में हड़कम्प मच गया है. कोई शक नहीं कि इस तरह की कई और हेराफेरी सामने आ सकती है.
ललन से जुड़े तार
हमारे नियमित पाठक पढ़ चुके हैं कि विजिलैंस को, इंजीनियर ललन के ठिकानों से हुई छापेमारी में करोड़ों की जायदादा का पता चला है. ललन और उनके परिवार वालों के यहां से से जमीन, फ्लैट्स के अलावा 30 से जायादा बैंक पासबुक मिले हैं. इस पूरे खेल में ताजा जानकारी यह है कि इसके तार ललन के 33 वर्षीय बेटे मिथिलेश से जुड़ गये हैं. इस मामले में विजिलैंस ने जो जानकारियां जमा की हैं वो दांतों तले उंगली दबाने वाली है. अभी तक की जानकारी के अनुसार ये सारा खेल ललन सिंह अपने बेटे मिथिलेश के सहारे खेल रहे हैं. खेल ऐसा कि इसे देख कर बड़े से बड़ा शातिर भी पानी मांगने लगे. सूत्र बताते हैं कि अब तक प्राप्त रिकार्ड के अनुसार मिथिलेश ने बैंक से लाखों रुपये कर्ज ले रखा है. बैंक कर्ज की अदायगी ईएमआई की शकल में हर महीने तो मिथिलेश के अकाउंट से होता है पर ईएमएआई या किस्त में दी जाने वाली रकम के बराबर की राशि एक ‘अंजाना’ शख्स हर महीने मिथिलेश के अकाउंट में जमा कर देता है.यही रकम बैंक को किस्त के रूप में चली जाती है. विजिलैंस इस विश्वास से आगे बढ़ रहा है कि ये रकम पिता ललन सिंह हर महीने डाल देते हैं. विजिलैंस यह जानकारी भी जुटा चुकी है कि मिथिलेश का वेतन कितना है. ऐसे में विजिलैंस का शक अब यकीन में बदलता जा रहा है. इसलिए वह इस खेल को समझने के करीब पहुंच चुकी है कि किस तरह काली कमाई को सफेद करने की एक लम्बी प्रक्रिया चल रही है.
जांच जारी है. नौकरशाही डॉट इन इस पूरे मामले की जानकारी समय-समय पर अपने पाठकों तक पहुंचाने में जुटा है. इंतजार कीजिए.