वैसे तो हाशिमुरा का प्रत्येक दूसरा घर बर्बरियत का दास्तान सुनाता है, मगर कुछ परिवार एसे हैं जो सबकुछ लुट पिट जाने के बाद आज जिंदगी और रोजी रोटी की जद्दोजहद से जूझ रहे हैं। उन्हीं में से एक परिवार है हाजी शमीम का हाजी शमीम भी उन 42 लोगों में शामिल थे जिन्हें पुलिस की जेरेहिरासत मौत दे दी गई थी।
वसीम अकरम त्यागी
हाजी शमीम की विधवा महरुन्निशा आज तक उनके फोटो संभाले हुए हैं वे कहती हैं कि ‘जिंदगी क्या होती है यह हमसे पूछिये, कि किस तरह हमने उनके जाने के बाद इसे पटरी पर लाने की कोशिशें की हैं, एक बेटे को कैंसर की बीमारी है उसका पिछले साल ऑपरेशन कराया था, उससे पहले उनका पालन पोषण किया एक विधवा औरत जिसके पास कोई सहारा न हो, कोई जवान बेटा भी न हो जो मेहनत मजदूरी करके घर का खर्चा चला सके वह कैसे इस दुःखों की गठरी को उठाती है यह तो वही बता सकती है जिसने यह सब देखा है। महरून्निशां हाशिमपुरा में दो कमरे के एक किराये के मकान में रहती हैं तीन लड़के हैं, जो शादी शुदा है, उनमें से एक लड़के को कैंसर जैसी घातक बीमारी है।
अब खुदा ही इंसाफ करे
वह कहती है कि विधवा हो जाने का गम और फिर औलाद को कैंसर जैसी बीमारी हो जाने का गम लगता है इस जिंदगी के सारे दुःख मेरे हिस्से में ही आये हैं। तीस हजारी कोर्ट के फैसले पर वह निराशा व्यक्त करते हुए कहती है कि यह जिंदगी सिर्फ एक उम्मीद के सहारे काटी है कि न्याय मिलेगा मगर न्याय नहीं मिला. हम हाईकोर्ट जायेंगे और न्याय लेकर ही दम लेंगे, वह कहती हैं कि एसा लगता है कि मानो आज ही हमारे साथ ही यह हादसा हुआ है। मगर इस न्याय पाने और जिंदगी के थपेड़ों से संभलने के लिये वह अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाई वे आज मजदूरी करते हैं कोई पढ़ा लिखा नहीं है। यह पूछने पर कि क्या उन्हें न्याय मिल पाने की उम्मीद है उस पर वह कहती हैं कि अगर आप (मीडिया) का सहयोग रहेगा तो उन्हें इंसाफ जरूर मिलगे, नहीं तो खुदा के यहां भी अदालत भी है वह खुद इंसाफ कर देगा।
वहीं कुछ कदम की दूरी पर अब्दुल कदीर का मकान है अब्दुल कदीर भी पीएसी द्वारा मारे गये लोगों की लिस्ट में शामिल हैं, कदीर के बेटे नईम अहमद बताते हैं कि उन्हें भी उस दिन गिरफ्तार किया गया और फिर यहां से सिविल लाईन पुलिस स्टेशन ले जाया गया वहां पर तीन दिन उन्हें भूखा प्यासा रखा गया, फिर हमें फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया वहां पर हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया गया जेल में शायद ही कोई कैदी एसा होगा जिसने हमें न पीटा हो फतेहगढ़ जेल प्रशासन ने हमें कैदियों से पिटवाया।
पानी बिन सब सून
नईम हाशमिपुरा में ही चाय की दुकान करते हैं वे कहते हैं सेना ने उस रोज जितने लोगों को पुलिस के हवाले किया, उनमें से ज्यादातर को जेल भेज दिया गया. लेकिन उससे पहले सिविल लाइन में उनकी इतनी पिटाई की गई कि कम-से-कम तीन की वहीं मौत हो गई, और पांच ने फतेहगढ़ जेल में दम तोड़ दिया फतेहगढ़ जेल में जैसे ही ले जाया गया, सारे कैदी हम पर ऐसे टूट पड़े मानो उन्हें पहले ही हमें मार डालने का ‘हुक्म दिया गया हो. पहले पुलिस ने पीटा, फिर कैदियों ने मारा.
पानी नहीं मिल रहा था, हम अपनी बनियानें निचोड़कर घायलों को पानी पिला रहे थे.” फतेहगढ़ जेल में भी कई लोगों ने दम तोड़ दिया. नईम अपने पैर में लगी चोट के निशान दिखाते हुए कहते हैं क यह इस टांग की सूजन ही नहीं जाती, कभी – कभी तो दर्द इतना बढ़ जाता है कि सहा नहीं जाता। नईम भी इस फैसले से आहत हैं और हाईकोर्ट जाने की बात कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उस दिन के बाद हम इस उम्मीद पर जिये हैं कि हमें न्याय मिलेगा अब्बा के जाने के बाद अम्मी की आंखें चली गईं, जिंदगी का हर वो दुःख हमने सहा है जो शायद हमारे लिये ही बना था, यह भी एक बड़ा दुःख है कि निचली अदालत से हमें इंसाफ नहीं मिल पाया।