जदयू के बागी नेता शिवानंद तिवारी का नीतीश के खिलाफ पत्रयुद्ध जारी है. उन्होंने नीतीश पर आरोप लगाया है कि उनका नरेंद्र मोदी का विरोध करना महज अपनी छवि चमकाने के लिए है.shivanand_325_020714011500

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बिहार के सीएम अपनी छवि चमकाने के चक्कर में नरेंद्र मोदी का विरोध करते हैं. इसमें कोई ईमानदारी नहीं है. सच तो यह है कि वे एनडीए गठबंधन से बाहर नहीं आना चाहते थे. और मैं मोदी व आरएसएस का विरोध करता था तो इसकी सजा देते हुए मुझे पार्टी प्रवक्ता पद से हटा दिया गया.

अपनी चिट्ठी में मैंने जो सवाल उठाए थे उन पर बशिष्ठ भाई ने तो मौन साध लिया है. नीतीश कुमार ने ‘ ऐसे सवाल मेरी नियति हैं ‘ बता कर पल्ला झाड़ लिया. यह उनकी पुरानी आदत है. जब घिरते हैं तो बहुत मासूमियत से अपनी नियति का हवाला देकर जवाब से बच निकलते हैं. नीतीश जैसा ताकतवर व्यक्ति अपनी नियति का रोना कैसे रो सकता है! उनकी नियति ने उन्हें विधायक, सांसद, रेल सहित भारत सरकार में कई विभागों का मंत्री बनाया. आज दस-ग्यारह करोड़ की आबादी वाले प्रदेश के मुख्य मंत्री हैं. फिर नियति का रोना रोकर उसे अपमानित क्यों कर रहे हैं.

पिछली घटनाओं पर जब मैं नजर डालता हूं तो मुझे लगता है कि नीतीश,नरेंद्र मोदी से लड़ना नहीं चाहते थे. नीतीश के लिए एनडीए से बाहर निकलने का सबसे माकूल समय वह था जब उन्होंने मोदी सहित बीजेपी के तमाम राष्ट्रीय नेताओं को भोज का न्योता देकर उसे वापस ले लिया था. इससे ज्यादा कोई किसी का क्या अपमान कर सकता है. विधानसभा के पिछले चुनाव के पहले की यह बात है. इतनी दूर जाकर वे पीछे क्यों हटे. अगर उसी समय एनडीए से वे बाहर निकल गए होते तो उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में उनको अकेले बहुमत मिल गया होता.

बीजेपी भी आज के मुकाबले बहुत छोटी हो गई होती. साहस की कमी या एनडीए में रहने में ही ज्यादा लाभ की उम्मीद में उन्होंने एक ऐतिहासिक अवसर गंवा दिया. गठबंधन से बाहर निकलने का यही माकूल समय है नीतीश कुमार को उस समय मेरी भी सलाह थी.

गत विधानसभा चुनाव के बाद एनडीए में रहते हुए नीतीश कुमार की मोदी विरोध की नीति जारी रही. मुखर होकर मैं मोदी और आरएसएस का विरोध कर रहा था. तब मुझे पार्टी प्रवक्ता से हटाकर मोदी विरोध की मेरी आवाज कमजोर क्यों की गई?

दरअसल एनडीए से बाहर निकलने के पूर्व पार्टी की तथाकथित कोर कमेटी की बैठक मुख्यमंत्री आवास में हुई थी. उक्त बैठक में बशिष्ठ भाई, नीतीश कुमार, नरेंद्र सिंह, पटेल साहब भीम, रेणु, विजय चौधरी, ललन, श्याम आदि के साथ मैं भी शामिल था. बैठक की शुरुआत मेरी ही बात से हुई थी. मैंने लोगों में पार्टी के प्रति नाराजगी के अलावा अन्य बातों को भी रखा. अन्य लोगों ने भी अपनी बात रखी. बैठक के अंत में नीतीश कुमार ने अपनी बात रखते हुए नरेंद्र सिंह और मेरे ऊपर आरोप लगाया. उनका कहना था कि ज्यादा बोलकर हमलोगों ने संकट को बढ़ाया. नरेंद्र सिंह ने कम और मैंने ज्यादा. दरअसल नरेंद्र सिंह ने भी काफी मुखर होकर मोदी पर हमला किया था.

आखिर संकट बढ़ाने का आरोप हमलोगों पर लगाने के पीछे उनका क्या मतलब था. क्या हमलोगों की वजह से बात इतनी आगे बढ़ गयी थी कि एनडीए में रहना अब उनके लिए मुमकिन नहीं रह गया था?
उक्त बैठक के थोड़े दिन बाद ही शरद जी ने जो नई कमिटी बनाई उसमें न मैं प्रवक्ता था और न महासचिव. उस बैठक के बाद से आज तक नीतीश कुमार ने मुझसे बात नहीं की है.

मैं जानना चाहता हूं कि मैंने कौन सा ऐसा काम किया था जिसकी वजह से दल को नुकसान पहुंचा है. फिर क्यों नीतीश कुमार ने दूध की मक्खी की तरह मुझे अलग कर दिया? मुझे गंभीर शंका है कि मोदी या सांप्रदायिकता के विरुद्ध उनके संघर्ष में ईमानदारी है. इसी के बहाने सिर्फ अपनी छवि चमकाने का अभियान वे चला रहे हैं.
अगर नीतीश मुझसे यह अपेक्षा करते थे कि मैं उन्हें जेठ में सावन की हरियाली दिखाऊं, तो यह कला मैंने कभी सीखी नहीं.

उम्र सारी कटी इश्के-बुतां में मोमिन!
अब आखिरी वक्त क्या खाक मुसलमां होंगे?

आपका शिवानंद तिवारी

By Editor


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