एम्स में भ्रष्टाचार की जड़ें खोद कर सुर्खियां बटोरने वाले आईएफएस अफसर संजीव चतुर्वेदी को रमन मैग्सेसे सम्मान के लिए चुना गया है. जानिए कौन हैं चतुर्वेदी.
चतुर्वेदी के अलावा इस सम्मान के लिए अंशु गुप्ता को भी चुना गया है
चतुर्वेदी वही ऑफिसर हैं जिनकी उमदा सेवा के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने ‘आउटस्टैंडिंग’ ऑफिसर तक कहा. चतुर्वेदी की ईमानदारी का गुणगान खुद मनमोहोन सिंह की केंद्र सरकार कर चुकी है.इतना ही नहीं केंद्र सरकार के एक ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल के ऑफिसर ने अपने नोट में चतुर्वेदी के बारे में लिखा था कि वह एक ईमानदार ऑफिसर हैं जो भ्रष्टाचार के खिलाफ शानदार कार्रवाई के लिए जाने जाते हैं.
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पिछले साल चतुर्वेदी अचानक सुर्खियों में तब आये थे जब मोदी सरकार के सत्ता संभालते ही उनके स्वास्थ्य़ मंत्री हर्षवर्धन ने उनके पद से बिना कारण बताये हटा दिया था.
जबकि उसी वर्ष तत्कालीन सरकार का आदेश आया था कि चतुर्वेदी का तबादला बिना पीएमओ की रजामंदी के नहीं हो सकता है. लेकिन हर्षवर्धन ने पीएमओ के आदेश का भी उल्लंघन करते हुए उन्हें पद से हटा दिया था. मोदी सरकार के इस फैसले को चतुर्वेदी ने चुनौती देने की घोषणा की. उन्हें हटाये जाने पर हर्षवर्धन पर कई गंभीर आरोप भी लगे. मालूम हो कि हर्ष वर्धन खुद भी डाक्टर रह चुके हैं.
चतुर्वेदी के बारे में
चतुर्वेदी हरियाणा कैडर के 2002 बैच के वन सेवा के अधिकारी हैं.
चतुर्वेदी ने हरियाणा की हुडा सरकार में भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जिहाद छेड़ था. बाद में उन्हें केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया और एम्स में आने के बाद उन्होंने दवा खरीद के कई घोटालों को बेनकाब किया.
चतुर्वेदी ने 1995 में इन्होंने मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद से बीटेक किया. ये 2002 के आईएफएस अफसर हैं.. पहली पोस्टिंग इन्हें कुरुक्षेत्र मिली, जहां इन्होंने हांसी बुटाना नहर बनाने वाले ठेकेदारों पर एफआईआर दर्ज करवाई. बतौर सीवीओ, एम्स में संजीव ने अपने दो साल के कार्यकाल में 150 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले उजागर किए.
2014 में संजीव को स्वास्थ्य सचिव ने ईमानदार अधिकारी का तमगा दिया था. उन्हें कई बार ट्रांस्फर तक किया गया. चार बार तो उन्हें झूठे मुकदमे में फंसा कर निलंबित तक करवा दिया गया था. लेकिन राष्ट्रपति ने उन्हें बहाल कर दिया.
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