मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नालंदा प्रेम जगजाहिर है। राजगीर की वादियों में उनकी ‘राजनीतिक आत्मा‘ बसती है। आत्मा को सुलाने या जगाने की इच्छा होती है तो राजगीर पहुंच जाते हैं। राजगीर का संबंध जापान से भी रहा है। यह संबंध बौद्ध धर्म की वजह से है। इस कारण पिछले दिनों नीतीश कुमार जापान की यात्रा भी कर आये। पूरा काफिला साथ में था- मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, सचिव।
वीरेंद्र यादव
कुर्ता-पैजामा में दिखने वाले नीतीश का जापान में पहनावा बदला हुआ था। सफारी ‘सूट’। इंजीनियर रहे हैं। कपड़ों की पसंद का कोई जवाब नहीं। ‘महानायक’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार विदेश जाते हैं तो नीतीश कुमार एकाध-बार विदेश चले ही गये तो कौन-सी आफत आ गयी। आफत नीतीश की यात्रा को लेकर नहीं, बल्कि सूट को लेकर आयी हुई है। भारत में किसी शराबबंदी अभियान के बुलावे में सूट पहनकर तो जाएंगे नहीं। बिहारियों को यह ड्रेस पंसद नहीं आयेगा तो आखिर जापान वाले सूट का क्या होगा?
हमारे लिए यही सबसे बड़ी समस्या थी। आखिर विधानसभा के सीएम चैंबर में हमने पूछ ही लिया। जापान वाले सूट का अब क्या करेंगे। हमारे इस सवाल पर मुस्कुराए। फिर कुछ सोचा और बोले- इसको बिहार म्यूजियम के किसी दीर्घा में टंगवा देंगे। महात्मा गांधी के कपड़े, राजेंद्र प्रसाद के कपड़े से लेकर किन-किन के कपड़े अलग-अलग म्यूजियमों में प्रदर्शित किये गये हैं। जापान वाले सूट को भी म्यूजियम देखने वाले देखेंगे, इसका इतिहास पूछेंगे। इतिहास हमारा पंसदीदा विषय रहा है। इन सूटों का भी इतिहास होगा।
उन्होंने अपनी बात जारी रखी- बिहार म्यूजियम के निर्माण में कई तरह की अड़चन व बाधा आयी। मामला कोर्ट में भी गया। लेकिन जीत हमारी हुई। अड़चन पैदा करने वालों के नाम और करतूतों को भी म्यूजियम में प्रदर्शित किया जाएगा। ताकि इतिहास हमारे संघर्ष को याद करे। हमारे सूटों का अवलोकन कर सके। हमने एक सवाल और पूछ दिया- कितना सूट लेकर गये थे। इसको बनवाने में कितनी लागत आयी होगी। इस सवाल पर नाराज हो गये- प्रधानमंत्री से कोई पूछता है कितने का सूट लेकर गये थे। अब हम प्रधानमंत्री के रेस से बाहर हो गये तो क्या हुआ, हम हारे नहीं हैं। तेजस्वी यादव, जीतनराम मांझी, सुशील मोदी से लेकर अशोक चौधरी तक हमने सबकी संभावनाओं को नाप लिया है। कुर्सी से बडी संभावना किसी की नहीं है और कुर्सी पर तो फिलहाल हमही रहेंगे।
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