मुलायम सिंह यादव ने 1967 में अपने पहलवान गुरू-नत्थूसिंह को गच्चा दे कर सोशलिस्ट पार्टी के बैनर पर इटावा की जसवंतनगर सीट से पहली बार विधायक और 1989 में अपने राजनीतिक गुरु-चौधरी चरण सिंह को अंधकार में रख कर लोकदल के बैनर पर पहली बार यूपी का मुख्यमंत्री बनकर जिस राजनीति की शुरुआत की थी, आज वही राजनीति मुलायम के परिवार और उनकी पार्टी को इस स्थिति में ले आई है.
परवेज आलम, लखनऊ से
साल 1967 में नत्थूसिंह से शुरू हुए मुलायम सिंह यादव के दांव, चौधरी चरण सिंह और कांशीराम से लेकर माया, ममता, जयललिता, शरद-लालू यादव, नीतीश कुमार, के•सी त्यागी और ठाकुर अमर सिंह तक चलते रहे.
मुलायम सिंह यादव ने सरदार हरिकिशन सिंह सुरजीत और ऐ•पी•जे कलाम तक को नहीं बख़्शा. मुलायम चरख़ा दांव खेलते हैं सबके साथ और आज मुलायम की उल्टी चरख़ी चल रही है.
हालात इतने ख़राब हो गये हैं कि अखिलेश और शिवपाल भी मुलायम की बातों पर यक़ीन नहीं कर रहे कि पता नहीं वो किसके साथ चरख़ा दांव खेल रहे हैं÷( भाई को खुलेआम बोल रहे हैं-तुम्हारे साथ हूं. बेटे को अंदरख़ाने आश्वासन दे रहे हैं-तुम्हारे साथ हूं. नतीजतन समाजवादी पार्टी का दोफाड़ लगभग तय है.
अब माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नई पार्टी का ऐलान कर सकते हैं. सगे चाचा-भतीजे की इस जंग में रिश्ते के चाचा-रामगोपाल यादव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ खड़े हैं और बुधवार को ही उन्होंने चुनाव आयोग के आलाधिकारियों से मुलाक़ात कर नई पार्टी के गठन का आवेदन किया था.
मुलायम के इस चरखा दांव का रफ्तार अब यहां तक पहुंच गयी है कि सुबह को सीएम बेटे अखिलेश ने चाचा शिवपाल समेत चार मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया तो शाम को मुलायम ने अखिलेश के चाचा और प्रिय रामगोपाल यादव को पार्टी महासचिव पद से बर्खास्त करते हुए पाटी से भी निकाल दिया.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/10/parwez.alam_.jpg” ]लेखक कौमी तंजीम दैनिक के लखनऊ स्थित प्रभारी हैं[/author]